कृष्णकांत का सवाल: क्या अपने ही देशवासियों से नफरत करना धर्म है?

जैसे जैसे हिंदुत्व की राजनीति हिंसक होगी, हम सबके सामने ये सवाल आएंगे कि क्या ये हिंसा, उन्माद और अपने ही देश और समाज के प्रति फैलाये जा रहे जहर का हमारे धर्म से कोई लेना देना है?

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क्या सरेआम नरसंहार का आह्वान करना धर्म है? क्या अपने ही देशवासियों से नफरत करना धर्म है? क्या निर्दोष-निरीह लोगों को मारना धर्म है? क्या कमजोर को कुचलना धर्म है? क्या लोगों में धार्मिक विभाजन पैदा करके कुर्सी हथियाना धर्म है?

क्या राम के नाम पर देश की जनता का पैसा हड़प लेना धर्म है? क्या भगवान राम के मंदिर के नाम पर जमीनों की लूट धर्म है? हिंदुओं को यह तय करना होगा कि इस सियासी लुच्चई से उन्हें क्या फायदा है?

जो हो रहा है, यह धर्म नहीं है। यह अधर्म है। यह हिंदुओं की आस्था नहीं है। यह संघियों का हिंदुत्व है। यह एक राजनीतिक विचारधारा है। इसका एक राजनीतिक मकसद है। वे हिंदू नहीं हैं। वे सनातनी हिंदुओं की आस्था, उनके धर्म, उनकी संस्कृति के सियासी लुटेरे हैं।

नरेंद्र मोदी जिस हिंदुत्व के पोस्टर बॉय हैं, वह हिंदुत्व पैदाइशी हिंदुओं के अलावा हर किसी से नफरत करने की वकालत करता है। लेकिन इस नफरत का परिणाम उसे नहीं पता है। यह विचारधारा तबाही की आकांक्षी है। ​यह हिंदुओं को अंतहीन युद्ध और बर्बादी में झोंकना चाहती है।

वे विकास का झांसा देकर सत्ता में आए थे और अपना सर्वश्रेष्ठ दे चुके हैं। उनके पास आपको देने के लिए अब कुछ नहीं है। उनके पास सबसे अच्छी एक ही चीज है, वह है नफरत। उन्होंने पूरे समाज को नफरत से भर देने की भरपूर कोशिश की है, अब भी कर रहे हैं।

जब मंच सजा कर खुलेआम नरसंहार का आह्वान किया जा रहा हो तब आपको तय करना है कि आपका धर्म क्या है और आप इस अधर्म के हिस्सेदार हैं या इस अधर्म को अपनाने से इनकार करते हैं।

(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)