मनीष गुप्ता हिंदू थे. पुलिसिया अत्याचार का शिकार हुए. हाथरस की बेटी हिंदू थी. अत्याचार हुआ, मारी गई और पुलिस ने आधी रात को पेट्रोल डालकर फूंक दिया. लखनऊ के विवेक तिवारी हिंदू थे. पुलिस की गोली से मारे गए. इंस्पेक्टर सुबोध कुमार हिंदू थे. लेकिन भीड़ ने उनकी हत्या की. उस भीड़ को संरक्षण दिया गया. विकास दुबे हिंदू था. राजनैतिक प्रशासनिक संरक्षण में गुंडा बना और गैरन्यायिक हत्या का शिकार हुआ.
अंतर देखिए. एक अधिकारी, एक कारोबारी, एक मैनेजर, एक आम लड़की, एक गैंगस्टर. सब अन्याय के एक ही तराजू में तौले गए. जिसे सुरक्षा मिलनी थी, जिसे सुरक्षा देनी थी, जिससे सुरक्षा की जानी थी और जिसे कानून को सजा देनी थी, सब के सब गैरन्यायिक और आपराधिक ढंग से मारे गए.
ऐसे तमाम हिंदुओं के अलावा इस फेहरिस्त में उन मुसलमानों को जोड़ लीजिए, जिन्हें सिर्फ मजहबी आधार पर सताया जाता है. पूरे उत्तर भारत में कौन सा प्रदेश है जहां लिंचिंग नहीं हुई हो.
गोरखपुर हत्याकांड की कहानी लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड से काफी मिलती जुलती है. यूपी पुलिस का कहना है कि वह हनुमान जी हो गई है. वह जिसकी तरफ ताक दे, वह मर ही जाता है. कोई रास्ते में चेकिंग करते हुए मर जाता है, कोई तलाशी लेते हुए मर जाता है. कोई इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि प्रदेश का मुखिया कहता है ठोंक दो.
पूरा प्रशासन मिलकर कानून, संविधान और अदालती व्यवस्था को ठोंक रहा है. जब कानून का शासन नहीं होता, तब यही होता है. इसे ही असली जंगलराज कहते हैं.
अत्याचारी प्रशासन किसी का नहीं होता. न हिंदू का, न मुसलमान का. न सवर्ण का, न दलित का. न स्त्री का, न पुरुष का. धर्म और जाति के आधार पर विभाजन सिर्फ और सिर्फ पार्टियों को सत्ता दिलाते हैं और अन्याय के पोषक होते हैं. जिन लोगों ने लोकतंत्र का निर्माण किया है, वे जानते थे कि धर्म, जाति, समुदाय से जुड़ी कुंठाएं प्रशासन का आधार नहीं हो सकतीं. एक निष्पक्ष और निरपेक्ष व्यवस्था ही न्यायपूर्ण हो सकती है.
लेकिन धर्म और जाति की राजनीति करने वाले इस व्यवस्था को ठोंक रहे हैं. जो बताते हैं कि हिंदू खतरे में है, अगर उन्हीं के राज में निर्दोष हिंदुओं को ठोंका जा रहा है तो हिंदुओं को खतरा किससे है?
यूपी चुनाव के दौरान रैलियों में कहानियां सुनाई जा रही थीं कि बिहार का लाल सूरत नौकरी करने जाता है तो उसकी मां बहुत डरती है क्योंकि रास्ते में यूपी पड़ता है. अब वे दिन आ गए हैं यूपी की माएं हाथ जोड़कर जिंदगी और न्याय के लिए गिड़गिड़ा रही हैं. दोस्तो! हिंदू वाकई खतरे में हैं. खतरा चोरों और ठकैतों से नहीं, अबकी बार खतरा उन चौकीदारों से है जिनसे आपने सुरक्षा की उम्मीद लगाई है.
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)