खबर है कि, चंपारण में कुछ लोगों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा तोड़ दी है। मगर उस प्रतिमा के कदम नहीं उखड़े। इन कदमो की मज़बूत पकड़ ही, गांधी की प्रासंगिकता है और वह बनी रहेगी। कुछ लोग इन कदमो की दृढ़ता से गांधी के जीवन काल मे भी असहज थे और आज, उनकी हत्या हो जाने के 75 साल बाद अब भी असहज हैं। वे अपनी चिढ़ और कुंठा, इसी तरह से निकाल सकते हैं, और निकालते रहते हैं।
खंडित प्रतिमा का यह चित्र महात्मा के दृढ़ संकल्पित विचार का प्रतीक है। चंपारण से गांधी के आंदोलन, सत्य अहिंसा और अंग्रेजी राज के खिलाफ प्रबल जन प्रतिरोध का आगाज़ हुआ था। निलहे गोरे जमीदारों के शोषण के खिलाफ, चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल के कहने पर गांधी चंपारण गए थे। दोनो की यह मुलाकात, कांग्रेस के 1916 के लखनऊ अधिवेशन में हुयी थी। चंपारण में गांधी गए। अपनी बात कही। गांधी अपने कुछ जानकार मित्रों और सलाहकारों से गांवों का भ्रमण कराकर किसानों की हालत जानने की कोशिश करते रहे और फिर उन्हें जागरूक करने में जुट गए।
सत्याग्रह की पहली विजय का शंखनाद और गांधी की बढ़ती लोकप्रियता ब्रिटिश राज को अखरने लगी थी। उनकी उपस्थिति को सरकार ने शांति व्यवस्था के लिये खतरा बताया। उन्हें समाज में असंतोष फैलाने का आरोप लगाकर चंपारण छोड़ने का आदेश दिया गया। पर गांधी ने कब ऐसे आदेशो को माना था कि वे इस सरकारी आदेश को मानते ! गांधी जी ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया। वे गिरफ्तार कर लिये गए। अदालत में सुनवाई के दौरान गांधी के प्रति व्यापक जन समर्थन को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने उन्हें बिना जमानत छोड़ने का आदेश दे दिया, लेकिन गांधी जी अपने लिए कानून अनुसार उचित सजा की मांग करते रहे। उन्होंने जुर्म स्वीकार किया। बाद में वे रिहा कर दिये गए।
एक आंदोलन चला। डॉ राजेंद्र प्रसाद सहित बिहार के अनेक नेता उंस आंदोलन में शामिल हुए। गांधी तब उनके लोकप्रिय भी नही हो पाए थे। लोग उन्हें, देख और परख रहे थे। वे भी देश और जनता का मूड भांप रहे थे। अंत मे निलहे गोरे जमीदारों के शोषण का अंत हुआ। यह तब का किसान आंदोलन था। दक्षिण अफ्रीका की ब्रिटिश हुकूमत, गांधी के इस नायाब प्रतिरोध का स्वाद चख चुकी थी, पर भारत के लिए यह एक नयी बात थी। चंपारण ने सारे भारत का ध्यान अपनी ओर खींचा। ब्रिटिश सरकार झुकी और चंपारण की समस्याओं के लिये एक आयोग बना। गांधी जी को भी इसका सदस्य बनाया गया। सार्थक परिणाम सामने आने लगे थे।
आज उसी चंपारण में गांधी की प्रतिमा तोड़ दी गई। पर चंपारण की धरती पर आज से सौ साल से भी पहले पड़े गांधी के दृढ़ कदम अब भी उसी तरह जमे हैं। गांधी एक विचार हैं। जिस गांधी ने दुनिया के सबसे विशाल और समर्थ साम्राज्य को अपने कदमो पर झुका दिया था, उन कदमो को उखाड़ना आसान भी नहीं है। ‘चल पड़े जिधर दो डग मग मे, चल पड़े कोटि पग उसी ओर !’