यूपी चुनाव: कांटे की टक्कर को तैयार देवरिया की सातों विधानसभा सीट, जानें किसका पलड़ा भारी?

देवरिया:  उत्तर प्रदेश में अगले साल संभावित विधानसभा चुनाव में देवरिया जिले की सात विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच रोचक मुकाबले की तस्वीर उभरती दिख रही है। पूर्वांचल के देवरिया जिले की सात विधानसभा सीटों में से छह पर फिलहाल भाजपा काबिज है जबकि एक सीट सपा के पास है। पूर्वांचल में इस बार चुनाव से तीन महीने पहले से ही सपा की साइकिल के रफ्तार पकड़ने के कारण कमल के लिये चुनावी डगर आसान नहीं है।

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एक तरफ “इस बार भी तीन सौ पार” का लक्ष्य हासिल करने का दावा कर रही भाजपा को पूर्वांचल एक्सप्रेस वे जैसे बड़े विकास कार्यों का सहारा है तो दूसरी तरफ सपा ने इसी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर अपनी विजयरथ यात्रा में भारी भीड़ जुटा कर चुनावी मुकाबले को एकतरफा होने से रोक दिया है। इससे इतर उत्तर प्रदेश के चुनावी अखाड़े की तीसरी ताकत बसपा के खेमे में मची भगदड़ से पूर्वांचल में मुकाबला दोतरफा बन गया है। गौरतलब है कि पूर्वांचल क्षेत्र के आजमगढ़ जिले की सगड़ी विधानसभा सीट से बसपा की विधायक वंदना सिंह ने बुधवार को और मुबारकपुर से शाह आलम उर्फ गुड्डु जमाली ने गुरुवार को बसपा छोड़ दी।

योगी सरकार में देवरिया जिले से दो मंत्रियों का होना भी भाजपा के लिये फायदे का सबब है। जिले में पथरदेवा सीट से सूबे के कृषिमंत्री सूर्य प्रताप शाही,रूद्रपुर से प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री जय प्रकाश निषाद,देवरिया सदर से भाजपा के डा. सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी, रामपुर कारखाना से कमलेश शुक्ला, बरहज से भाजपा के सुरेश तिवारी, सलेमपुर सुरक्षित सीट से भाजपा के ही काली प्रसाद और भाटपाररानी से सपा के आशुतोष उपाध्याय विधायक हैं। इस जिले की भाटपाररानी सीट ही एकमात्र सीट है जिस पर भाजपा कभी जीत का स्वाद नहीं चख पायी है।

यहां के चुनावी जानकारों के मुताबिक कभी समाजवादियों का गढ़ रहे देवरिया में सपा का जनाधार धीरे-धीरे घटता गया। यहां से समाजवाद के पुरोधा मोहन सिंह, हरिकेवल प्रसाद, हरिवंश सहाय और मुक्तिनाथ यादव जैसे बड़े चेहरों के न रहने से सपा को पिछले विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ा था, और सपा यहां मात्र एक सीट पर सिमट कर रह गई।

अगर देवरिया जिले के विकास की बात किया जाय तो यहां से सांसद रहे तथा वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने अपने कार्यकाल में यहां एक मेडिकल कालेज स्थापित करने की कार्ययोजना बनाई थी। इसे अब अमलीजामा पहनाया गया है। मिश्र ने गोरखपुर से बलिया तक राष्ट्रीय राजमार्ग को बनवाया, साथ ही देवरिया में उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय की स्थापना भी कराई थी। लेकिन उनके राज्यपाल बनने के बाद देवरिया शहर को जाम से बचाने के लिए प्रस्तावित बाईपास मार्ग अधर में लटक गया है।

केन्द्रीय विद्यालय की इमारत भी मिश्र ने शिलान्यास किया था। लेकिन मिश्र के सांसद न रहने के बाद इमारत का काम अधर में लटक गया है। यह केन्द्रीय विद्यालय किसी अन्य जगह से चल रहा है।

अगर देखा जाय तो उप चुनाव में भाजपा के सदर विधायक डा.सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने अल्प कार्यकाल में अपने निधि से देवरिया विधानसभा में विकास का अलख जगाने की कोशिश में लगे हुए हैं।इसी तरह पथरदेवा से विधायक तथा कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही,रूद्रपुर से विधायक तथा राज्यमंत्री जय प्रकाश निषाद,सलेमपुर से विधायक काली प्रसाद अपने अपने क्षेत्रों विकास का अलख जगाये हुए हैं।

 

रुद्रपुर सीट पर हालांकि पांच बार कांग्रेस का कजा रहा लेकिन मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस की दावेदारी इस क्षेत्र में कमजोर पड़ने का सीधा लाभ भाजपा को मिला। कुल मिलाकर भाजपा को अपने कद्दावर मंत्री शाही और निषाद की सीटों पर विकास कार्येां ओर समूचे पूर्वांचल में योगी सरकार की बेदाग छवि का ही देवरिया जिले में पिछले चुनाव का इतिहास दोहराने का भरोसा है। दूसरी ओर सपा, इस चुनाव में बसपा की निष्क्रियता और कांग्रेस की जमीनी हालत कमजोर होने का लाभ उठा कर अपनी सीटों को एक से बढ़ाने की फिराक में है। पूर्वांचल में अखिलेश की विजय रथ यात्रा में उमड़ी भीड़ ने इस बार चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है। जिसके कारण सपा को भाजपा विरोधी मतों के साइकिल के पक्ष में लामबंद होने की उम्मीद है।