नई दिल्लीः हिन्दी सिने जगत के दिग्गज कलाकार दिलीप कुमार का निधन हो गया है। बुधवार सुबह दिलीप कुमार ने 98 वर्ष की आयु में अंतिम साँस ली। लंबे समय से दिलीप कुमार बीमार चल रहे थे। इस साल चिकित्सकीय समस्याओं के कारण उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था। बुधवार सुबह, क़रीब साढ़े सात बजे दिलीप कुमार ने मुंबई स्थित हिंदुजा अस्पताल में अंतिम साँस ली।
उनके निधन पर बॉलीवुड समेत पूरे देश में शोक की लहर है। देश की तमाम हस्तियां उन्हें याद कर रही हैं। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक प्रकट किया है। पीएम मोदी ने कहा, “दिलीप कुमार जी को एक सिनेमाई लीजेंड के रूप में याद किया जाएगा। उन्हें असामान्य प्रतिभा मिली थी, जिसकी वजह से उन्होंने कई पीढ़ियों के दर्शकों को रोमांचित किया। उनका जाना हमारी सांस्कृतिक दुनिया के लिए एक क्षति है। उनके परिवार, दोस्तों और असंख्य प्रशंसकों के प्रति संवेदना।” पीएम मोदी ने कुमार की पत्नी सायरा बानो से फोन पर बात की और उन्हें ढांढस बंधाया।
अंग्रेजो के खिलाफ भाषण देना पड़ा भारी
बॉलीवुड के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को अंग्रेजो के खिलाफ भाषण देने पर जेल हुयी थी। दिलीप कुमार को एक बार अंग्रेजों के खिलाफ भाषण देना भारी पड़ गया था, जिसकी वजह से उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी थी।इस घटना के बारे में दिलीप कुमार ने अपनी ऑटोबायॉग्रफी ‘द सब्सटेंस ऐंड द शेडो’ में जिक्र किया था। यह आजादी से पहले की बात है,जब दिलीप को अपने पिता की मदद करने के लिए पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ी थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से उन्होंने पुणे में मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर क्लब में बतौर मैनेजर नौकरी शुरू की। उनके सैंडविच सभी को बहुत पसंद आते थे। वह इसके लिए बहुत मशहूर भी हो गए थे।
एक सीनियर साथी के कहने पर दिलीप कुमार ने भारत की तारीफ में भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने भारत को मेहनती, सच्चे और अहिंसक लोगों का देश कहा था और बताया था कि हमारा देश कैसे श्रेष्ठ है। दिलीप कुमार ने अपनी किताब में लिखा था, मेरे स्पीच की तारीफ की गई। मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था लेकिन ये खुशी कुछ ही देर की थी। मैं उस वक्त दंग रह गया जब कुछ पुलिस अफसर आए और मुझे हथकड़ी लगाकर ले गए। उन्होंने बताया कि मेरी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सोच के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। अंग्रेजों के विरोध में भाषण देने की वजह से दिलीप कुमार को येरवाड़ा जेल भेज दिया गया था, उस समय वहां कई सत्यग्राही भी जेल में बंद थे।
दिलीप कुमार ने अपनी किताब में बताया था कि उस समय सत्याग्रहियों को ‘गांधीवाले’ कहा जाता था। दूसरे कैदियों का सपॉर्ट करते हुए उन्होंने भी भूख हड़ताल कर दी थी। अगले दिन दिलीप कुमार को जेल से छोड़ दिया गया था। उन्होंने बताया था कि अगले दिन सुबह जब उनके जान-पहचान के एक मेजर आए तो उन्हें जेल से छोड़ दिया गया और तब से वह भी ‘गांधीवाला’ बन गए।
फुटबॉल प्लेयर बनना चाहते थे दिलीप
दिलीप कुमार फुटबॉल प्लेयर बनना चाहते थे। दिलीप कुमार ने इसके लिए अपने स्टूडेंट लाइफ में काफी कोशिश भी की। दिलीप कुमार का सपना था देश की टीम में खेलने का, लेकिन उनके पिता चाहते थे दिलीप फुटबॉल ना खेलें, बल्कि शतरंज में अपना करियर बनाएं।दिलीप कुमार ने एक बार बताया था कि 19 साल की उम्र तक फुटबॉल खेलना ही उनका जुनून था। दिलीप कुमार को क्रिकेट का भी शौक था। दिलीप साहब को शूटिंग के दौरान जब भी वक्त मिलता था, वह क्रिकेट खेलना पसंद करते थे। गौरतलब है कि दिलीप कुमार ने वर्ष 1944 में प्रदर्शित ‘ज्वार भाटा’ से अपने सिने करियर शुरुआत की थी। उन्होंने अपने सिने करियर के दौरान करीब 60 फिल्मों में अभिनय किया।