कृष्णकांत
सुबह आंख खुलते ही खबरों की फीड से मन उदास हो जाता है। आज का दिन अलग कहां से होता! पहली ही खबर दिखी: Hours after testing positive, 26-yr-old doctor dies of Covid complications। डॉ अनस मुजाहिद मात्र 26 साल के थे। जीटीबी अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे थे। उन्हें तबियत खराब लगी। टेस्ट करवाया। पॉजिटिव पाए गए। रात को आठ बजे टेस्ट हुआ, तबियत बिगड़ने लगी और तीन बजे तक उनकी जान चली गई। उनके प्रोफेसर का कहना है कि वह बहुत शर्मीला और सीधा बच्चा था। ऐसे प्रतिभाशाली डॉक्टर को खो देना दिल तोड़ने वाला है। उसका काम बहुत अच्छा था। मुझे उस पर गर्व है। वह शहीद हुआ है, डॉ अनस के सहयोगी डॉ. शाज बेग का कहना है कि हमने उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन नहीं बचा पाए। सीनियर डॉक्टर संदीप यादव ने कहा कि हमने जिन डॉक्टरों को खोया है, अनस उनमें से सबसे युवा वॉरियर थे।
अनस की कहानी पढ़ते हुए मेरी आंखों में अपनी जिंदगी घूम रही थी। 26 साल की उम्र वह होती है, जब आप अपने सपनों को आकार देने की कोशिश करने लगते हैं। यह हृदय विदारक है। दिल्ली के सरोज अस्पताल में कुल 80 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं और एक सीनियर सर्जन डॉ. एके रावत की मौत हो गई है। इनमें से 12 अस्प्ताल में भर्ती हैं। जो हमें बचाएंगे, उनकी खुद की जान खतरे में है।
गांव में दर्जनों लोग मारे गए हैं। कुछ रिश्तेदारों के यहां मौतें हुई हैं। गांव की हालत शहरों से ज्यादा डरावनी है। पिता जी के एक बचपन के दोस्त थे, कोरोना उन्हें भी लील गया। उनके एक और दोस्त के दोनों जवान बेटे मारे गए। उन्होंने अपने बेटों को बचाने के लिए 35 से 40 से लाख रुपये खर्च कर डाला, पर नहीं बचा पाए। वह परिवार उजड़ गया। बेहद सामान्य पृष्ठभूमि का एक मेहनती बाप सबकुछ लुटाकर बदहवास खड़ा है। ऐसे कितने परिवार हैं, कितने बाप हैं, कितने बेटे हैं, बेटियां हैं। उनकी दुनिया उजड़ रही है।
चारों तरफ लाशें हैं और चीख है। कलेजा फटता है। दिमाग सुन्न हो गया है। उस गांव की खबर शहर तक नहीं आएगी, जहां पर पैरासिटामॉल और मल्टीविटामिन तक मयस्सर नहीं है। सोचता हूं कि इसके पहले दिल्ली की कुर्सी पर ऐसे नृशंस और बर्बर लोग कब बैठे थे?