वह सूबेदार जिससे इन्दिरा गांधी ने कहा ‘देश की इज्जत तुम्हारे हाथ है भाकुनी!’

सूबेदार भाकुनी की उन दिनों कश्मीर पोस्टिंग थी. इकहत्तर की बात है. एक दिन इन्द्रा गांधी ने पाकिस्तान पर धावा बोल दिया. सुबह-सुबह सारी बटालियन को फॉलिन करा कर कमांडेंट साहब ने सूचना दी कि वार शुरू हो गयी है और सारे जवान अपनी-अपनी तैयारी मजबूत कर के रखें.

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बात पूरी करके उन्होंने भाकुनी को एक तरफ करके अलग से अपने दफ्तर आने को कहा. दफ्तर ले जा कर बोले कि देखो भाकुनी किसी को बताना मत लेकिन बात ये है कि जन्नल साहब का टेलीग्राम आया है और उन्होंने ऑर्डर दिया है भाकुनी को तुरंत कलकत्ता भेज दो. पूरी इन्डियन आर्मी में सूबेदार सुन्दर सिंह भाकुनी जैसी जीप चलाने वाला दूसरा न हुआ. जन्नल साब भी ये बात जानते थे.

कमांडेंट साहब को हुकुम हुआ था कि जैसे भी हो सबसे पहले सूबेदार भाकुनी को दिल्ली हैडक्वाटर रिपोर्ट कराओ. स्पेशल हेलीकॉप्टर उड़ाकर हुक्म की तामील की गई. भाकुनी को हैडक्वाटर के गेट पर देखते ही सिपाहियों में भगदड़ मच गई कि भाकुनी आ गया, भाकुनी आ गया.

शाम को जनरल साहब प्रधानमंत्री को टैंक में बिठाकर सूबेदार से मिलाने हैडक्वाटर ले कर आए. इन्द्रा गांधी ने कहा – “देश की इज्जत तुम्हारे हाथ है भाकुनी! तुम्हारी पोस्टिंग ठीक बंगलादेश बॉर्डर पर पर कर दी है. आसाम के जंगल हैं लेकिन तुम घबराना मत. सारा देश तुम्हें बड़ी उम्मीद से देख रहा है. ऐसी गाड़ी चलाना कि दुश्मन की ढिबरी टाइट हो जाए.”

आसाम के जंगलों में गोला-बारूद सप्लाई करने का जिम्मा मिला सूबेदार को. गोदाम से गोला-बारूद डिग्गी में भर-भर कर भाकुनी ने सैकड़ों फेरे लगाए.  एक बार की बात है ठीक जिस बखत वह माल की डिलीवरी देकर लौट रहा था दुश्मन को पता चल गया. उसके जहाजों ने जंगल में बमों की बरसात कर दी. भाकुनी जीप में अकेला!

इतने बम फूटे कि सारे जंगल में धुआं ही धुआं हो गया. भाकुनी को याद आया सबसे पहले जन्नल साहब को बचाया जाना होगा. पेड़ों के बीच से मोड़-मोड़ कर गाड़ी बचाते हुए वह जीप को उस जगह पहुंचाने की जुगत में लग गए जहां जन्नल साहब बड़ी वाली मशीनगन से फायरिंग कर रहे थे. अचानक क्या हुआ कि एक बड़ा सा बम पीछे वाले पहिये पर गिर कर फूटा. गाड़ी हवा में सत्तर-अस्सी मीटर उछल गयी. भाकुनी भी किसी टिड्डे की तरह सीट से तिड़ कर हवा में छिटका.

बेहोश होने से पहले उसने खुद से कहा कि सूबेदार सुन्दर भाकुनी, मौत आ गई है, एक बार अपने कुलदेवता-ग्रामदेवता गोलज्यू महाराज को याद कर. जलती हुई जीप का उड़ना और फिर उसके साथ खुद का अधोदिशा में उछलना भाकुनी को याद रह गया.

होश आया तो क्या देखा कि एक पेड़ के ऊपर अटक गया था. नीचे सुनसान जंगल और लड़ाई का नाम-निशान गायब. बाद में पता चला कि पेड़ पर बेहोश अटके-अटके तीन दिन बीत गए थे. पचास-साठ मीटर ऊंचे पेड़ की चोटी पर सूबेदार और नीचे खतरनाक जंगल. निगाह जमने लगी तो क्या देखा नीचे तीन बाघ गुर्र-ग्वां गुर्र-ग्वां करते एक गैंडे को हंकाए ले जा रहे हैं. सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. अब क्या किया जाय?

किसी को आवाज़ लगाटा है तो बाघ देख लेंगे. मौका देख कर नीचे को कूद मारता है तो हड्डियां चुरी जाने का खतरा. क्या जो करो. क्या नहीं जो करो. जान बचानी मुश्किल. भूख-प्यास अलग. तीन दिन और वैसे ही पेड़ पर लटके-अटके बीते. फिर जा कर चौथे दिन दोपहर का बखत हो रहा था जब हेलीकॉप्टर की घ्वां-घ्वां सुनाई दी. ऊपर देखा तो पता लगा कि अपनी ही फौज का था. तिरंगा लगा था. जैसे-तैसे कमीज खोल कर सूबेदार भाकुनी ने एक हाथ से झंडा जैसा फहराना शुरू किया. हेलीकॉप्टर के पाइलट ने जैसे ही उन्हें देखा वहीं थम हो गया.

वहीं खड़े-खड़े हेलीकॉप्टर की खिड़की में से मुंह बाहर निकाल के जन्नल साब बोले – “अरे बाकुनी तुम साला इदर ट्री के ऊपर में क्या करता है!” बिचारे साउथ में कहीं के थे. ऐसे ही हिन्दी बोलने वाले ठैरे. हेलीकॉप्टर से सीढ़ी उतार कर जन्नल साहब ने खुद सूबेदार भाकुनी का रेस्क्यू किया और अपनी बगल में बिठाया. हाथ मिलाया. बोले, “लो रम पियो सूबेदार बाकुनी. इन्ड्या लराई जीत गया!”

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है)