जब उड़ीसा में भाषण देते वक्त इंदिरा गांधी की नाक पर लगा था पत्थर, और टूट गई थी नाक की हड्डी

साल 1967 था। तब इंदिरा गांधी का वो जलवा नहीं था, जैसा बाद में कायम हुआ। तब कम बोलने की वजह से कुछ विपक्षी उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर चिढ़ाते थे। आम धारणा थी कि वे बहुत कोमल हैं और प्रधानमंत्री बनने लायक नहीं हैं। वे रैली के लिए उड़ीसा गई थीं। उड़ीसा स्वतंत्र पार्टी का गढ़ हुआ करता था। इंदिरा गांधी ने एक चुनाव सभा में जैसे ही बोलना शुरू किया, वहां मौजूद भीड़ ने पत्थरबाजी शुरू कर दी।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

स्थानीय कांग्रेसियों ने उनसे तुरंत भाषण बंद करने को कहा। उनके सुरक्षा अधिकारी उन्हें हटाना चाहते थे। इंदिरा गांधी ने किसी की नहीं सुनी और बोलना जारी रखा। उन्होंने क्रुद्ध भीड़ का सामना किया और कहा, “क्या आप इसी तरह देश को बनाएंगे? क्या आप इसी तरह के लोगों को वोट देंगे?” तभी यकायक एक पत्थर आकर उनकी नाक पर लगा। नाक से खून बहने लगा। इंदिरा गांधी ने अपने हाथों से बहता हुआ खून पोंछा। रुमाल से नाक दबा ली और भाषण देती रहीं।

घटना के बाद उनके स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि दिल्ली लौट चलिए। लेकिन उन्होने यह बात भी नहीं मानी और अगली जनसभा के लिए कोलकाता रवाना हो गईं. कोलकाता पर उन्होंने नाक पर पट्टी बांधे-बांधे भाषण दिया।

बाद में पता चला कि चोट ज्यादा है। ​उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी। नाक पर प्लास्टर चढ़ाना पड़ा। नाक की सर्जरी भी हुई। कई दिनों तक इंदिरा गांधी ने चेहरे पर प्लास्टर बांधे पूरे देश में चुनाव प्रचार किया। एक बार उन्होंने साथ के लोगों से मजाक किया कि उनकी शक्ल बिल्कुल ‘बैटमैन’ जैसी हो गई है।

प्लास्टर उतरने के बाद वे मजाक में कहती थीं कि मुझे तो लग रहा था कि डॉक्टर प्लास्टिक सर्जरी करके मेरी नाक को सुंदर बना देंगे। आप तो जानते ही हैं कि मेरी नाक कितनी लंबी है लेकिन इसे खूबसूरत बनाने का एक मौका हाथ से निकल गया। कमबख्त डॉक्टरों ने कुछ नहीं किया। मैं वैसी की वैसी ही रह गई।

इस कथा का सबक ये है कि जनता सिर्फ भजन मंडली नहीं है। जनता नाराज भी हो सकती है, अगर आप अपने फैसलों से सैकड़ों लोगों की जान ले लें। नेता में जनता की नाराजगी का सामना करने की हिम्मत होनी चाहिए।

(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)