पियूष कुमार
बात जनवरी 2017 की है। पूर्व क्रिकेट कैप्टन राहुल द्रविड़ को बंगलुरू विश्वविद्यालय ने 27 जनवरी को होनेवाले अपने 52 वें दीक्षांत समारोह में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया। राहुल ने यह प्रस्ताव विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया और कहा – ” मेरी माँ आर्ट्स की प्रोफेसर हैं और उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री पाने के लिए पचास वर्ष की होने तक धैर्यपूर्वक इंतज़ार किया है। मेरी पत्नी एक डॉक्टर हैं और मैं जानता हूँ कि इसके लिए उन्होंने अनगिनत दिन और रातों की पढाई की है। मैंने क्रिकेट खेलने के लिए बहुत मेहनत की है पर इतना अध्ययन नही किया है। इसलिए मैं यह डिग्री स्वीकार नही कर सकता।”
क्या ही बात है इस जेंटलमैन की। इस कथन में राहुल के पास उदाहरण भी मां और पत्नी के हैं जो इस विषय को और भी खूबसूरत बनाते हैं। इस बात का वजन हमारे यहां ज्यादा है क्योंकि इस विनम्रता की तुलना में लगभग सारा समाज स्तरीय तो छोड़िए, स्तरहीन सम्मानों के जुगाड़ में रहता है और इसके लिए बहुत कुछ किया भी जाता है। वास्तविकता यह है कि समाज का बड़ा हिस्सा आत्ममुग्ध, अहंकारी, श्रेष्ठता की भावना से लबरेज और कथित रूप से बहुत अच्छे लोग हैं।
याद आता है कि किसी ने राहुल से एक बार पूछा था कि “आप किस तरह की लड़की से शादी करेंगे?” राहुल ने जवाब दिया था, “दुनिया मे तमाम लड़कियां हैं, इन्हीं में से किसी से करूँगा।” एक और वाकया याद आता है, अंडर 19 टीम के चैंपियन बनने पर भी उन्होंने कोई क्रेडिट नही लिया और लड़कों की मेहनत का परिणाम बताया था। राहुल को गुलबर्गा विवि ने भी डॉक्टरेट की मानद उपाधि हेतु प्रस्ताव दिया था पर वह भी इन्होंने इसी वजह से अस्वीकार कर दिया था। राहुल का यह व्यवहार वास्तविक है, इससे कुछ घटता नही है। अपने सम्मान को अनावश्यक रूप से बढ़ाने की किसी को जरूरत भी नही है। राहुल द्रविड़ न सिर्फ अपने खेल से बल्कि निजी व्यक्तित्व से भी यूँ ही प्रिय नही हैं।