यादों में ‘आवारा शोमैन’: भारत से ज्यादा रूस और चीन में लोकप्रिय थे राज कपूर

रेहान फ़ज़ल

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राज कपूर के बारे में एक कहानी बार बार सुनाई जाती है कि पचास के दशक में जब नेहरू रूस गए तो सरकारी भोज के दौरान जब नेहरू के बाद वहाँ के प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन के बोलने की बारी आई तो उन्होंने अपने मंत्रियों के साथ ‘आवारा हूँ’ गा कर उन्हें चकित कर दिया। 1996 में जब राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर और बेटी ऋतु नंदा चीन गए तो उनकी आँखों में उस समय आंसू आ गए जब चीनी लोगों ने उन्हें देखते ही ‘आवारा हूँ’ गाने लगते। उन्हें ये नहीं पता था कि ये दोनों राज कपूर के बेटे बेटी थे, लेकिन वो ये गीत गा कर राज कपूर और भारत का सम्मान कर रहे थे। कहा तो ये भी जाता है कि ‘आवारा’ माओ त्से तुंग की पसंदीदा फ़िल्म थी।

राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ने मुझे बताया था ” 1993 में जब रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन भारत आए और उन्हें बताया गया कि वो उनसे मिलना चाहती हैं, तो न सिर्फ़ वो इसके लिए तैयार हो गए, बल्कि उन्होंने उनकी किताब पर एक नोट लिखा, “मैं आपके पिता से प्रेम करता था। वो हमारी यादों में आज भी मौजूद हैं।” आख़िर राज कपूर की लोकप्रियता का राज़ क्या था? एक बार जब राज कपूर लंदन में बीबीसी के बुश हाउश दफ़्तर में आए थे तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा था, “ये सन् 1954 का किस्सा है जब मैं अपनी दो तस्वीरें ले कर रूस गया था। उनमें से एक थी ‘आवारा’। इस तस्वीर से हमारा रूस के लोगों से पहला परिचय हुआ। वो थोड़ा बहुत हिंदुस्तान को जानते थे, लेकिन इन तस्वीरों के ज़रिए वो हिंदुस्तान के और क़रीब आए।”

“आवारा के क़िरदार की शक्लसूरत कुछ राज कपूर जैसी थी, लेकिन दिल उसका अवाम का था, हिंदुस्तान के उस नौजवान का था जो आज तक उसी प्यार से धड़कता है। दरअसल उन्होंने राज कपूर को नहीं अपनाया, उन्होंने हिंदुस्तान के उस नौजवान को अपनाया जिसका दिल बार बार यही कहता था।”

“आबाद नहीं, बर्बाद सही, गाता हूँ ख़ुशी के गीत मगर

अनजान मगर सुनसान डगर का प्यारा हूँ, आवारा हूँ !”

राज कपूर की परवरिश और उन्हें राज कपूर बनाने में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर का बहुत बड़ा हाथ था। उन्होंने राज कपूर के कहने पर उन्हें 1 रुपए महीने की नौकरी दी थी और उनका काम था स्टूडियो में झाड़ू लगाना। राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ने मुझे बताया था, “राज कपूर दूसरे बच्चों की तरह ट्राम से स्कूल जाते थे। एक दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। राज ने अपनी माँ से पूछा कि क्या वो आज कार से स्कूल जा सकते हैं? उन्होंने कहा मैं तुम्हारे पिता से पूछ कर बताती हूँ। पृथ्वीराज कपूर ने जब ये सुना तो उन्होंने कहा इस बारिश में पानी के थपेड़े झेलते हुए स्कूल जाने में भी एक ‘थ़्रिल’ है। उसको इसका भी तज़ुर्बा लेने दो।” राज कपूर दरवाज़े के पीछे ये बातचीत सुन रहे थे। उन्होंने अपने पिता से खुद कहा, “सर, मैं ट्राम से ही स्कूल जाउंगा।” उन्होंने बताया, “पृथ्वीराज कपूर नें जब बालकनी से राज को भीगते हुए स्कूल जाते देखा तो उन्होंने अपनी पत्नी रामसमी से कहा, एक दिन इस लड़के के पास उसके पिता से कहीं ज़्यादा फ़ैंसी कार होगी।’

कपूर ख़ानदान पर बहुचर्चित किताब ‘द कपूर्स- द फ़र्स्ट फैमिली ऑफ़ इंडियन सिनेमा’, लिखने वाली मधु जैन भी इसी तरह का एक और किस्सा बताती हैं। वो कहती हैं, “एक बार जब पृथ्वीराज कपूर अपने घर से बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि राज कपूर खड़े हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम अब तक स्टूडियो क्यों नहीं गए? वो अपनी कार में बैठे और तेज़ी से आगे निकल गए। दोनों को एक ही जगह जाना था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें अपनी कार में नहीं बैठाया और राज कपूर को वहाँ जाने के लिए बस लेनी पड़ी। राज कपूर के बारे में एक और कहानी मशहूर है कि वो कभी बिस्तर पर नहीं सोते थे, हमेशा ज़मीन पर सोते थे। उनकी ये आदत भारत के पूर्व राष्ट्पति ज्ञानी जैल सिंह से मिलती थी।

ऋतु नंदा ने बताया ,”राज कपूर जिस भी होटल में ठहरते थे, उसकी पलंग का गद्दा खींच कर ज़मीन पर बिछा लेते थे। इसकी वजह से वो कई बार मुसीबतों में फंसे। लंदन के मशहूर हिल्टन होटल में जब उन्होंने ये हरक़त की तो होटल के प्रबंधकों ने उन्हें चेताया कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन जब उन्होंने दोबारा वही काम किया, तो उन्होंने उन पर जुर्माना लगा दिया। वो पाँच दिन उस होटल में रहे और उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी पलंग का गद्दा ज़मीन पर खींचने के लिए रोज़ जुर्माना दिया।”

राज कपूर अपनी फ़िल्मों में अक्सर वो सब कुछ दिखाते थे, जिससे वो ख़ुद गुज़र चुके होते थे। वो अपने बारे में ख़ुद कहा करते थे कि वो नग्नता के उपासक हैं। इसके लिए वो उर्दू का एक शब्द इस्तेमाल करते थे, ‘मुक़द्दस उरियाँ’ यानि पवित्र नग्नता और इसका कारण वो बताते थे कि बचपन में वो अपनी माँ के साथ नहाया करते थे। उनकी बेटी ऋतु नंदा  ने उनके बचपन का एक किस्सा सुनाया “पापा जब डेढ़ या दो साल के थे तो उनके गाँव में कुछ औरतें भुने चने बेचा करती थी। एक बार राज चने लेने गए। उन्होंने एक कमीज़ पहनी हुई थी और नीचे कुछ भी नहीं पहना था। उस छोटे से लड़के को नंगा देख कर चने बेचने वाली लड़की ने कहा कि अगर वो अपनी कमीज़ ऊपर उठा कर उसकी कटोरी बना ले, तो वो उन्हें चने दे देगी। राज ने जब ऐसा किया तो उस लड़की का हंसते हंसते बुरा हाल हो गया।”

उन्होंने बताया , “लेकिन राज कपूर को ये घटना याद रही और चना उनके जीवन में एक ‘सेक्स ऑबजेक्ट’ बन गया। कई सालों बाद जब उन्होंने ‘बॉबी’ बनाई तो उन्होंने ऋषि कपूर और डिंपल पर एक सीन फ़िल्माया जिसमें डिंपल एक लाइब्रेरी में बैठी हुई हैं। ऋषि उनका ध्यान खींचने के लिए शीशा चमकाते हैं। जब डिंपल बाहर आती हैं तो वो कहती हैं, चलो चाय पिएं। ऋषि उनसे कहते हैं, चाय नहीं, चलो चने खाते हैं। राज कपूर ने उस गाँव वाले चने मांगने की घटना को अपने अंदाज़ में सेल्यूलाइड पर उतारा था।

नरगिस से पहली मुलाकात को पर्दे पर उतारा

इसी तरह उनकी फ़िल्म ‘बॉबी’ में एक सीन है जब ऋषि कपूर पहली बार डिंपल से मिलने उनके घर जाते हैं। ऋतु नंदा ने कहा, “उन दिनों नरगिस बड़ी स्टार बन चुकी थीं, जबकि राज कपूर किदार शर्मा के असिस्टेंट मात्र थे। वो अपनी फ़िल्म ‘आग’ महालक्ष्मी स्टूडियो में शूट करना चाहते थे। नरगिस की माँ जद्दन बाई वहाँ अपनी फ़िल्म ‘रोमियो-जूलियट’ शूट कर रही थीं। राज कपूर ये जानने के लिए कि स्टूडियो में कैसी सुविधाएं हैं, उनसे मिलने उनके घर पहुंच गए।” उन्होंने बताया “जब राज कपूर ने घंटी बजाई तो नरगिस पकौड़े तल रही थीं। जब उन्होंने दरवाज़ा खोला तो अनजाने में उनका बेसन से सना हाथ, उनके बालों से छू गया। राज कपूर ने नरगिस की उस छवि को पूरी उम्र याद रखा और जब उन्होंने ‘बॉबी’ फ़िल्म बनाई तो उन्होंने ऋषि और डिंपल पर हूबहू वही सीन फ़िल्माया।”

लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि नरगिस ने इस मुलाक़ात को किस तरह से लिया? टीजेएस जॉर्ज अपनी किताब ‘द लाइफ़ एंड टाइम्स ऑफ़ नरगिस’ में लिखते हैं, “अपनी सबसे करीबी दोस्त नीलम को वो घटना बताते हुए नरगिस ने कहा कि एक मोटा, नीली आँखों वाला लड़का हमारे घर आया था। उन्होंने नीलम को ये भी बताया कि ‘आग’ की शूटिंग के दौरान उस लड़के ने मुझ पर लाइन मारनी शुरू कर दी।” जब नरगिस राज कपूर की पहली फ़िल्म ‘आग’ में काम करने के लिए राज़ी हुई तो उनकी माँ ने ज़ोर दिया कि पोस्टर में उनका नाम कामिनी कौशल और निगार सुल्ताना से ऊपर रखा जाए। पृथ्वीराज कपूर के अनुरोध पर जद्दन बाई अपनी बेटी के लिए सिर्फ़ दस हज़ार रुपए की फ़ीस लेने पर राज़ी हो गईं। हाँलाकि बाद में नरगिस के भाई अख़्तर हुसैन ने ज़ोर दिया कि उनकी बहन का मेहनताना बढ़ा कर चालीस हज़ार रुपए कर दिया जाए, जो कि किया गया। ‘आग’ की शूटिंग खंडाला में हुई थी और नरगिस की शक्की माँ जद्दन बाई भी उनके साथ वहाँ गई थीं। जब राज कपूर अपनी फ़िल्म ‘बरसात’ की शूटिंग कश्मीर में करनी चाही तो जद्दन बाई ने साफ़ इंकार कर दिया।

बाद में महाबलेश्वर को ही कश्मीर बना कर फ़िल्म की शूटिंग हुई। उधर कपूर ख़ानदान में भी इस रोमांस को लेकर काफ़ी तनाव था। पृथ्वीराज कपूर ने अपने बेटे को समझाने की कोशिश की, लेकिन राज कपूर का इस पर कोई असर नहीं हुआ। ‘आवारा’ के फ़्लोर पर जाते जाते नरगिस की माँ का निधन हो गया। उसके बाद उनपर रोकटोक लगाने वाला कोई नहीं रहा। ‘बरसात’ फ़िल्म बनते बनते नरगिस राज कपूर के लिए पूरी तरह से कमिट हो गईं थीं। मधु जैन लिखती हैं, “नरगिस ने अपना दिल, अपनी आत्मा और यहाँ तक कि अपना पैसा भी राज कपूर की फ़िल्मों में लगाना शुरू कर दिया। जब आरके स्टूडियो के पास पैसों की कमी हुई तो नरगिस ने अपने सोने के कड़े तक बेच डाले। उन्होंने आरके फ़िल्म्स के कम होते ख़ज़ाने को भरने के लिए बाहरी प्रोड्यूसरों की फ़िल्मों जैसे ‘अदालत’, ‘घर’ ‘संसार’ और ‘लाजवंती’ में काम किया।”

बाद में राज कपूर ने उनके बारे में एक मशहूर लेकिन संवेदनहीन वक्तव्य दिया, “मेरी बीबी मेरे बच्चों की माँ है, लेकिन मेरी फ़िल्मों का माँ तो नरगिस ही हैं।” नरगिस के साथ राज कपूर का एक और किस्सा हुआ था, जब एक निर्माता निर्देशक शाहिद लतीफ़ ने, जो उस समय इस्मत चुग़ताई के पति हुआ करते थे, नरगिस के पास शादी का प्रस्ताव भेजा था। मधु जैन लिखती हैं कि एक बार राज कपूर ने ख़ुद बताया था, “हम दोनों एक पार्टी में जा रहे थे। हमें देर हो रही थी। जब मैं नरगिस के पास गया तो उसके हाथों में एक काग़ज़ था। मैंने उससे पूछा कि ये क्या है? उन्होंने कहा, कुछ नहीं, कुछ नहीं।।। और ये कहते हुए उन्होंने वो कागज़ फाड़ डाला। जब हम दोनों कार के पास पहुंचे तो मैंने नरगिस से कहा कि मैं अपना रूमाल भूल आया हूँ। मैं कमरे में वापस गया। तब तक नौकरानी कमरे में झाड़ू लगा कर कागज़ के उन टुकड़ों को ‘वेस्ट पेपर बास्केट’ में डाल चुकी थी।”

वो लिखती हैं, “अगले दिन बहुत जतन से मैंने कागज़ के एक एक टुकड़े को जोड़ा और तब मुझे पता चला कि एक निर्माता ने चिट्ठी लिख कर नरगिस को शादी का प्रस्ताव भेजा है। मैनें उस पत्र को बाकायदा फ़्रेम कराया और पूरे दृश्य को हूबहू संगम फ़िल्म में फ़िल्माया।” जब नरगिस और राजकपूर का ‘ब्रेक अप’ हुआ तो राज ने उसे बहुत बुरी तरह से लिया। उनकी पत्नी कृष्णा कपूर ने बनी रूबेन को बताया था कि ‘कई रातों तक राज कपूर देर रात घर लौटते थे। उन्होंने बहुत शराब पी रखी होती थी। वो अपने टब में लेट कर बुरी तरह से रोया करते थे। मुझे पता था कि वो नरगिस के लिए रो रहे हैं।’ शराब से राज कपूर का एक ख़ास रिश्ता हुआ करता था। रणधीर कपूर बताते हैं कि वो हमेशा ‘जॉनी वॉकर’ ब्लैक लेबल व्हिस्की पिया करते थे, वो भी लंदन से ख़रीदी हुई।

मधु कपूर अपनी किताब में ऋषि कपूर को कहते हुए बताती हैं, “राज कपूर अपनी ब्लैक लेबल व्हिस्की पर अपना बहुत अधिकार जताते थे। वो जब पार्टियों में भी जाते थे अपनी शराब घर से ले जाते थे। शराब देने में भी वो एक तरह की जाति व्यवस्था का पालन करते थे। लंदन से ख़रीदी हुई ब्लैक लेबल वो खुद पीते थे और अपने बहुत ख़ास लोगों को पिलाते थे।” वो आगे लिखती हैं, “तनूजा उनमें से एक थीं। दुबई से ख़रीदी हुई ब्लैक लेबल वो अपने दूसरे दोस्तों के लिए रखते थे और आख़िर में दिल्ली और मुंबई से ख़रीदी हई ब्लैक लेबल उनके बेटों के हिस्से में आती थी। रणधीर कपूर को बहुत बुरा लगता था कि तनूजा को तो लंदन में ख़रीदी हुई व्हिस्की मिल रही है और उन्हें भारत में ख़रीदी हुई।”

राज कपूर बहुत ज़बरदस्त मेहमाननवाज़ थे। जब वो दावत देते थे तो उनकी मेज़ तरह तरह के व्यंजनों से भरी रहती थी। लेकिन राज कपूर खुद बहुत कम खाते थे। उनका पसंदीदा भोजन पाव, अंडे और थोड़ी दाल हुआ करती थी। सालों तक वो दिन का खाना नहीं खाते थे और रात को भी जब वो काफ़ी देर से लौटते थे तो सिर्फ़ तले हुए अंडे खा कर सो जाते थे। वो हमेशा एंबेसडर कार पर चला करते थे। उनके पास मर्सिडीज़ भी थी, लेकिन उस पर सिर्फ़ उनकी पत्नी कृष्णा बैठती थीं। 1988 में उन्हें ‘दादा साहेब फाल्के’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जब वो सिरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम में पुरस्कार लेने पहुंचे तो उन्हें दमे का ज़बरदस्त दौरा पड़ा। उस समय पत्रकार प्रदीप सरदाना वहाँ मौजूद थे।

सरदाना बताते हैं, “जब राज कपूर के नाम की घोषणा हुई तो वो खड़े होने की स्थिति में भी नहीं थे। राष्ट्रपति वेंकटरमण सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए मंच से खुद नीचे उतर कर आए और उन्होंने राज कपूर को सम्मानित किया। उनको फिर कुछ लोग बाहर ले गए। मैं भी भागता हुआ बाहर पहुंचा।” वो बताते हैं, “राष्ट्रपति की ही एंबुलेंस से उन्हें एम्स ले जाया गया। जब स्ट्रेचर आई तो राज कपूर ने उस पर लेटने से मना कर दिया। उनको एंबुलेंस में बैठाया गया। ड्राइवर बहुत तेज़ चला रहा था। एक बार जब उसने ब्रेक लगाया तो राज कपूर सामने मेरे कंधों के ऊपर आकर गिरे। राज कपूर ने चिल्ला कर ड्राइवर से कहा, भाई धीरे चलाओ। मारोगे क्या।

जब वो एम्स पहुंचे तो राज कपूर की तबियत थोड़ी ठीक हुई। तभी उन्हें वहाँ देखने मशहूर अभिनेता कमल हासन पहुंच गए। राज कपूर ने उनसे थोड़ी बात की, लेकिन तभी उनकी तबियत फिर बिगड़ने लगी। सरदाना आगे बताते हैं, “डाक्टरों ने तय किया कि उन्हें आईसीयू में ले जाया जाए। जब वो वहाँ भर्ती हो गए तो डाक्टरों ने मुझसे कहा, अब आप जाइए। यहाँ आपका कोई काम नहीं है। जैसे ही राज कपूर ने ये सुना वो बोले, ‘नो नो नो डाक्टर! इन्हें आप यहीं रहने दीजिए।’ मैं वहाँ रुक गया। फिर जब उनकी तबियत और बिगड़ने लगी, तो उन्हें लगा कि गड़बड़ है। बोले ‘मुझे आराम नहीं आ रहा। मुझे लगता है कि अब मैं ठीक नहीं होउंगा। लेट मी डाई।”

सरदाना कहते हैं, “मुझे उस समय नहीं पता था कि उनके ये शब्द उनके अंतिम शब्द बन जाएंगे। उसके थोड़ी देर बाद ही वो कोमा में चले गए। पूरे एक महीने तक वो इसी हालत में रहे और 2 जून, 1988 को रात 9 बजे उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।”

(लेखक बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है)