रवीश का लेख: जनता को विपक्ष के बिना लोकतंत्र की आदत पड़ती जा रही है।

बीजेपी ने कई राजनीति दलों को ख़त्म किए हैं। चुनाव में हरा कर नहीं बल्कि जिससे हारी है, उसमें तोड़ फोड़ मचा कर और जाँच एजेंसियाँ लगा कर। बीजेपी कहेगी ही कि उसने ऐसा नहीं किया। क़ानून अपना काम कर रहा था और विधायक अपने आप पुराने दल छोड़ कर आ रहे थे।

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शिवसेना को ध्वस्त कर देना बड़ी राजनीति घटना है। इस पार्टी को गुमान था कि उसके पास भी निष्ठावान नेता और कार्यकर्ता हैं। इसी दम पर शिवसेना शक्ति प्रदर्शन करती थी। अब उसी सेना के विधायक पार्टी से बग़ावत कर चुके हैं। इन्हें जाना तो बीजेपी में ही है क्योंकि एकनाथ शिंदे की शर्त है कि शिव सेना बीजेपी के साथ सरकार बनाए। शिव सेना ने हिन्दुत्व छोड़ दिया है। किसी को भी लग सकता है कि यह रास्ता किसके लिए बनाया गया है।

चुनाव में क्या होगा, शिव सेना वापसी करेगी या नहीं, कोई नहीं जानता। तब तक कितने नेता जेल में होंगे या जाँच एजेंसियों के कारण हार मान चुके होंगे, पता नहीं। आज के दौर में दूसरी पार्टी में कोई नेता कब तक रहेगा, बीजेपी तय करती है।

विपक्ष इसीलिए नहीं दिखता है। उसे ध्वस्त किया जा चुका है। बाक़ी जो बचा है वो एक ख़ाली दफ़्तर से या ख़ाली होने वाले किराए के मकान से ज़्यादा कुछ नहीं है।


आप खोखा भी कह सकते हैं। गोदी मीडिया और जाँच एजेंसियों के अलावा दूसरे दलों में बैठे सत्ता के लालची ने भी इस काम को आसान कर दिया है। जनता को विपक्ष के बिना लोकतंत्र की आदत पड़ती जा रही है।