कृष्णकांत
लालू प्रसाद यादव ने जो कहा है वह बेहद महत्वपूर्ण बात है। “1996-97 में भारत सरकार ने पोलियो टीकाकरण का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। उस वक्त आज जैसी सुविधा, जागरूकता भी नहीं थी फिर भी 07/12/96 को 11.74 करोड़ और 18/01/97 को 12.73 करोड़ बच्चों को पोलियो का टीका दिया गया था। आज हालत ये है कि तथाकथित विश्वगुरु सरकार अपने नागरिकों को पैसे लेकर भी टीका उपलब्ध नहीं करा पा रही।”
भारत में कोरोना के लिए टीकाकरण शुरू हुए 114 दिन हो चुके हैं और अब तक करीब 17 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी गई है। दूसरे और तीसरे चरण में देश में हर दिन 30 से 40 लाख टीके लग रहे थे, लेकिन कल रविवार को देश भर में मात्र 7 लाख टीके लगे, क्योंकि ज्यादातर राज्यों के पास वैक्सीन ही नहीं है। महामारी फैलने के बाद जब उम्मीद जगी कि वैक्सीन आने वाली है तो अमेरिका और यूरोप के देशों ने अपनी जनसंख्या का दो गुना तीन गुना वैक्सीन बुक करवा ली। भारत की सरकार चुनाव लूटने और ताली बजवाने में व्यस्त थी। भारत ने कितनी वैक्सीन बुक की ये अब तक नहीं पता है।
जिस वैक्सीन को लंतरानी हांकी गई, विदेश नीति में वैक्सीन मैत्री का जुमला गढ़ा गया, वह वैक्सीन खुद भारत के लोगों को ही नहीं मिल पा रही है। अपने नागरिकों की जान दांव पर लगाकर डंकापति वर्ल्डलीडर बनने निकले थे। महीना भर नहीं बीता, दिमाग सही हो गया है। देश के नेता को इतना संकुचित दृष्टि का नहीं होना चाहिए कि उसका दावा एक महीने भी न टिक सके।
जब भारत अपेक्षाकृत कमजोर अर्थव्यवस्था वाला देश था, तब सारे टीकाकरण प्रोग्राम मुफ्त थे। आज 2021 में विश्वगुरु वैक्सीन के बहाने उगाही कर रहे हैं कि किससे कितनी वसूली की जाए और दूसरी तरफ रोज हजारों लोगों की जान जा रही है। इनका वश चले तो लोगों के मरने पर भी टैक्स लगा दें कि जो मरेगा वह अपनी मौत के बदले में टैक्स भरेगा। इन लोगों को कोई ये समझाने वाला नहीं है कि सरकार को सरकार की तरह होना चाहिए, सरकार पनसारी में अंतर होना चाहिए। सरकार को अपना इकबाल बुलंद रखना चाहिए। सरकार को लुच्चई पर नहीं उतारू होना चाहिए। लानत है।