भारत में किसी फर्जी हिंदू की अभी इतनी औकात नहीं हुई है कि तुलसीदास से उनका “ग़रीबनवाज़” छीन ले। हालांकि, वे अश्लील कोशिश करते रहते हैं।
किसी कम्पनी ने त्योहारों के मौसम में एक विज्ञापन दिया। विज्ञापन का शीर्षक था- “जश्न-ए रिवाज़”। कम्पनी के ऐतिहासिक गुलामों को ये बात बहुत बुरी लगी क्योंकि ये दो शब्द उर्दू के हैं। उर्दू के दो शब्द सुनकर फर्जी हिंदुओं का धर्म खतरे में आ जाता है।
अब आप बताएं कि भगवान राम कहां पैदा हुए? हमारे अवध में। मनुष्य के रूप में राम का सबसे बड़ा भक्त कौन हुआ? बेशक रामचरितमानस रचयिता महाकवि तुलसीदास।
तुलसीदास जी ने सिर्फ रामचरितमानस में अरबी-फारसी मूल के लगभग हजार शब्दों का प्रयोग किया है. उन्होंने भगवान राम के लिए ग़रीबनवाज़ शब्द का इस्तेमाल किया है।
रामचरितमानस सिर्फ एक धर्मग्रंथ नहीं है। वह भारत की पारंपरिक बहुलता का ऐतिहासिक दस्तावेज भी है। अवधी, भोजपुरी, ब्रज, बुंदेली समेत कई बोलियां इसे अपना मानती हैं।
शाहजहां के शासनकाल में साअद उल्लाह मसीह पानीपती ने फारसी भाषा में ‘रामायण मसीही’ लिखी। उर्दू भाषा में 1855 में प्रथम रामायण ‘रामायण खुश्तर’ लिखी गई थी। यह रामचरितमानस का उर्दू अनुवाद है। रामचरितमानस के अनेक उर्दू अनुवाद हुए हैं। 19वीं सदी के उर्दू भाषा विद्वान मुंशी द्वारका प्रसाद उफुक की कालजयी कृति है ‘मसनवी यक काफिया’ जो राम कथा पर आधारित है।
ये सब चीजें जानने और समझने के लिए नेहरू जैसा व्यक्तित्व चाहिए। पैदाइशी दंगाई इसे नहीं समझते। उर्दू भारत में पैदा हुई भाषा है जो अरबी, फ़ारसी और स्थानीय बोलियों को मिलाकर विकसित हुई। खड़ी बोली इसके बहुत बाद में पैदा हुई। भारत एक इसी मामले में धनी है कि यहां सैकड़ों भाषाएं और बोलियां हैं।
इसीलिए महात्मा गांधी संस्कृतनिष्ठ हिंदी की जगह हिंदुस्तानी लिखने बोलने के पक्षधर थे। इसीलिए मुंशी प्रेमचंद हिंदुस्तानी में लिखते थे।
अपने ही देश में पैदा हुई एक भाषा से नफरत कीजिएगा तो नफरत की यह टोकरी बड़ी होती जाएगी। अब जबरन नासिका बोलने के चक्कर में अपनी नाक कटवाने पर क्यों तुले हैं? हमारा जश्न-ए-रिवाज़ यही है कि हम इस धरती पर मौजूद हर धर्म, हर भाषा, हर आस्था, हर परंपरा का जश्न मनाते आये हैं, मनाते रहेंगे।
उन्मादी मूर्खों की बात पर कान मत दीजिए। मेरी बात सुना कीजिए, फायदे में रहेंगे।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)