हम एक बेशुमार गढ़े जा रहे झूठ और गोएबेलिज़्म के दौर से गुजर रहे हैं। इस दौर में इतिहास की नयी नयी व्याख्या की जा रही है, या कहें, नयी नयी व्याख्याये गढ़ी जा रही है। चाहे प्राचीन भारतीय इतिहास हो, या इतिहास का मध्यकालीन भाग या 1757 ई के बाद का आधुनिक भारत या आधुनिक भारत मे अपनी आजादी और अपनी अस्मिता के लिये किये गए स्वाधीनता संग्राम का इतिहास, जो 1857 से 1947 तक के कालखंड का है, के बारे मे ऐसे ऐसे तथ्य परोसे जा रहे हैं कि, इतिहास के अकादमिक शोधार्थी भी चक्कर खा जा रहे है। स्वाधीनता संग्राम के सभी नायकों के बारे जानबूझकर दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है। इन नायको को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर के उन्हें भी विभाजित किया जा रहा है। जबकि स्वाधीनता संग्राम के सभी नायको, चाहे गांधी हों या नेहरू, पटेल, सुभाष, या क्रांतिकारी आंदोलन की धारा के भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद या अपनी अलग शैली से आज़ाद हिंद फौज का गठन कर, युद्ध की घोषणा करने वाले सुभाष बाबू, इन सबमें तरह तरह के वैचारिक और रणनीतिक मतभेद होने के बावजूद, सभी नेता, एक बात पर अडिग थे, कि भारत को इस औपनिवेशिक ग़ुलामी से मुक्ति मिले।
भगत सिंह को लेकर इसी गढ़े जा रहे इतिहास के अनेक दुष्प्रचारों में एक दुष्प्रचार, यह भी है कि, ‘भगत सिंह जेल में थे तो उनसे मिलने कांग्रेस का कोई नेता नहीं गया।’ यह तथ्य (?) साल 2018 में, कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने, बीदर में अपनी चुनाव रैली के दौरान भी कहा था। उन्होंने कहा था,”जब शहीद भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और स्वातन्त्र्यवीर सावरकर आज़ादी की लड़ाई में जेल में थे तो क्या कांग्रेस का कोई नेता उनसे मिलने गया था?”
यह भी एक महीन और शातिर चाल है कि शहीद त्रिमूर्ति के साथ सावरकर का नाम जोड़ दिया जाय। सावरकर भी देश के स्वाधीनता संग्राम के एक अंग थे और उन्हें अंडमान जेल मे रखा भी गया था। उन्हें यातनाएं भी दी गयी होंगी। पर जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, और उसके योद्धा भगत सिंह और उनके साथी ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ रहे थे, तब सावरकर ब्रिटिश राज से, माफी मांग कर स्वाधीनता संग्राम से अलग हो चुके थे। अतः भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के साथ सावरकर के नाम को जोड़ कर उल्लेख करना, इतिहास को झांसा देना है। यह कल्पना ही नहीं की जा सकती है कि, भगत सिंह उस व्यक्ति से प्रेरणा प्राप्त करेगे, जो ब्रिटिश हुक़ूमत से माफी मांग कर ब्रिटिश राज की शर्तों पर अपनी ज़िंदगी गुजार रहा हो। अंडमान पूर्व और अंडमान बाद के सावरकर का अंतर समझना होगा। सावरकर 1921 में अंडमान जेल से छोड़ दिये गए थे, जबकि भगत सिंह, जिस सांडर्स हत्याकांड में मुल्जिम बनाये गए थे, वह घटना, दिसम्बर 1928 की है, और जिस असेंबली बम कांड में वे, ‘बहरों को सुनाने के लिये बम फोड़ कर’ खुद ही गिरफ्तार हो गए थे, वह 8 अप्रैल 1929 का है।
प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के किसी नेता का नाम नहीं लिया। पर उनका यह हमला, संघ की लगातार इस आलोचना पर कि ‘संघ का स्वाधीनता संघर्ष में कोई योगदान नहीं है’ के उत्तर में तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं पर था। कांग्रेस में भी उनका निशाना किस पर है यह अनुमान लगाया जा सकता है। यह निशाना गांधी और नेहरू पर है। गांधी के बारे में तो बार बार यह प्रचारित किया ही जाता है कि उन्होंने भगत सिंह की फांसी रुकवाने की कोई कोशिश नहीं की। अब बचे नेहरू, तो नेहरू की विचारधारा से संघ की चिढ़ और खुन्नस, किसी से छिपी नहीं है।
प्रधानमंत्री जी ने यही बात ट्वीट कर के भी कही। अपने ट्वीट में वे कहते हैं – ”When Shaheed Bhagat Singh , Batukeshvar Datta and Veer Sawarkar, greats like them were jailed fighting for the country’s independence, did any Congress leaders went to meet them ? But the Congress leaders go and meet the corrupt who have been jailed.” @narendramodi 8.24 PM May 9, 2018
इस ट्वीट के दो भाग हैं। एक कि इन महान स्वाधीनता सेनानियों और शहीदों से कोई कांग्रेस का नेता मिलने गया था या नहीं। दूसरा, कांग्रेस के नेता भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ायाफ्ता से मिलने जाते हैं। यह दूसरा भाग राहुल गांधी की लालू प्रसाद यादव से मुलाकात के बारे में हैं जो आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में हुयी थी। लालू यादव भ्रष्टाचार के मामले में सज़ायाफ्ता हैं और राहुल गांधी उनसे मिलने गए थे। यह बात प्रधानमंत्री की सही है कि राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव से मिलने गए थे। यह ट्वीट 9 मई 2018 का है।
लेकिन लाहौर जेल में बंद, भगत सिंह और उनके साथियों से किसी कांग्रेसी के जेल में जाकर, न मिलने के आरोप के बारे में प्रख्यात इतिहासकार डॉ इरफान हबीब ने उसी समय, पीएम के ट्वीट का इस प्रकार उत्तर दिया, ”Nehru had not only met them in prision but also wrote about them.” “नेहरू न केवल उनसे मिलने जेल गए थे, बल्कि उन्होंने इसके बारे में लिखा भी है।” जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा माय स्टोरी, हिंदी अनुवाद मेरी कहानी में इस मुलाकात का ज़िक्र है। नेहरू अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ”I happen to be in Lahore when the hunger strike is already a month old. I was given permission to visit some of the prisoners in the prison and I availed myself of this. I saw Bhagat Singh for the first time, and Jaindranath Das and few others. They were all very weak and bed ridden and it was hardly possible to talk to them much. Bhagat Singh had an attractive and intellectual face, remarkably calm and peaceful. There seem to be no anger in it. He looked and talked with great gentleness. But then I suppose that anyone who has been fasting for a month will look spiritual and gentle. Jatindas looked milder soft and gentle like a young girl. He was in a considerable pain . ”
( My story An autobiography of Jawaharlal Nehru. Pp 204. )
मैं जब लाहौर में गया था तो यह भूख हड़ताल एक महीना पुरानी हो चुकी थी। मुझे कुछ कैदियों से जेल में जा कर मिलने की इजाज़त मिली थी। मैंने इस मौके का फायदा उठाया। मैंने भगत सिंह को पहली बार देखा और जतिनदास तथा अन्य भी वहीं थे। वे सभी बहुत कमजोर हो गए थे और बिस्तर पर ही पड़े थे, इस लिये उनसे बहुत मुश्किल से ही बात हो सकी। भगत सिंह एक आकर्षक और बौद्धिक लगे जो गज़ब के शांत और निश्चिंत । मुझे उनके चेहरे पर लेश मात्र भी क्रोध नहीं दिखा था। वे बहुत ही सौम्य लग रहे थे और शालीनता से बात कर रहे थे। लेकिन मैं यह सोच बैठा था कि जो एक महीने से भूख हड़ताल पर बैठा हो वह तो आध्यात्मिक व्यक्ति जैसा दिखेगा। जतिनदास तो और भी सौम्य, कोमल तथा लड़कियों जैसा दिखा । हालांकि निरन्तर भूख हड़ताल से वह बहुत कष्ट में था।”
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस मुलाकात का ज़िक्र केवल जवाहरलाल नेहरू ने ही अपनी आत्मकथा में किया है। बल्कि यह खबर उस समय के प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी अखबार द ट्रिब्यून जो सन 1881 से लाहौर से प्रकाशित होता था में भी छपी थी। नेहरू की मुलाक़ात का यह विवरण 9 अगस्त 1930 के ट्रिब्यून में भी छपा था । ट्रिब्यून की खबर में यह शीर्षक था ”Pt Jawaharlal interviews hunger strikers” पंडित जवाहरलाल ने भूख हड़ताल करने वालों से बात चीत की।
आगे अखबार लिखता है- ”Pandit Jawaharlal first went to the central jail where he met Sardar Bhagat Singh and B.K.Dutta where he held conversation about the hunger strike.” पंडित जवाहरलाल पहले सेंट्रल जेल गए जहां वे सरदार भगत सिंह और बीके दत्त से मिले और उनसे भूख हड़ताल के बारे में बात की। अखबारों से बात करते हुये नेहरू ने 8 अगस्त 1930 को लाहौर में कहा- “I visited the Central Jail and the Borstal Jail yesterday and saw Sardar Bhagat Singh, Mr. Batukeshwar Dutt, Mr Jatindranath Das and all the other accused in the Lahore conspiracy case, who are on hunger-strike.”
“मैंने कल लाहौर के सेंट्रल जेल जो बोर्स्टल जेल है में कल जा कर सरदार भगत सिंह, बीके दत्त और जतिनदास जो लाहौर षडयंत्र मामले के आरोपी और भूख हड़ताल पर थे से मुलाक़ात हुई।”
ट्रिब्यून की खबर 8 अगस्त 1930 के बाइलाइन से 9 अगस्त के अंक में विशेष संवाददाता के नाम से छपी है। इसकी फ़ोटो और विवरण गूगल पर उपलब्ध है। नेहरू अकेले नहीं थे। उनके साथ डॉ गोपी चंद एमएलसी भी थे। अखबार के अनुसार, इस मुलाकात में, भगत सिंह, जतिन दास, अजय घोष, और शिव वर्मा भी थे। ये सभी जेल के अस्पताल में थे। नेहरू की आत्मकथा और द ट्रिब्यून की इस खबर के अतिरिक्त इस मुलाकात की खबरों का विवरण कुछ इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में भी किया है। फ्रैंक मॉरिस ( Frank Moraes ) जो एक अंग्रेजी पत्रकार थे, ने भी नेहरू की आत्मकथा लिखी है। यह किताब 1956 में प्रकाशित हुई है और नेहरू की जीवनी पर इतिहासकारों ने इसे एक प्रमाणिक पुस्तक माना है। उस किताब में फ्रैंक ने भी भगत सिंह से नेहरू की जेल में मुलाकात का विवरण दिया है ।
नीचे का उद्धरण पढ़ने के पहले उद्धरण की पृष्ठभूमि जानना आवश्यक है। जब जेल की दुरवस्था को लेकर जतिनदास ने अनशन शुरू किया तो बाद में भगत सिंह और साथियों ने भी अनशन में उनका साथ दिया। जब अनशन लम्बा चला और एक माह हो गया तो 1929 के लाहौर अधिवेशन की तैयारियों के दौरान नेहरू लाहौर गये थे। भगत सिंह के अनशन को ले कर लाहौर में लोग बहुत उत्तेजित थे। तब नेहरू इन क्रांतिकारियों से मिलने लाहौर जेल में गये जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा में और दैनिक अखबार द ट्रिब्यून ने समाचार के रुप मे किया है, जो ऊपर लिखा जा चुका है।
तब कांग्रेस कमेटी के दबाव पर सरकार ने जेल सुधार के लिये एक सुधार कमेटी का गठन किया और आश्वासन दिया कि इस कमेटी की सिफारिशों के अनुसार राजनीतिक बंदियों के जेल जीवन मे सुधार किया जाएगा। इसी आश्वासन और अपने पिता करतार सिंह तथा कांग्रेस कमेटी के अनुरोध पर उन्होंने यह लम्बा अनशन समाप्त किया। जतिनदास तो अनशन के दौरान ही 63 दिन में शहीद हो गए थे। इस उद्धरण में उसी सुधार कमेटी की सिफारिशों का उल्लेख है। 1929 और 30 , कांग्रेस के इतिहास में सबसे प्रमुख गतिविधियों के साल रहे हैं। यह सारी गतिविधियां लाहौर में ही हो रही थी। क्यों कि 1929 में ही जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष बने और 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया।
अब आप यह उद्धरण पढ़ें। “If the Congress Working Committee was disturbed by the terms of the settlement , many in the country were even more distressed. Under the settlement of the amnesty to the political prisoners did not include those kept in detention without trial. Even more contentious was the issue of the death sentence of Bhagat Singh. Public opinion demanded that it should be commuted, by the Government was adamant. On March 23 rd, despite Gandhi’s desperate pleating, Bhagat Singh was executed.”
( यदि कांग्रेस वर्किंग कमेटी समझौते की शर्तों के टूटने पर विचलित थी तो देश के बहुत से लोग और भी निराशा से भर गए थे। राजनैतिक कैदियों के प्रति उचित व्यवहार और सदाशयता का मुद्दा भी कांग्रेस ने सरकार के समक्ष रखा था। लेकिन सरकार ने उन कैदियों का प्रकरण जो अभी विचाराधीन हैं, को इस मुद्दे से अलग कर दिया। सरकार भगत सिंह के कारण इस प्रकरण पर बात नहीं करना चाहती थी। लेकिन जनता की यह लोकप्रिय इच्छा थी कि, विचाराधीन कैदियों के प्रति जो सदाशयता सरकार दिखाने की बात कर रही है, उसमे भगत सिंह का भी मसला शामिल किया जाय। लेकिन सरकार ज़िद पर अड़ी थी। अंत मे 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को गांधी के पत्र और अनुरोध के बावजूद भी फांसी दे दी गयी। )
इसी क्रम में फ्रैंक लिखते हैं, भगत सिंह की फांसी से नेहरू बहुत ही उद्वेलित थे। उन्होंने तब कहा था कि, ”The corpse of Bhagat Singh, will stand between us and England ” भगत सिंह का शव हमारे और इंग्लैंड के बीच सदैव बना रहेगा। नेहरू के कहने का अर्थ था, सरकार के प्रति हमारी अविश्वसनीयता और बढ़ गयी। यह अविश्वास जब भी इंग्लैंड की सरकार से बात होगी तो, बना रहेगा। अब एक और उद्धरण पढ़ें। यह उद्धरण भगत सिंह पर भवन सिंह राणा द्वारा लिखी पस्तक भगत सिंह से लिया गया है। यह भी सुधार कमेटी की सिफारिशों के लागू न किये जाने पर है। ”The Government dilly – dallied in implementing the recommendation of the reforms committee. Therefore Bhagat Singh strongly protested against this step of the Government of India, through a special magistrate. It warned that the Government was going back on the recommendations , and gave it one week’s time to act. Bhagat Singh was not a person to back out from the truth. So he himself also wrote an application on 20th january 1930, to the Home Minister, Government of India.”
सरकार ने जानबूझकर सुधार कमेटी की सिफारिशों को लागू करने में हीला हवाली की। इसलिये भगत सिंह ने एक विशेष मजिस्ट्रेट के माध्यम से इसका मजबूती से विरोध किया। उन्होंने चेतावनी दी कि, सरकार अपने वादों से मुकर रही है और उन्होंने सरकार को सुधार कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के लिये एक हफ्ते का समय दिया। भगत सिंह सत्य से डिग जायें, ऐसे व्यक्ति नहीं थे। अतः उन्होंने 20 जनवरी 1930 को भारत सरकार के गृह मंत्री को एक प्रार्थना पत्र दिया।
भारत सरकार के गृह मंत्री को जो पत्र उन्होंने लिखा था, उसमे का यह अंश पढ़ें। ”We ended our hunger strike on this assurance of the reform committee that the issue of good conduct with the political prisnors was shortly being finally resolved to our satisfaction. The jail authorities are sitting over the recommendations regarding hunger strikes, made by All India Congress Committee. The congressmen have been refused permission to see the prisoners persons allegedly related to conspiracy case.” हमने अपना आमरण अनशन इस आश्वासन पर समाप्त किया था, कि सुधार कमेटी की सिफारिशें जो राजनीतिक बंदियों के साथ जेल में अच्छे व्यवहार के संदर्भ में थीं को सरकार हमारी संतुष्टि के अनुसार लागू करेगी। सुधार कमेटी ने जो सुझाव आल इंडिया कांग्रेस कमेटी द्वारा भूख हड़ताल के बारे में सुधार कमेटी को दिए थे पर कोई विचार नहीं किया। वे उन सिफारिशों को दबा कर बैठे हैं। यहां तक कि कांग्रेस के लोगों को लाहौर षडयंत्र के कैदियों से मिलने की अनुमति भी नहीं दी गयी।
यह उद्धरण कई जगह उपलब्ध है।
आरएसएस और उसकी वैचारिकी से प्रभावित, लोगों का कहना है कि, कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भगत सिंह और साथियों के विरुद्ध था, पर इस आरोप के समर्थन में कोई भी ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं मिलता है। कांग्रेस मूलतः गांधी के सत्याग्रह, असहयोग और अहिंसक आन्दोलन के रास्ते पर थी। जबकि भगत सिंह, इंकलाब की बात करते थे, ब्रिटिश साम्राज्य के नष्ट हो जाने की कामना करते थे। भगत सिंह का सपना आज़ादी से कहीं आगे साम्राज्यवाद के नाश का था। वे राजनीतिक आज़ादी पाकर संतुष्ट हो जाने वाले क्रांतिकारी नहीं थे। उनका सपना था, एक ऐसे समाज का निर्माण, जहां श्रम का शोषण और, सामाजिक विषमता न हो। उनका कांग्रेस से कोई वैचारिक मेल नहीं था। फिर भी यह वैचारिक द्वंद और मतभेद, कांग्रेस और भगत सिंह के बीच कोई बाधा नहीं बना। आज भी सावरकरवादी मित्र, भगत सिंह की विचारधारा पर कोई बहस नहीं करते हैं, न वे उनका लिखा पढ़ने की जहमत उठाएंगे। वे भगत सिंह के माध्यम से अपने चिर विरोधी, गांधी नेहरू पर अपनी चिढ़ और खुन्नस निकालते हैं। आज़ादी का आंदोलन एक महायज्ञ था। सभी अपने अपने मंत्रो और समिधा से उस यज्ञ में आहुति दे रहे थे। पर उंस महायज्ञ में आरएसएस कहाँ था, यह सवाल जब जब मैं स्वाधीनता संग्राम से जुडी घटनाओं का विवरण पढ़ता हूँ तो, मेरे मन मे कौंध जाता है।
(लेखक पूर्व आईपीएस हैं)