उमर ख़ालिद मामल: हाईकोर्ट की टिप्पणी ने खोली दिल्ली पुलिस की पोल

अमरावती में जेएनयू के छात्र नेता और एक्टिविस्ट उमर खालिद द्वारा दिए गए, फरवरी 2020 के एक भाषण का जिक्र करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि “भाषण, जो सुनने में भले ही खराब हो सकता है, लेकिन इससे कोई आतंकवादी कृत्य या अपराध नहीं बनता है।” हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की खंडपीठ, इस मामले में जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली, उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

पीठ ने कहा, “कि भाषण खराब स्वाद (bad taste) में है, तो भी इसे आतंकवादी कार्य नहीं कहा जा सकता है। हम इसे बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। यदि अभियोजन पक्ष का मामला भाषण कितना आक्रामक था, इस पर आधारित है, तो यह स्वयं में कोई अपराध नहीं होगा। हम उन्हें, (अभियोजन को) अपनी बात कहने का अवसर देंगे।,” न्यायमूर्ति मृदुल ने मौखिक रूप से इस प्रकार की टिप्पणी की।

उन्होंने कहा, “यह आपत्तिजनक और अरुचिकर था। यह मानहानि, अन्य अपराधों के समान तो हो सकता है, लेकिन यह एक आतंकवादी गतिविधि के अपराध के समान नहीं है।” उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने 17 फरवरी, 2020 को उनके द्वारा दिए गए अमरावती भाषण के आरोप का हवाला देते हुए अपनी बात रखी। यह ध्यान दिया जा सकता है कि बेंच ने पहले कहा था कि “विचाराधीन भाषण अप्रिय, घृणित, आपत्तिजनक और प्रथम दृष्टया स्वीकार्य नहीं था।”

आज की सुनवाई में, एडवोकेट सान्या कुमार ने इस मामले में पेस की सहायता करते हुए, सिएरा, स्मिथ, इको, डेल्टा और गामा जैसे विभिन्न संरक्षित गवाहों के बयान पढ़े। यह दिखाने के लिए कि उनमें से किसी ने भी सीलमपुर की बैठक को गुप्त बैठक के रूप में नहीं कहा, जो कि अभियोजन पक्ष का आरोप है। अभियोजन पक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए सान्या कुमार ने यह भी कहा कि “सह आरोपी नताशा नरवाल के कॉल डिटेल रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह सीलमपुर में हुई मीटिंग की तारीख पर मौजूद नहीं थी।”

सान्या कुमार ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि “संरक्षित गवाहों सिएरा और स्मिथ द्वारा दिए गए बयान और उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा, एक तरह से थे।” सान्या कुमार ने कहा, कि, “स्मिथ, जिसका बयान मेरी (उमर खालिद की ) गिरफ्तारी से दो या तीन दिन पहले दर्ज किया गया था, वह एकमात्र गवाह है जो मेरे बारे में हथियारों के संग्रह में होने की बात करता है। जबकि, मुझसे कोई वसूली नहीं हुई है।”

सान्या कुमार ने यह भी तर्क दिया कि, “अन्य संरक्षित गवाह अर्थात् इको, जिन्होंने सीलमपुर की बैठक के साथ-साथ सीलमपुर में उमर खालिद के भाषण का भी उल्लेख किया ने धारा164 सीआरपीसी में दिए अपने बयान में ऐसा नहीं कहा जो उसने धारा 161 सीआरपीसी के अंतर्गत अपने बयान में कहा था।”
“तब वह (इको) कहते हैं, “पब्लिक को भड़काया”। लेकिन उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया कि किस शब्द का इस्तेमाल किया गया था, क्या कहा गया था। अभियोजन यह भी मामला नहीं बना सका कि, उमर खालिद द्वारा दिए गए भाषण से, सीलमपुर में उत्तेजना फैल गई थी।”


सान्या कुमार ने अन्य तथ्य प्रस्तुत किए इसके अतिरिक्त, सीलमपुर में कथित गुप्त बैठक के संबंध में उमर खालिद और सह आरोपी व्यक्तियों सहित अन्य व्यक्तियों की तस्वीर का जिक्र करते हुए, जिसे फेसबुक से हासिल किया गया था, पेस ने इस प्रकार तर्क दिया “यह एक तस्वीर है, उसके बाद एक और तस्वीर है। यह एक अभियोजन दस्तावेज और इसे अभियोजन एक षडयंत्रकारी बैठक बता रहा है। क्या कोई भी जो एक साजिश रचना चाहता है, एक सेल्फी ले लेगा और इसे फेसबुक पर डाल देगा?”

पेस ने आगे तर्क दिया कि “आक्षेपित आदेश का आधार, जिसमें विशेष न्यायाधीश ने खालिद को जमानत देने से इनकार किया था, स्वयं गलत था।” “क्या अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि यह एक षडयंत्रकारी बैठक थी क्योंकि चार्जशीट ऐसा कहती है?…। क्या अदालत को व्यापक संभावनाओं को देखने और यह देखने की जरूरत नहीं है कि कैसे यह गुप्त साजिश बैठक थी। … अदालत में अभियोजन ने कुछ भी खुलासा नहीं किया है।” उमर खालिद के वकील पैस ने यह बात कही। उमर खालिद को शहर की कड़कड़डूमा कोर्ट ने 24 मार्च को जमानत देने से इनकार कर दिया था। उन्हे 13 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत का विचार था कि, “उमर खालिद का कई आरोपी व्यक्तियों के साथ संपर्क था और दिसंबर 2019 में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित होने से लेकर फरवरी 2020 के दंगों तक की अवधि के दौरान कई व्हाट्सएप समूहों में उसकी उपस्थिति थी। इसे समग्रता में पढ़ा जाना चाहिए, न कि, टुकड़ों टुकड़ों में।” पेस द्वारा उठाए गए अन्य तर्क पर कि, उमर खालिद दंगों के समय दिल्ली में मौजूद नहीं थे, अदालत का विचार था कि एक साजिश के मामले में, यह आवश्यक नहीं है कि हर आरोपी मौके पर मौजूद हो।

इस प्रकार, चार्जशीट और साथ के दस्तावेजों को देखते हुए, अदालत की राय थी कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही थे और इसलिए यूएपीए की धारा 43 डी के तहत जमानत देने पर रोक लगाई गई थी। कोर्ट ने कहा कि साजिश की शुरुआत से लेकर दंगों तक उमर खालिद का नाम बार-बार आता है। वह जेएनयू के छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य थे। उन्होंने विभिन्न बैठकों में भाग लिया। उन्होंने अपने अमरावती भाषण में डोनाल्ड ट्रम्प का संदर्भ दिया।

जेसीसी के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। दंगों के बाद हुई कॉल रिकॉर्ड में उनका उल्लेख किया गया था।कोर्ट ने कहा कि, “लक्ष्य मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में सड़कों को अवरुद्ध करना और वहां रहने वाले नागरिकों के प्रवेश और निकास को पूरी तरह से रोकना और फिर महिला प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस कर्मियों पर हमला करने के लिए अन्य आम लोगों द्वारा पीछा किए जाने और घेरने के लिए आतंक पैदा करना था। एक दंगे में क्षेत्र और इसे यूएपीए की धारा 15 के तहत

आतंकवादी अधिनियम की परिभाषा के तहत कवर किया जाएगा।” मामले की सुनवाई अब 4 जुलाई को दोपहर 2:15 बजे होगी, जब पेस अपनी दलीलें पूरी करेंगे। यह लेख लाइव लॉ और बार एंड बेंच की रिपोर्ट पर आधारित है।