इसलिए नहीं कि मुख्यधारा की ब्रांड मीडिया का दामन गोदी मीडिया की तोहमतों से दाग़दार है और अजीत अंजुम निष्पक्ष, निडर,बेदाग और ईमांदार पत्रकार हैं। भाजपा पर विश्वास रखने वाली देश की क़रीब आधी आबादी अजीत अंजुम, पुण्य प्रसून वाजपेयी और अभिसार शर्मा जैसे टीवी के भूतपूर्व बड़े चेहरों पर भी इल्जाम लगाती है कि ये कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों/सरकार विरोधी ताक़तों से सुपारी लेकर वेबसाइट्स/यूट्यूब के जरिए सरकार विरोधी एजेंडा चलाते हैं। ये टुकड़े-टुकड़े गैंग के हैं.. हिन्दू विरोधी हैं.. वगैरह-वग़ैरह। यानी आरोप दोनों तरफ हैं। कोई गोदी तो कोई सरकार विरोधी पत्रकार कहलाता है।
लेकिन अजीत अंजुम के सर्वे पर इसलिए यक़ीन किया जा सकता है कि ऑंन कैमरा जनता से सीधे संवाद वाली उनकी ग्राउंड रिपोर्ट के शुरुआती लगभग पंद्रह दिनों में मोदी-योगी यानी भाजपा पर जनता का जबरदस्त विश्वास पूरी निष्पक्षता से पेश किया गया। खासतौर से ग्रामीण जनता और वो भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी गांव-देहातों के पिछड़ी जातियों से जुड़े समाज का भी एक बड़ा वर्ग योगी-मोदी की सरकारों की कार्यशैली की तारीफ करता नज़र आया। तमाम ऐसी प्रतिक्रियांए भी आईं कि बहुत परेशानियां हैं, मंहगाई, बेरोजगारी और किसानों की अनदेखी की तकलीफें बर्दाश्त करके भी वो भाजपा को ही वोट देंगे।
कइयों ने कहा कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में वो खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित है। गुंडागर्दी और साम्प्रदायिक दंगों पर योगी सरकार ने विराम लगा दिया है। इसलिए वो मंहगाई, बेरोजगारी और कोविड में कुव्यवस्था को भुला कर आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को दोबारा सत्ता मे लाएंगी। अजीत अंजुम की जमीनी रपट के इस शुरुआती सेगमेंट में लग रहा था कि यूपी विधानसभा चुनाव की मतपेटियां खुल रही हैं और भाजपा एकतरफा जीत की तरफ बढ़ रही है। इसके बाद मौजूदा वक्त में जारी रायशुमारी का मूड करवट लेता नज़र आया और अब अजीत की रिपोर्ट में भाजपा के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश नजर आने लगा।
सिर्फ एक महीने में कुछ जिलों की कुल रायशुमारी के एवरेज का आंकलन करें तो योगी सरकार से खुश और नाखुश लोगों का रुझान फिफ्टी-फिफ्टी है। फिर भी भाजपा का पड़ला भारी इसलिए कहेंगे क्योंकि फिफ्टी परसेंट नाराजगी सत्तारूढ़ पार्टी से सत्ता छीन नहीं पाती है। क्योंकि विरोधी विपक्षी पार्टियों में बंट जाते हैं और चालीस प्रतिशत समर्थक भी (वोटर) पैतीस से चालीस फीसद वोट दिलाकर भाजपा की विजय पताका फहराने में सफल हो सकते हैं।
वो बात अलग है कि साइलेंट आवाम या डर मे कुछ ना बोलने वाली अथवा अपनी मंशा के विपरीत बोलने वाली जनता की चुनावी नतीजों में मुख्य भूमिका होती है। ख़ासकर बिहार और यूपी जहां जातिवाद हावी है यहां के सर्वे ज्यादातर धरे के धरे रह जाते हैं और नतीजे इसके विपरीत होते हैं। यहां नतीजों में साइलेंट जनता असर दिखाती है।
खैर कुछ भी हो अजीत अंजुम की ग्राउंड रिपोर्टिग में तक़रीबन पचास फीसद जनता की भाजपा के प्रति दीवानगी नजर आने का लब्बोलुआब यही है कि इसे सैम्पलिंग माने तो यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा तीस से पैतालिस फीसद वोट पा सकती है।
सी वोटर या अन्य सर्वे एजेंसियों के सर्वे से अधिक विश्वसनीय अजीत अंजुम की जमीनी रिपोर्ट क्यों है ये जानना भी जरूरी है-
यूपी के जिलों-जिलों, कस्बों-कस्बों, शहरों-शहरों, गांव-देहातों, चौपाल-खलियानों, सड़क चौराहों पर, ट्रक्कर, बैलगाड़ी, रिक्शे, जुगाड़ (गांव मे चलने वाली शेयरिंग टेक्सी) में घुस कर आम जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बात कर रहे हैं। लोगों के इरादों को कैमरे के सामने टटोल रहे हैं। उनकी इस ज़मीनी पड़ताड़ में वास्तविकता, निष्पक्षता, सच्चाई, हकीकत और अस्ल पत्रकारिता नज़र आ रही है। आम जनता की रायशुमारी के तमाम वीडियो यू ट्यूब/सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे है। उत्तर प्रदेश का रुख जानने के लिए करोड़ों लोग अंजुम की लाइव पड़ताड़ से जुड़ रहे हैं।वो तक़रीबन एक महीने से जनता का रुख पेश कर रहे है।
कभी टीवी स्टार पत्रकार रहे प्रसून, अभिसार और अजीत अंजुम जैसे तमाम स्वतंत्र सहाफी आज वेब मीडिया/यूट्यूब के जरिए मुख्यधारा की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ज्यादा दर्शकों का विश्वास जीतने लगे है। अजीत अंजुम अपने जैसे आक्रामक, निडर, सरकारों से डरे बिना आंखों में आंखें डालकर सवाल करने वाले पत्रकारों की टोली में आगे निकल रहे हैं। वजह ये है कि वो सिर्फ एसी कमरों या स्टूडियो मे बैठकर सियासी विश्लेषण नहीं पेश कर रहे हैं, वो पहले से कोई नैरेटिव भी नहीं तय किए हैं, सीधे जमीन से जुड़ कर जमीनी लोगों से जमीनी हकीकत जानने यूपी की सियासी तकदीर तय करने वाले गांव-देहातों में ग्रामीणों की नब्ज टलोल रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव राजनीतिक विश्वेषक हैं)