डॉ. अख़लाक़ अहमद उस्मानी
लईक़ उस्मानी का मुम्बई में इस 22 सितम्बर 2020 को इंतक़ाल हो गया। एक बेहद ईमानदार और लगनशील प्रोड़्यूसर। फिल्म इंडस्ट्री में ईमानदारी और टेलेंट की सच्ची मिसाल लईक़ साहब चुपचाप इस दुनिया को अलविदा कह गए। बरसों राजश्री प्रोडक्शंस के लिए काम करने वाले लईक़ उस्मानी का जन्म डीडवाना, नागौर में हुआ। वह अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे।
फ़िल्म उनके ख़ून में बहती थी। पढ़ाई में बेहद होशियार लईक़ भाई सरकारी टीचर की नौकरी छोड़कर 1975 में बम्बई चले गए थे। उनका परिवार कुचामन सिटी, ज़िला नागौर, राजस्थान में बस चुका था। उनके दादा वकील मुश्ताक़ अहमद उस्मानी कुचामन ठिकाने की तरफ से मारवाड़ स्टेट में प्रोसीक्यूटर थे। बहुत बड़ा रुत्बा था उनका। कुचामन से यह रिश्ता ही लईक़ भाई को ले गया बम्बई के ‘राजश्री प्रोडक्शनंस’। कहना चाहिए कि कामयाब राजश्री प्रोडक्शन के संस्थापक श्री ताराचंदजी बड़जात्या कुचामन से बम्बई जाकर सिनेमा कम्पनी स्थापित करने वाले कामयाब मारवाड़ी बिजनेसमैन बन चुके थे। राजश्री 1947 में स्थापित की गई लेकिन एक कम्पनी के तौर पर इसने 1962 से काम शुरू किया। ज़हीन लईक़ भाई को बम्बई में जाते ही राजश्री में काम मिल गया और एक प्रोडक्शन सहायक के रूप में पहली फिल्म ‘गीत गाता चल’ (1975) के लिए काम किया। लईक़ भाई को टाइटल में जगह नहीं मिली लेकिन अपनी योग्यता के अलावा साफ़दिली और काम के प्रति ईमानदारी ने ताराचंदजी को बहुत प्रभावित किया।
इसके बाद तो वह कामयाब प्रोडक्शन अस्टिटेंट बने। उन्होंने राजश्री प्रोडक्शन समेत उसकी सहयोगी कम्पनी सरगम पिक्चर्स और राजश्री पिक्चर्स की फिल्मों में भी काम किया। लगातार हिट फिल्मों में राजश्री के सरल और देशज सेट की डिजाइन से लेकर उसके फिल्मीकरण तक निर्देशक लईक़ उस्मानी का लोहा मानते थे। गीत गाता चल (1975), तपस्या (1976), चितचोर (1976), पहेली (1977), अलीबाबा मरजीना (1977), एजेंट विनोद (1977), दुल्हन वही जो पिया मन भाए (1977), अंखियों के झरोखों से (1978), सुनयना (1979), सावन को आने दो (1979), सांच को आंच नहीं (1979), नैया (1979), पायल की झंकार (1980), मनोकामना (1980) और जज़्बात (1980) में उन्होंने हर हिट फिल्म में प्रोडक्शन की भूमिका निभाई।
इसी साल वह सऊदी अरब चले गए और उनका फिल्मी करियर थम गया। राजश्री प्रोडक्शंस की पहली ब्लॉक बस्टर फिल्म ‘नदिया के पार’ (1982) के समय वह मौजूद नहीं थे और जब राजश्री कामयाबी की बेशुमार सीढ़ियों पर चढ़ते हुए ‘मैंने प्यार किया’ (1989) तक पहुंचा तो दुर्भाग्य से लईक़ उस्मानी राजश्री से जुड़ न सके। बाद में अपने करियर में उन्होंने कई राजस्थानी फिल्मों का प्रोडक्शन संभाला और गीत भी लिखे।
सन् 1983 में निर्देशक हिरेन नाग ने प्रोड्यूसर शादाब अहमद के आइडिए पर एक फिल्म बनाई। प्राण की मुख्य भूमिका में शादाब इंटरनेशनल प्रोडक्शन एसोसिएट में लईक़ उस्मानी ने प्रोडक्शन संभाला जबकि उनके भाई शकील उस्मानी असिस्टेंट डायरेक्टर थे। ‘फिल्म ही फिल्म’ नाम की इस पिक्चर का आइडिया बहुत नया था। जो फिल्में अधूरी रह गई और बन न सकीं, उनको इकट्ठा लेकर एक कहानी में बुना गया। इस तरह एक ही फिल्म में दिलीप कुमार, वैजयंती माला, राज कपूर, नूतन, देव आनंद, माला सिन्हा, अमिताभ बच्चन, परवीन बाबी, राजकुमार, साधना और मनोज कुमार समेत कई कलाकारों की अधूरी फिल्मों के शॉट्स को बखूबी पिरोया गया। इस कहानी के मुख्य किरदार प्राण यानी ज्ञानचंद शाह को फिल्में बनाने का जुनून होता है मगर शाह बहुत ईमानदारी से फिल्म इंडस्ट्री में काम करना चाहते हैं। ज़िंदगी भर की परेशानी के बाद ज्ञानचंद एक फिल्म यानी ‘फिल्म ही फिल्म’ बना पाते हैं। फिल्म के किरदार ज्ञानचंद की ज़िंदगी में ही लईक़ उस्मानी के जीवन की झलक है। वह पूरे जीवन अपने निर्देशन में एक अच्छी सामाजिक फिल्म बनाने का सपना पाले ही इस दुनिया से विदा हो गए।
लईक़ उस्मानी ने अपने जीवन में हिरेन नाग, अनिल गांगुली, बासू चटर्जी, प्रशांत नंदा, दीपक बाहरी, लेख टंडन, कनक मिश्रा, सत्येन बोस, सूरज प्रकाश, टी रामाराव समेत कई कामयाब निर्देशकों के साथ काम किया।
लईक़ उस्मानी के साथ ही ‘फिल्म ही फिल्म’ के ज्ञानचंद सरीखा चरित्र भी चला गया। लईक़ उस्मानी को लोग अल्हड़ मिजाज़ समझते रहे लेकिन कोई संवेदनशील नज़र ही यह जान पाएगी कि यह फ़क़ीरी ईमानदारी से पैदा हुआ फ़ख़्र है। जहाँ एक प्रोड्यूसर किसी की चापलूसी नहीं करता। वह चाहता है उसकी लगन, मेहनत, टैलेंट और ईमानदारी के हिसाब से उसे काम मिले, पहचान मिले। अरबी और स्कॉटिश ज़बान में ‘लईक़’ का लफ़्ज़ी मतलब ‘योग्य’ और ‘इंटेलिजेंट’ होता है। भाई लईक़ उस्मानी ने अपने नाम को इसके मिजाज़ से मिलाने में उम्र गुज़ार दी। उन्हें समझने वाले कभी लईक़ उस्मानी को भूल नहीं पाएंगे।
(लईक़ उस्मानी लेखक के भाई हैं)