500 से ज्यादा मौतों के बाद भी सरकार किसान आंदोलन को लेकर क्रूरतापूर्ण बेपरवाही दिखा रही है

किसान आंदोलन इस बात का भी इंडीकेटर है कि भारत में लोकतंत्र कितना बचा है! आजादी के पहले नील विद्रोह, चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह जैसे तमाम आंदोलन हुए. ये ऐसा समय था जब भारत पर अंगरेजों ने कब्जा किया हुआ था और आप लोकतंत्र की उम्मीद नहीं करते थे. फिर भी, अंगरेजी सरकार में ज्यादातर किसान आंदोलन सफल हुए.

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स्वदेशी सरकार से इस बात से उम्मीद नहीं की जाती है कि वह दमनकारी होगी और जनता की आवाज दरकिनार करेगी. लेकिन आज वही हो रहा है. दस महीने से न तो किसानों की मांग पर कान दिया गया है, और न ही बातचीत की जा रही है. 500 से ज्यादा मौतों के बाद भी सरकार किसान आंदोलन को लेकर क्रूरतापूर्ण बेपरवाही दिखा रही है.

अंगरेज बहादुर के शासन में ऐसा होता था कि फिरंगी हुकूमत जनता की बात न मानकर दमन करती थी. लेकिन भारत में यह पहली सरकार है जो भारत के सबसे आम लोगों यानी किसानों की बात सुनने से इनकार रही है और दस महीने से आंदोलन चल रहा है.

किसान हमेशा अपनी मांगों के लिए आंदोलन करते रहे हैं लेकिन 2014 से पहले भारत के इतिहास में सारे किसान आंदोलन स्थानीय स्तर पर रहे. अंगरेजी शासन में भी, और उसके बाद भी, ऐसा होता रहा है कि अगर किसान कुछ हजार या कुछ लाख की तादाद में एकत्र होकर कोई मांग रखते थे तो वह मान ली जाती थी.

स्वतंत्रता आंदोलन के बाद यह पहला किसान आंदोलन है जो इतने बड़े पैमाने पर है, इतनी बड़ी संख्या में किसान शामिल हैं और यह इतने लंबे समय से चल रहा है. इस आंदोलन में भी अगर एमएसपी की कानूनी गारंटी दे दी जाती तो शायद ये आंदोलन खत्म हो जाता.

ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो वहां भी किसान आंदोलन करते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसानों को नहीं सुना. वे हिंदू मुस्लिम एजेंडे के तहत चुनाव जीतते रहे. वे भारत के इतिहास में अकेले ऐसे शासक हैं जिनको न जनता की आवाज सुनना पसंद है, न उन्होंने कभी सुनी. उनके अहंकार का ये स्तर है कि अगर आरएसएस के लोग भी किसी भी मांग को लेकर आंदोलन करें तो वे या तो दमन करेंगे या कान ही नहीं देंगे.

भाषण देकर किसानों को उकसाने वाले मंत्री को अब तक हटाया नहीं गया है. कहा जा रहा है कि सरकार ऐसा इसलिए कर रही है ताकि यूपी के लोगों को ये लगे कि सरकार ब्राह्मणों का साथ दे रही है. क्या उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण इतने बुद्धिहीन और क्रूर हैं कि वे किसान भाइयों का गाड़ी से कुचलकर मारा जाना पसंद करेंगे? क्या यूपी के ब्राह्मण ऐसा करने वाले का साथ देना पसंद करेंगे? क्या पूरे यूपी में टेनी से बेहतर ब्राह्मण नहीं है जिसे सरकार आगे करके ब्राह्मण हितैशी बन जाए? क्या यूपी का ब्राह्मण अपना प्रतिनिधित्व और अपनी छवि टेनी में देखता है?

क्या यूपी के किसान बर्बाद खेती, बेरोजगारी, महंगाई, डीजल के दाम, फसलों के दाम के मुद्दे को भूलकर अंतत: हिंदू मुसलमान के मुद्दे पर ही वोट करना चाहता है?

उन्हें जनता के दबाव, अपनी इज्जत, देश का सम्मान, लोकतंत्र की लाज, राजधर्म… किसी चीज की परवाह नहीं है. उन्हें शायद लगता है कि अगर वे जनता की बात मान लेंगे तो उनकी महानता में कमी आ जाएगी. इसलिए वे दिनोदिन बौने होते जा रहे हैं. दुनिया का हर तानाशाह ऐसा ही होता है- घाघ, घुन्ना और घुटा हुआ.

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)