जब सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के अवसर मुहैया कराने में फेल होती हैं तब जनसंख्या विस्फोट का राग अलापा जाता है।

गिरीश मालवीय

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जनसंख्या नियंत्रण की बात करना दरअसल लोगों का ध्यान असली समस्या से हटाकर दूसरी ओर लगा देना जैसा है। देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंतित होना, वैचारिक धरातल पर इसके लाभ-हानि पर चर्चा करते हुए लोगों में जागरुकता लाना अलग बात है लेकिन जनसंख्या नियंत्रण के लिए बकायदा कानून बना देना और सख्ती से उन्हें लागू करने की बात करना अलग बात है, जब सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ ही साथ रोजगार के अवसर मुहैया कराने में फेल होने लग जाती हैं तो जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या नियंत्रण जैसी बातें की जाने लगती हैं। इनका मकसद दरअसल लोगों का ध्यान असली समस्या से हटाकर दूसरी ओर लगाना होता है।

आज के हालात में जनसंख्या नियंत्रण की बात करना सिर्फ पोलिटिकल माइलेज लेने जैसा है क्योंकि किसी भी देश की आबादी को स्थिर रखने के लिए होमो सेपियंस की कुल प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए। ओर भारत अब इसके बहुत करीब है, क्योंकि कई राज्यों में कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे है। इसका अर्थ है कि भारत जनसंख्या को स्थिर करने की राह पर है। इसीलिए जनसंख्या नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए अब दंडात्मक उपायों पर जोर दिया जाना गलत है।

योगी आदित्यनाथ कोई अनोखी घोषणा नही कर रहे हैं। यूपी से पहले मध्य प्रदेश, राजस्‍थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य ऐसी नीतियां ला चुके हैं, लेकिन इससे जनसंख्या नियंत्रण में न कोई लाभ हुआ न हानि जहाँ जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू थे उन राज्यों में भी जनसंख्या 20% बढ़ी, जहां कानून नहीं था वहां भी औसत 20% की वृद्धि हुई मध्य प्रदेश में 2001 से दो बच्चों की नीति लागू है। 2002 में राजस्थान सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स 1996, सेक्शन 53 (ए) लागू हुआ था। इसमें दो से ज्यादा बच्चों वाले नागरिक सरकारी नौकरी के लिए पात्र नहीं माने जाते थे।महाराष्ट्र में सिविल सर्विसेज (डिक्लेरेशन ऑफ स्मॉल फैमिली) रूल्स 2005 के तहत दो से ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले को राज्य सरकार की नौकरियों के लिए अपात्र माना जाता है। बिहार में भी ऐसे नियम थे, लेकिन 2020 में पंचायत चुनाव के वक्त दो बच्चों वाले कानून में ढील देनी पड़ी।

किसी देश में युवा तथा कार्यशील जनसंख्या की अधिकता तथा उससे होने वाले आर्थिक लाभ को जनसांख्यिकीय लाभांश के रूप में देखा जाता है। भारत में मौजूदा समय में विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या युवाओं की है चीन ने भी कुछ समय पहले अपनी टू चाइल्ड पॉलिसी को त्याग दिया क्योकि इस नीति के परिणामस्वरूप सेक्स-चयनात्मक गर्भपात, गिरते प्रजनन स्तर, जनसंख्या के अपरिवर्तनीय रूप से बूढ़े होने, श्रमिकों की कमी और आर्थिक मंदी जैसे अवांछनीय परिणाम सामने आए।

यूरोप के कई देशों में जनसंख्या को अब एक संपन्न संसाधन के रूप में देखा जाता है जनसंख्या एक विकास करती अर्थव्यवस्था की जीवन शक्ति है। इसे समस्या और नियंत्रण की शब्दावली में देखना और इस दृष्टिकोण से कार्रवाई करना राष्ट्र के लिये अनुकूल कदम नहीं होगा। यह दृष्टिकोण अब तक कि प्रगति को बाधित कर देगा और एक कमज़ोर व बदतर स्वास्थ्य वितरण प्रणाली के लिये ज़मीन तैयार करेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)