वे बंदूक और ठोंको नीति का सहारा लेकर अपराधियों को कंट्रोल करने निकले थे. न अपराध कंट्रोल हुआ, न अपराधी कंट्रोल में आए, न पुलिस कंट्रोल में रह गई. हर दिन यूपी पुलिस के कारनामे भयावह है. यूपी अब ऐसा प्रदेश है जहां रोज कानून व्यवस्था का जनाजा निकाला जाता है.
जिस नल में आप खुद सोचिए कि डेढ़ दो फुट उंचाई से कोई 22 साल का आदमी लटक कर आत्महत्या कैसे कर सकता है? लेकिन यूपी पुलिस यह अश्लील और क्रूर कहानी धड़ल्ले से सुना सकती है क्योंकि खुद पुलिस की निगाह में कानून का कोई इकबाल नहीं बचा है. कासगंज में अल्ताफ की गैरन्यायिक हत्या न पहली है, न आखिरी.
क्राइम केसेज में हम बचपन से सुनते आए हैं कि आत्महत्या के मामले में अगर कहीं से भी पैर जमीन पर या किसी सतह पर छू जाने की गुंजाइश रहती है तो आत्महत्या की थ्योरी को नकार दिया जाता है. क्योंकि जान निकलना आसान नहीं होता. आदमी छटपटाकर पैर जमीन पर रख देता है. लेकिन यूपी पुलिस कुछ ऐसा दावा कर रही है कि आदमी ने बिस्तर पर सोते सोते या जमीन पर बैठे बैठे फांसी लगा ली.
कभी कासगंज, कभी आगरा, कभी गोरखपुर… हर शहर हर थाने की यही कहानी है. आंकड़े गवाही देते हैं कि ‘यूपी नंबर 1’ का नारा देने वाली बीजेपी के शासन में यूपी और किसी में नंबर वन 1 हो या न हो, लेकिन हिरासत में मौत के मामलों में उत्तर प्रदेश यकीनन नंबर वन है.
इस साल 27 जुलाई को लोकसभा में पूछा गया कि देश में पुलिस और न्यायिक हिरासत में कितने लोगों की मौत हुई. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के सहारे बताया कि हिरासत में मौत के मामलों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है. उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत हुई है.
यूपी की पुलिस व्यवस्था अपने आप में कानून व्यवस्था और रूल आफ लॉ की बर्बादी की जिंदा कहानी है, जहां पुलिस यौन हिंसा से पीड़ित किसी महिला को पेट्रोल डालकर जला सकती है, आधी रात को कमरे में घुसकर किसी को मार सकती है, हिरासत में किसी को पीट पीट कर उसकी जान ले सकती है.
नारा है कि उत्तर प्रदेश अपराध से मुक्त हो गया है, लेकिन असल कहानी ये है कि जिस पुलिस पर अपराध से निपटने और जनता को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी है, वह पुलिस खुद अपराधी की भूमिका में है. शुक्र मनाइए कि ऐसी व्यवस्था से आपका पाला न पड़े. दुनिया में नाकारा प्रशासन का इससे घटिया उदाहरण मौजूद नहीं है जहां खुद पुलिस ही कंट्रोल में न रह जाए।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)