यह आदमी डर नहीं रहा है और सरकार डराने के लिए बेचैन है। इतनी बेचैन कि फूहड़ कार्यवाहियों से भी खुद को रोक नहीं पा रही है। कोई पूछे कि भारत यात्रा करना, पीड़ित जनता से मिलना, उनकी पीड़ा कहना कबसे गुनाह हो गया? फिर पुलिस राहुल गांधी के घर बार बार क्या करने जा रही है?
पहली बार राहुल गांधी के घर पुलिस गई। बोली कि तुमने अपनी भारत यात्रा में किसी बलात्कार पीड़ित महिला के बारे में बयान दिया था। कौन थी, कहां थी, क्यों बोले, कैसे बोले वगैरह… दो पन्ने का सवाल थमाया। राहुल ने कहा कि 10 दिन में जवाब देंगे। पुलिस लौट गई। दो दिन बाद आज फिर पहुंची। उनके घर का सुरक्षा घेरा हटा दिया। किसलिए? गृहमंत्री और सरकार बहादुर जानें। कांग्रेसियों ने विरोध किया तो गिरफ्तार हो गए। उसके बाद राहुल गांधी गाड़ी से घूमते हुए देखे गए, निडर और चिढ़ाने वाली मुद्रा में।
राहुल के लंदन वाले भाषण पर जो नाटक किया गया, वह विशुद्ध तमाशा था। सभी भाषण मैंने सुने हैं। उन्होंने चीन की तारीफ नहीं, मजम्मत की थी कि चीन हमारी सीमा में घुसा है और हमारी सरकार यह बात मानने को तैयार नहीं है। असली बात यही थी जो चुभी होगी। दूसरी बात, राहुल खुल कर बोलते आए हैं कि भारत से लोकतंत्र खत्म किया जा रहा है, यह बात वे वहां भी बोले। यह बात देश के खिलाफ नहीं है। यह बार फासिस्ट सरकार के खिलाफ है और ऐसा बोलने में कोई बुराई नहीं है।
इमरजेंसी के समय संघी और समाजवादी अमेरिका और ब्रिटेन जाकर सरकार के खिलाफ प्रचार कर रहे थे। इनमें सुब्रमण्यम स्वामी भी शामिल थे। उनके खिलाफ सदस्यता रद्द करने का प्रस्ताव आया तो सदन में इस पर चर्चा हुई। चर्चा में बकायदा सरकार की बखिया उधेड़ी गई और कहा गया कि सरकार पार्टी की होती है और वह देश नहीं होती। देश विरोध का आरोप हटा लिया गया था। इमरजेंसी लगाने वाली सरकार ने भी लोकतंत्र, बहस और तर्क की लाज रखी थी।
न कांग्रेस देश थी, न भाजपा देश है। भाजपा देश बनने की निर्लज्ज कोशिश जरूर कर रही है। इंदिरा ने यह कोशिश कभी नहीं की। आपातकाल की गलती की, लेकिन उस गलती को संवैधानिक दायरा देने की कोशिश की, फिर गलती को सुधारा, चुनाव कराया, गलती का खामियाजा उठाया और लोकतंत्र को बहाल करने के साथ तमाम उपायों से इसे मजबूत किया। आज इसकी उम्मीद की जा सकती है?
भारत में इसके पहले कौन सी सरकार हुई जिसने आंदोलनरत किसानों को आतंकवादी और आलोचना करने वालों को देशद्रोही कहा हो? आज ऐसा खुले तौर पर हो रहा है। कभी नेहरू ने भूले से भी गांधी के हत्यारों को देशद्रोही और गद्दार कह दिया होता तो या तो जनता इन्हें जिंदा दफना देती या फिर दुनिया मे कहीं मुंह दिखाने लायक न रहते। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
यह सरकार विपक्ष खत्म करने के अभियान पर है। अडानी घोटाला सामने आने के बाद यह अभियान और ज्यादा तेज हो गया है। इतना तेज कि संसद को भी नहीं बख्शा, म्यूट 🔕 कर दिया। कुछ छोटे दल, कांग्रेस और राहुल गांधी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। राहुल कोई अनोखी बात नहीं कह रहे हैं। सारी विपक्षी पार्टियां यही कह रही हैं कि भारत में लोकतंत्र को बुरी तरह रौंदा जा रहा है। राहुल मुख्य निशाने पर इसलिए हैं, क्योंकि वे एकमात्र नेता हैं जिनकी पार्टी पूरे देश मौजूद है और भाजपा को हरा सकने की संभावना रखती है।
इस देश के लोग हिटलरशाही कब तक बर्दाश्त करेंगे? एक दिन पूरे देश को कहना पड़ेगा कि भारत में लोकतंत्र की हत्या की जा चुकी है। हिटलर के चेलों ने देशभक्ति का चोला ओढ़कर लोकतंत्र की कब्र खोद दी है। अब लड़ाई बस इतनी है कि जख्मी लोकतंत्र को कब्र तक पहुंचने से पहले बचा लिया जाए।
राहुल गांधी को भूल जाइए। अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचिए। उन्हें क्या देना चाहते हैं? एक प्रतिष्ठित लोकतंत्र या एक घिनौनी तानाशाही? फैसला आपका है।