पूर्व आईपीएस का लेख: तड़ीपारों के हाथ में गृहमंत्रालय का प्रभार, दोनों गृह मंत्रियों का रहा है दामन दाग़दार

देश के गृह मंत्रालय का नेतृत्व जिन नेताओ के पास है, वे हत्या और हत्या के प्रयास जैसी संगीन धाराओं के मुल्जिम भी है। खुद गृहमंत्री अमित शाह भी, एक समय अदालत के आदेश से, अवांछित और तड़ीपार किये जा चुके हैं, और उनके ऊपर अब भी पूर्व सीबीआई जज ब्रजमोहन लोया की संदिग्ध मृत्यु के संबंध में संदेह उठ खड़ा हुआ है।

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जज लोया का मुकदमा, शायद देश के न्यायिक और क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का अकेला मुकदमा है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी एफआईआर और पुलिस तफ्तीश के ही, एक सामान्य मौत का मामला मान लिया। सुप्रीम कोर्ट का इसे सामान्य मौत मान लेने का आधार भी बड़ा अजीबोगरीब है। अदालत के अनुसार, लोया के साथ कुछ साथी जज भी थे। उन्होंने लोया की मृत्यु को संदिग्ध नहीं कहा तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जज झूठ बोल नहीं सकते अतः उनके बयानों पर शक करने का कोई आधार नहीं है।” भारतीय साक्ष्य अधिनियम, यानी इंडियन एविडेंस एक्ट की यह एक दुर्लभ व्याख्या है!

जज बीएम लोया की संदिग्ध मौत की एफआईआर दर्ज न हो और न ही उसकीं जांच हो, सिर्फ इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज किये जाने का यह एक अनोखा मामला भी है। इस केस की तगड़ी पैरवी भी हुयी। जज लोया के बेटे से टीवी चैनल पर यह कहलवाया भी गया कि ‘उसके पिता की मृत्यु स्वाभाविक है।’ जब किसी संदिग्ध मृत्यु के मामले में एफआईआर तक दर्ज न होने और उसकी जांच न होने के लिये सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगा दी जाय और ऐसे केस की जमकर पैरवी की जाय तो ऐसे मामले में, संदेह और गहराता है, खत्म नहीं होता है।

अदालतो में किसी संदिग्ध अपराध के बारे में एफआईआर दर्ज कराने और उसकीं जांच कराने के लिये याचिकाएं तो अक्सर दायर होती रहती हैं, पर न एफआईआर दर्ज हो न पुलिस तफ्तीश, इसके लिये अब तक दो ही याचिकाएं, मेरी जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी हैं, एक तो जज लोया का मामला, दूसरा राफेल सौदा ! यह 2014 के बाद का न्यू इंडिया है। अब अगर पुलिस थाने मुक़दमे दर्ज करने में हीलाहवाली करें तो हम सिर्फ उन्हें ही दोष क्यों दे?

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी कहते है कि, ‘विधायक, सांसद, मंत्री बनने के पहले मैं क्या था,  मालूम है ना?’ यह बात वे अकेले में नही कह रहे थे, बल्कि धमकी भरे अंदाज़ में एक सभा मे कह रहे थे। यह कहते हुए, उनका  वीडियो सोशल मीडिया पर खूब चल भी रहा है। पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भी बात कर लें, तो यह भी जान लीजिए कि, गृहमंत्री बनने के पहले वे क्या थे या उनपर क्या आरोप लगे थे?

अमित शाह के बारे में, अब कुछ और तथ्य पढिये-

  • गृहमंत्री अमित शाह को मार्च 2011 में सीबीआई ने ही, सुप्रीम कोर्ट में “हफ्ता लेने वाले गैंग का नेता” कहा था। सीबीआई ने क्या कहा था, यह गूगल पर मौजूद है।
  • जो अदालत में सीबीआई ने कहा है, वह इस प्रकार है,

“शाह का गैंग नेताओं, पुलिस और क्रिमिनल का गठजोड़ है। शाह गुजरात में राजनीति, पुलिस और अपराधी के गठजोड़ से जबरन वसूली और धमकी देने का रैकेट चलाते हैं।”

  • हालांकि सीबीआई का यह ऑब्जर्वेशन सुप्रीम कोर्ट के जज पी सदाशिवम की बेंच ने खारिज कर दिया था।
  • पी सदाशिवम वही जज हैं जो बाद में केरल के राज्यपाल बने। इनकी नियुक्ति पर विवाद भी हुआ था।
  • जिस मामले में सीबीआई का यह ऑब्ज़र्वेशन था उसी केस की सुनवाई, मुंबई स्पेशल सीबीआई जज ब्रजमोहन लोया कर रहे थे औऱ फैसले के पहले ही नागपुर के एक गेस्ट हाउस में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी। जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।

यह तो हुई, गृह मंत्रालय में, कैबिनेट मंत्री की बात। अब राज्यमंत्री महोदयों को देखें तो दो गृह राज्यमंत्री, निशीथ प्रमाणिक और अजय मिश्र टेनी दोनो ही हत्या के अपराध मे आरोपी हैं, और जमानत पर हैं।

गृह राज्यमंत्री, निशीथ प्रमाणिक के ही चुनावी हलफनामे के अनुसार, उन पर हत्या, हत्या की कोशिश, डकैती, लूट, महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़ सहित कई अन्य गैर जमानती मामले दर्ज हैं। कुछ मुक़दमे अदालत में चल रहे है। इनकी नागरिकता भी संदिग्ध है और डिग्री भी फर्जी बताई जा रही है। पर सरकार में बैठे मंत्रियो की फर्जी डिग्रियों की जांच कराए जाने की परम्परा फिलहाल स्थगित है। यह सारी सूचना एडीआर की वेबसाइट पर है। जिसके अनुसार, ‘गृह राज्य मंत्री बने कूच बिहार निर्वाचन क्षेत्र के सांसद, निशिथ प्रमाणिक ने अपने खिलाफ हत्या से जुड़े एक मामले की घोषणा की है। वह 35 वर्ष के मंत्री परिषद के सबसे युवा चेहरे भी हैं।’

अब दूसरे गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की पृष्ठभूमि देखिए। उन्हें भी अपने इसी पृष्ठभूमि पर गर्व है। वे कहते भी हैं, मंत्री बनने के पहले वे क्या थे,उसे सब जान लें।

  • अजय मिश्रा पर हत्या, मारपीट, धमकी देने जैसी तमाम घटनाओं में 4 मुकदमे चल रहे हैं।
  • दो मुकदमों में अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू भी नामजद रहा है।
  • 5 अगस्त 1990 को तिकुनिया थाने में अजय मिश्रा के साथ 8 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था. उन पर हथियारों से लैस होकर मारपीट का आरोप लगा था।
  • 8 जुलाई 2000 को प्रभात गुप्ता की हत्या में अजय मिश्रा समेत चार लोग नामजद किए गए थे।
  • 31 अगस्त 2005 को ग्राम प्रधान ने अजय मिश्रा समेत चार लोगों पर घर में घुसकर मारपीट और दंगा फसाद का मुकदमा दर्ज कराया था।
  • 24 नवंबर 2007 को अजय मिश्रा समेत तीन लोगों पर घर में घुसकर मारपीट का चौथा मुकदमा दर्ज हुआ।
  • अजय मिश्रा पर 2005 और 2007 के मारपीट के मुकदमों में अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू भी नामजद था।

अजय मिश्रा पर दर्ज चार गंभीर मुकदमों में सबसे गंभीर मुकदमा प्रभात गुप्ता मर्डर केस का था. हत्या के इस मुकदमे में 29 जून 2004 को अदालत में सुनवाई करने वाले जज ने अजय मिश्रा को हत्या के मुकदमे में बरी किया और 30 जून को जज साहब रिटायर हो गये। इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील दायर की गयी है और वर्तमान में अजय मिश्र हाई कोर्ट से जमानत पर हैं। 12 मार्च 2018 से हाई कोर्ट ने भी इस मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर रखा है। बीते 3 सालों से फैसला सुरक्षित रखने पर हाई कोर्ट डबल बेंच में अपील दायर की है जिस पर अक्टूबर महीने में सुनवाई होनी है।

चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले समूह एडीआर की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय मंत्रिमंडल के 78 मंत्रियों में से 42 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की घोषणा की है। इनमें से चार पर हत्या के प्रयास से संबंधित मामले भी हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनावी हलफनामों का हवाला देते हुए कहा कि इन सभी मंत्रियों के किए गए विश्लेषण में 42 प्रतिशत (33) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने का उल्लेख किया है। करीब 24 यानी 31 प्रतिशत मंत्रियों ने हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती आदि समेत गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की है।चार मंत्रियों ने हत्या के प्रयास से जुड़े मामलों की घोषणा की है। ये मंत्री हैं जॉन बारला, प्रमाणिक, पंकज चौधरी और वी मुरलीधरन।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में चुने गए सांसदों में 42% सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। ऐसे लोग विधायिकाओं में न पहुंचे, इसके लिये चुनाव सुधार ज़रूरी है, पर ऐसे लोग मंत्री न बनाये जांय यह तो प्रधानमंत्री और राज्यो के मुख्यमंत्री तो सुनिश्चित कर ही सकते हैं? अगर यह सब भी कतिपय राजनीतिक कारणों और विवशता से सम्भव न हो, कम से कम गृह मंत्रालय को तो दागी नेताओ से मुक्त किया ही जा सकता है।

(लेखक पूर्व आईपीएस हैं, ये उनके निजी विचार हैं)