क्या न्यूज़ चैनलों के ‘चेहरे’ सरकार से सवाल करेंगे कि शराब की दुकानें क्यों खोलीं गईं?

गिरीश मालवीय

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न्यूज़ चैनलों पर आज से खुली शराब दुकानों के विजुअल दिखाए जा रहे हैं !…ढाई किलोमीटर लम्बी लाइनों में लोगो से पूछा जा रहा है. क्यो आए आप यहाँ? शर्माता सकुचाता आदमी मुँह पर कपड़ा बांधे हेलमेट लगाए जैसे तैसे जवाब दे रहा है.

न्यूज़ चैनलों को थोड़ी हिम्मत और करना चाहिए और राज्यों के वित्त मंत्रियों से पूछना चाहिए कि ये शराब की दुकानें क्यो चालू है वो फिर संवाददाता को बताएंगे कि आपके चैनलों को जो बड़े बड़े एड दिए जा रहे न वो इन्हीं शराब की दुकानों की कमाई से दिए जा रहे है. इसलिए वह उनसे पूछेंगे नही ओर जनता से पूछेंगे कि आप आते ही क्यो है यहाँ? शाम को वही संवाददाता दो घूँट चढ़ाकर कही बैठा मिलेगा आपको!

राज्य शराब की दुकान न खोले तो ओर क्या करे?

राज्यों के कुल राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा डीजल, पेट्रोल और शराब पर लगने वाले टैक्स से ही आता है. राज्यों के सेल्स टैक्स/वैट की जगह अब जीएसटी ने ले लिया है, जिससे उनके राजस्व का करीब आधा हिस्सा आता है. लॉकडाउन के दौरान शराब कारोबार बंद रहा है और सड़कों से माल ढुलाई भी बहुत कम हो रहा है, ऐसे में राज्यों के राजस्व को भारी नुकसान पहुंचने की पूरी आशंका है तो राज्य सरकारो के पास शराब की दुकानों को खोलने के अलावा चारा ही क्या है.

टीवी पर आपने लॉक डाउन के बाद की आर्थिक चुनोतियो पर कितनी बहस चलते देखी है! अभी भी हमारा मीडिया सही मुद्दों को सामने रखने के बजाए शराब की दुकानें के सामने लगती लाइने दिखाने में व्यस्त है क्योंकि शराब की दुकान पर लंबी लाइन का विजुअल दिखाना उसके लिए TRP हासिल करने का आसान रास्ता है सरकार से सवाल पूछना न्यूज़ चैनलों के दलाल मालिकों को कभी पसंद नही आएगा. इसलिए इंजॉय कीजिए.  लॉक डाउन में कुछ तो नया मसाला मिला!