अजमल अली खान
सियासत में साहित्य और अदब का साथ एक जमाने से रहा है सियासत में साहित्य से जुड़े लोगों की शुमार किया जाए तो एक लम्बी फ़ेहरिस्त है वो हरिवंश राय बच्चन से लेकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से होते हुये वसीम बरेलवी, नवाज़ देवबंदी और कुमार विश्वास तक मगर इन लोगों ने सियासत से लम्बे अरसे तक नहीं जुड़े रहे लेकिन अभी जिन शायर की बात हो रही है वो है यूपी के प्रतापगढ़ में जन्मे इमरान खान प्रतापगढ़ी की है। यूँ तो प्रतापगढ़ राजाओं और महरजाओं के लिये जाना जाता है मगर अब लोग इमरान की वजह से भी इस ज़िले को जानने लगे है। इमरान प्रतापगढ़ी को अखिल भारतीय कांग्रेस से माईनारिटी सेल का चेयरमैन नियुक्त किया है।
साल 2008 से शायरी करने वाले इमरान समुदाय विशेष के मुद्दे अक्सर उठाते रहते है और देश में जहां कही भी लिंचिन का मामला होता है या बिहार के अति पिछड़े मुस्लिम इलाक़े सीमांचाल में बाढ़ आ जाने के बाद वहाँ राहत सामग्री भेजा हो या जेआनयू से ग़ायब हुए नज़ीब का मामला हो नज़ीब पर लिखे इनके नज़्म बहुत मशहूर हुई थी। भारत सरकार द्वारा पास किए गये सीएए क़ानून के विरुध में इमरान ने मुल्क में घुम घुम कर इसकर विरोध किया था। वो मुस्लिम युवाओं में काफ़ी लोकप्रिय है और जहां जाते है महफ़िल लूट लेते है। इलाहाबाद विश्वविधायल से एम.ए हिंदी के छात्र रहे इमरान मुशायरों में उर्दू अदब वालों पर भारी पढ़ जाते है। उनकी पढ़ी गयी नज़्म जो कश्मीर और मदरसा के बच्चों और फ़िलिस्तीन ऊपर है वो काफ़ी मशहूर है।
सबके हैं इमरान
इमरान को यूपी की अखिलेश यादव की सरकार ने 2016 में यूपी का सबसे बड़ा पुरस्कार यश भारती से नवाजा, इमरान जब सियासत में नहीं थें तो वो कभी ओवैसी की पार्टी, तो कभी सपा तो कभी बसपा और कभी राजद तो कभी वाईएसआर कांग्रेस तो कभी एनसीपी के समर्थन में चुनाव प्रचार कर चुके हैं। उनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि विभिन्न पार्टियों का चुनाव प्रचार करने के एवज़ में वे ‘फीस’ भी लेते हैं। हालांकि 2019 में कांग्रेस के टिकट पर उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के बाद उन्होंने कांग्रेस के अलावा किसी अन्य पार्टी के लिये प्रचार नहीं किया है।
मुशायरा और सियासत दो अलग अलग सवारी
राजनित के जानकार मानते है कि सियासत और साहित्य अलग अलग चीज़ है। वे कहते है कि मुशायरा सुनने वाला आपका वोटर नहीं हो सकता मगर मुशायरा कोई भी सुन सकता है। सियासत में अभी तक नाकाम 2019 में इमरान ने जब कांग्रेस की सदस्यता ली और मुरादाबाद जो कि मुस्लिम बाहुल्य है जहां से 11 बार मुस्लिम उम्मीदवारों से विजय बनकर देश के सबसे बड़े सदन में गए है उस सीट पर महज़ 55 हज़ार वोट पाकर अपनी ज़मानत तक ना बचा पाए, और सपा और बसपा के गठबन्धन के उम्मीदवार डा एस.टी.हसन से तक़रीबन 2.5 लाख वोटों से चुनाव हार गए।
इमरान बिहार चुनाव में कांग्रेस के स्टार प्रचारक थे, और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र सीमांचल में जमकर प्रचार किया मगर उम्मीद के मुताबिक़ कामयाब नहीं रहे। सीमांचल में अभेद रहे कांग्रेस के क़िले को ओवैसी की पार्टी ने भेद दिया। यहां इमरान की रैलियों में जनसैलाब जरूर उमड़ा लेकिन सीमांचल में ओवैसी की पार्टी पांच विधानसभा सीटें जीतकर कांग्रेस के सबसे मज़बूत गढ़ में सेंध लगा दी।
इमरान के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में 32 सालो से सत्ता से दूर रही कांग्रेस को मुस्लिम मतदाताओं से कैसे जोड़ते है। अगला वर्ष चुनावी वर्ष है, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे महत्तवपूर्ण है, इमरान खुद उत्तर प्रदेश से हैं। यहीं इमरान की परीक्षा होनी है कि इस परीक्षा में वे कितने सफल होंगे यह तो वक़्त ही बता पायेगा, लेकिन यह भी दिलचस्प होगा कि नदीम जावेद जैसे अनुभवी नेता के स्थान पर इमरान की ताजपोशी कांग्रेस के लिए कितना असरदार साबित होती है।
(लेखक हैदराबाद स्थित मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर हैं, उनसे ajmalalikhan@manuu.edu.in पर संपर्क किया जा सकता है)