हरिद्वार में नफरती भाषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को चिट्ठी लिखी है। इन वकीलों ने मुख्य न्यायधीश से नफरती भाषणों पर संज्ञान लेने की अपील की है। बता दें कि 17 से 19 दिसंबर के बीच हरिद्वार में हुई साधु संतों की बैठक में देश के संवैधानिक मूल्यों और सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ लगातार भाषण हुए थे। अल्पसंख्यकों के खिलाफ हथियार उठाने तक की बात कही गई थी। हैरानी की बात यह है कि हरिद्वार में धर्म संसद आयोजित करने वालों और नफरती भाषण देने वालों का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया।
पत्र में वकीलों ने चीफ जस्टिस को विस्तार से बताया है कि कैसे नफरत भरे भाषणों के खिलाफ IPC की धारा 153, 153ए, 153बी, 295ए, 504, 506, 120बी, 34 के प्रावधानों के तहत कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। वकीलों ने सीजेआई से अनुरोध करते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
वरिष्ठ वकीलों ने चीफ जस्टिस को लिखी चिट्ठी में कहा है कि पुलिस कार्रवाई न होने पर तुरंत न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है, ऐसे में मौजूदा समय में ऐसी कार्रवाई बेहद आवश्यक हो जाती है। चिट्ठी के मुताबिक, दिल्ली और हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में न सिफ नफरती भाषण दिए गए, बल्कि एक समुदाय के नरसंहार की खुला आह्वान किया गया। वकीलों के खत में कहा है कि यह न सिर्फ भारत की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है, बल्कि लाखों मुस्लिम नागरिकों की जिंदगी को खतरे में डालने का मामला है।
चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र में दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, सलमान खुर्शीद और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश जैसे बड़े वकीलों के भी नाम हैं। नरसंहार की बातों और नफरती बयानबाजी को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी आलोचना हुई थी। चार दिन पहले एक पुलिस केस भी दर्ज किया गया था, लेकिन इसमें सिर्फ एक व्यक्ति को नामजद किया गया है. बाद में दो अन्य व्यक्तियों धर्म दास और साध्वी अन्नपूर्णा का नाम भी इसमें शामिल किया गया।