वसीम अकरम त्यागी
टोक्यो ओलंपिक में बजरंग पुनिया ने कुश्ती में भारत को कांस्य पदक दिलाया है। पुनिया ने कज़ाख़स्तान के दौलेत नियाज़बेकोव को 8-0 के भारी अंतर से मात दी। बजरंग पुनिया की इस कामयाबी पर हरियाणा सरकार ने उन्हें ढ़ाई करोड़ की नकद राशि साथ ही सरकारी नौकरी और 50% मूल्य की छूट पर उन्हें एक प्लाट देने की घोषणा की है। बजरंग पुनिया हरियाणा के झज्जर के खुड्डन गांव के रहने वाले हैं। इसलिये हरियाणा सरकार ने घोषणा की है कि बजरंग पुनिया के गांव में एक इंडोर स्टेडियम भी बनाया जाएगा।
टोक्यो में चल रहे ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार सेमीफाइनल में पहुंचकर इतिहास रचा था। हालांकि महिला टीम सेमिफाइनल में हार गई, जिसके बाद कांस्य पदक के लिये हुए रोमांचक मुक़ाबले में भी महिला हॉकी टीम को हार का सामना करना पड़ा, इस वजह से कांस्य पदक भी महिला हॉकी टीम से जाता रहा। हॉकी टीम में हरियाणा के सोनीपत के रामनगर की निशा वारसी भी खेल रही हैं, निशा बेहद ग़रीब परिवार से हैं, और तीस मीटर के एक तंग मकान में रहतीं हैं। उनके पिता टेलर मास्टर थे, लेकिन कुछ वर्ष पहले उन्हें लकवा मार गया था, जिसकी वजह से वे अब काम नहीं कर सकते। निशा ने बेहद ग़रीबी से जूझते हुए भारतीय महिला हॉकी टीम में जगह बनाई। हरियाणा सरकार ने निशा के परिवार को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी है।
भारतीय महिला हॉकी टीम में सलीमा टेटे भी बेहद ग़रीब परिवार से हैं। सलीमा टेटे का घर झारखंड के सिमडेगा जिले के बड़कीचापर गांव में है। उनका घर मिट्टी से बना एक कच्चा मकान है। सलीमा अपने परिवार के साथ उसी घर में रहती हैं। भारतीय महिला हॉकी टीम में खेलने वाली सलीमा टेटे की मुफ़लिसी की इससे बड़ी तस्वीर और क्या होगी कि उनके घर और गांव में ओलंपिक मैच के दौरान ही टीवी लगाया गया। सलीमा के पिता सुलक्षण टेटे अपनी दूसरी बेटी महिमा को भी हॉकी खिलाड़ी बनाना चाहते हैं। खुद महिमा भी काफी मेहनत कर रही हैं। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने ओलंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा रहीं सलीमा और निक्की के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का चेक दिया है।
सवाल यहीं से पैदा होता है कि हॉकी के प्रति सरकारों रवैय्या इतना उपेक्षाकृत क्यों है? कांस्य पदक विजेता बजरंग पुनिया को सरकारी नौकरी, आधे दाम पर प्लॉट और ढ़ाई करोड़ रुपये देने वाली हरियाणा सरकार बेहद अभाव और ग़रीबी से जूझते हुए टोक्यो ओलंपिक में पहुंचने वाली हॉकी खिलाड़ी निशा वारसी को महज़ पांच लाख रुपये देकर अपनी ज़िम्मेदारी अदा कर देती है। एक ओर इस बात का दुःख है कि ओलंपिक में हॉकी टीम पदक नहीं जीत पाई, दूसरी ओर पहली बार ओलंपिक के सेमिफाइनल में पहुंचने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम के सदस्यों को खेल प्रोत्साहन राशी भी नाम मात्र के लिये दी गई है। सरकारों द्वारा किया जाने वाला यह भेदभाव प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को निराशा की ओर ले जाता है, जिसकी वजह उनकी प्रतिभाएं दम तोड़ देतीं हैं।
ग़रीबी से जूझते हुए सलीमा टेटे और निशा वारसी ने भारतीय महिला हॉकी टीम में जगह बनाई, उनकी प्रतिभा गर्व का विषय जरूर है, लेकिन जिस तरह इन खिलाड़ियों की गरीबी और अभाव पर गर्व किया जा रहा है वह गर्व का नहीं बल्कि धनिकों और समर्थों के दुखी और शर्मिंदा होने की चीज है! क्या यह सवाल नहीं होना चाहिए कि सरकारों का रवैय्या इतना दोगला क्यों है? सेमिफाइनल में पहुंचकर इतिहास तो महिला हॉकी टीम ने भी रचा है फिर उसके साथ ऐसा भेद भाव क्यों? अगर सबको समान अवसर और समान प्रोत्साहन मिले तो भारत ओलंपिक में अपनी सफलता के नए अध्याय लिख सकता है, लेकिन विडंबना यह है कि ग़रीबी से जूझने वाले खिलाड़ी अपने दम पर सफलता के किसी मुकाम पर पहुंचते हैं, न कि किसी के रहमो करम पर! ज़रा सोचिए झारखंड की सलीमा टेटे, और हरियाणा की निशा वारसी ने भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए कैसे रास्ता बनाया होगा? लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इन खिलाड़ियों की प्रतिभा की क़ीमत सिर्फ पांच लाख रुपये लगाई। सरकार का यह दोगला रवैय्या ही प्रतिभा का दुश्मन बन बैठा है।
(लेखक दि रिपोर्ट हिंदी न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं)