PM आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, लेकिन गिरोह के मोहरे और पालतू कह रहे हैं कि आजादी भीख में मिली थी।

वे शहीदों के नाम पर फिल्म बनाकर अरबों रुपये कमाते हैं, लेकिन उन्हीं शहीदों की कुर्बानी का मजाक उड़ाते हैं। वे देश की आजादी के स्वनामधन्य रखवाले हैं, लेकिन आजादी को भीख बताते हें। वे अपने को सच्चा राष्ट्रवादी कहते हैं, लेकिन भारतीय राष्ट्रवाद के खिलाफ अभियान चलाते हैं। वे देश की आजादी, देश के स्वतंत्रता सेनानियों, देश के नायकों के खिलाफ घृणित अभियान चला रहे हैं, ताकि इसको नष्ट किया जा सके। वे सौ साल से यही काम कर रहे हैं।

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इसी कुनबे की एक युवती कहती है कि आजादी लीज पर मिली। एक स्वनामधन्य महारानी कहती है कि आजादी भीख में मिली। पूरा फर्जी राष्ट्रवादी कुनबा मौन है। किसी के मुंह से निंदा के दो शब्द नहीं फूटे, न फूटेंगे। क्योंकि पूरे कुनबे की सोच यही है। जो सरकार उस विक्षिप्त महिला को जनता का खजाना फूंक कर सरकारी सुरक्षा देती है, देश का सर्वोच्च सम्मान देती है, वही सरकार उसकी परनाले जैसी अनियंत्रित जबान पर लगाम नहीं लगाती।

क्योंकि वे सब ऐसा ही सोचते हैं। बस बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते क्योंकि जनता से डरते हैं। वे जानते हैं कि गांधी के नेतृत्व में इस देश की जनता जान देने पर उतारू थी। वे जानते हैं कि इस देश ​की जिस जनता ने दुनिया की सबसे बड़ी हुकूमत से लड़कर आजादी हासिल की थी, वह हमारी सच्चाई जान गई तो हमारी नफरत की दुकान बंद हो जाएगी। इसलिए वे धीरे धीरे प्रयोग कर रहे हैं।

वे कांग्रेस का बहाना लेकर नेहरू के खिलाफ अभियान चलाते हैं। वे फोटोशॉप करके गांधी का चरित्र हनन करते हैं। वे फोटोशॉप करके नेहरू का चरित्र हनन करते हैं। वे नेहरू, पटेल, भगत सिंह, गांधी, सुभाष सबके बारे में अफवाहें फैलाते हैं। पूरे आजादी आंदोलन के खिलाफ एक संगठित अभियान सालों से चल रहा है।

जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी हुई तो इनके एक महान संघ परिवारी और कथित गुरु लेख लिखकर कह रहे थे कि भगत सिंह जैसे लोगों को आदर्श नहीं माना जा सकता क्योंकि वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके। वे लिख रहे थे कि भगत सिंह देश का आदर्श नहीं हो सकते, क्योंकि वे ताकतवर से लड़ बैठे और अपनी जान दे दी। वे कायर हैं इसलिए इससे ज्यादा आज भी सोच सकते। 90 साल तक इसी विचारधारा के कारण अछूत बने रहे तो अब चोला ओढ़ लिया है। वे महापुरुषों के नाम का नारा लगाकर उन्हें मिटाने का अभियान चला रहे हैं।

प्रधानमंत्री आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। गिरोह के मोहरे और पालतू अभियान चला रहे हैं कि आजादी भीख में मिली थी। उनके मुताबिक असली आजादी तो 2014 में मिली है। उनके लिए उनकी कुर्सी ही उनकी आज़ादी है। अगर नाखून भी कटवाया होता तो आज़ादी की कीमत मालूम होती। वे देश के नायकों से नफरत करते हैं। महात्मा के पांव छूकर धोखे से गोली मारने वाला कायर हत्यारा गोडसे उनका आदर्श है। उसका महिमागान करने वाली महिला संसद में सुशोभित है। यही उनका न्यू इंडिया है। पर्दा हटाइए, असलियत दिख रही है। शौके दीदार अगर है तो नजर पैदा कर

आपकी आज़ादी को खतरा है। आपके उस देश की अस्मिता को निशाना बनाया जा रहा है जिसे आपके पुरखों ने अपना खून बहाकर हासिल की थी। अगर आप चाहते हैं कि उस बलिदान का मजाक बना दिया जाए तो आप भी अपने माथे पर राष्ट्रवादी लिख लीजिए और उसी भीड़ में शामिल हो जाइए जो उस पागल महिला की बात पर ताली बजा रही थी।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)