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चीन में उइगर मुसलमानों की दुर्दशा, ग़ुलामों जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर, दुनिया के ‘ठेकेदारों’ की ज़ुबां खामोश क्यों?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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चीन अपने मुसलमानों के साथ कैसा बर्ताव करता है, इसे कोई ठीक से जाने तो उसके रोंगटे खड़े हो सकते हैं। वैसे तो रूस, जापान और कोरिया जैसे देशों में भी मुसलमानों की बड़ी दुर्दशा होती रही है लेकिन चीन उनके लिए भयानक यंत्रणा-घर बन चुका है। आश्चर्य की बात है कि पाकिस्तान जैसा देश, जो इस्लाम के नाम पर बना दुनिया का अकेला देश है, वह भी चीन के मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ मौन साधे रहता है। ताजा खबर यह है कि राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने चीन के कई शहरों में बनी मस्जिदों की मीनारों और गुंबदों को ढहाने के आदेश जारी कर दिए हैं। उनका कहना है कि ये मीनारें और गुंबद वगैरह चीनी वास्तुकला के विपरीत हैं। इस अरबी वास्तुकला की अंधी नक़ल चीनी संस्कृति के विरुद्ध है। जिन्हें चीन में रहना है, उन्हें किसी विदेश संस्कृति की नकल से मुक्त रहना होगा।

ऐसा नहीं है कि चीनी मुसलमानों का यह चीनीकरण राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने ही शुरु किया है। यह सदियों से होता चला आया है। यदि आप लगभग 1300 साल पहले सियान में बनी मस्जिद का चित्र देखें तो आपको लगेगा, जैसा वह कोई बौद्ध मंदिर है। मैंने अपनी कई चीन-यात्राओं के दौरान उरुमची, केंटन, शांघाई और बीजिंग जैसे शहरों में मस्जिदों को चीनी वास्तु-कला के ढांचे में ढला पाया। माना जाता है कि सन 616-18 के आस-पास तांग राजवंश के काल में कुछ अरब और ईरानी व्यापारियों ने चीन तक पहुंचने की हिम्मत की और उन्हें चीनी सम्राट ने ये छूट दी कि वे अपना धर्म-प्रचार भी करें। धीरे-धीरे कजाक, उजबेक, ताजिक, तुर्कमान और किरगीज लोग, जो मध्य एशिया में रहते थे, वे भी आकर चीन में बसने लगे। इस समय चीन में मुसलमानों की संख्या दो करोड़ से भी ज्यादा है।

हजार-बारह सौ साल पहले जब ये मुसलमान चीन में आए तो उन्हें चीनी औरतों से शादियां करनी पड़ीं। वे पूरी तरह से चीनी ही बन गए। वे चीनी भाषा बोलने लगे, चीनी वेश-भूषा पहनने लगे और उनके रीति रिवाज भी चीनियों से मिलने-जुलने लगे। उन्हें ‘हुई मुसलमानों’ के नाम से जाना जाने लगा लेकिन परवर्ती चीनी शासकों, खासकर मंगोल शासक चंगेज़ खान और कुबलई खान के ज़माने में चीनी मुसलमानों के साथ बहुत सख्ती बरती गई। उन्हें हलाल का मांस खाने से रोका गया। उन्हें सूअर का मांस खाने के लिए मजबूर किया गया। उनके अरबी-फारसी नामों पर एतराज़ किया गया। मुसलमानों और यहूदियों को ‘गुलामों’ की तरह माना गया। उन पर तरह-तरह के टैक्स ठोक दिए गए।

ज्यों-ज्यों मध्य एशिया और अरब के साथ चीन का व्यापार और आवागमन बढ़ता गया, चीन में मुसलमानों की संख्या बढ़ती गई। उनकी संपन्नता और शक्ति भी बढ़ने लगी। ‘हुई मुसलमानों’ के मुकाबले मध्य एशिया के शुद्ध मुसलमानों का दबदबा ज्यों ही बढ़ने लगा, चीनी सम्राटों ने बड़ी बेरहमी से उन्हें मौत के घाट उतारना शुरु कर दिया। ‘हुई मुसलमान’ तो किसी तरह चीन में खपते रहे लेकिन शिन च्यांग के उइगर मुसलमानों ने बगावत का तेवर अख्तियार कर लिया।

चीन के उइगर मुसलमान मुख्यतः शिन-च्यांग नामक प्रांत में रहते हैं। इसे सिंक्यांग भी कहते हैं। यह चीन के उत्तर और पश्चिम में है। इसकी सीमाएं लद्दाख और कश्मीर को छूती हैं। सैकड़ों साल पहले भारत के जैन और बौद्ध संत इसी प्रांत से होकर चीन में दूर-दूर तक पहुंचते थे। शिन-च्यांग प्रांत की जनसंख्या लगभग सवा दो करोड़ है, जिसमें से सवा करोड़ उइगर हैं, जो वहां के मूल निवासी हैं लेकिन पिछले 60-70 साल में चीनी सरकार ने लगभग एक करोड़ हान चीनियों को भी वहां बसा दिया है। बीसवीं सदी में उइगरों का जब मध्य एशिया के राष्ट्रों और अफगानिस्तान, तुर्की, ईरान आदि राष्ट्रों से संपर्क बढ़ा तो उन्होंने स्वतंत्र तुर्किस्तान की मांग पर आंदोलन शुरु कर दिया। इस आंदोलन को दबाने के लिए पहले च्यांग काई शेक और माओ त्से तुंग की कम्युनिस्ट सरकार ने शिन-च्यांग में खून की नदियां बहा दी थीं।

अत्याचारों का वही सिलसिला अब भी जारी है। पिछले 25-30 साल में मेरा चीन जाना कई बार हुआ है। चीनी सरकार ने मुझे तिब्बत कभी नहीं जाने दिया लेकिन मुझे चीन के इस मुस्लिम प्रांत में अनुवादक के जरिए बात करने का और कई स्थानों पर जाने का मौका भी मिला। कुछ उइगर नेताओं और प्रोफेसरों से फारसी में खुलकर सीधे बात करके मुझे अनेक विशिष्ट जानकारियां भी मिलीं। मुझे कई उइगरों ने कहा कि वे यहां गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं। उन्हें मस्जिदों में जाने से रोका जाता है। उन्हें दाढ़ी नहीं रखने दी जाती है। सारा सरकारी काम-काज चीनी भाषा में होता है। हमारी अपनी तुर्की भाषा की सरकार में पूरी तरह उपेक्षा होती है। हमारे इमामों और मौलानाओं को चीनी पुलिसवाले जब चाहे थानों में बंद कर देते हैं। हमारे बच्चों पर स्कूलों में चीनी भाषा थोप दी जाती है। हमारे सारे बड़े अधिकारी हान जाति के हैं। सरकार की कोशिश है कि अपने ही ‘मुल्क’ में हम अल्पसंख्यक बन जाएं।

इधर कुछ विश्व-संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने काफी खोज-बीन करके जो रपटें बनाई हैं, वे शिन-च्यांग के ताजा हालात को काफी चिंताजनक बता रही हैं। वहां लगभग 1600 छोटी-बड़ी मस्जिदें तोड़ दी गई हैं। कुरान की प्रतियों को खुले-आम जलाया जाता है, मुहर्रम के जुलूसों पर प्रतिबंध है, अजान की आवाज मस्जिद के बाहर नहीं जा सकती, हलाल का मांस खाने को हतोत्साहित किया जाता है और मुस्लिम औरतों का जबर्दस्ती वंध्याकरण कर दिया जाता है। चीन के बड़े शहरों में जहां भी मुसलमानों की बस्तियां और दुकाने हैं, उन पर जासूसों की कड़ी निगरानी रहती है। मुझे अमेरिका में मिले कई हान और उइगर चीनियों ने बताया कि उनके कई रिश्तेदारों के शरीर से कुछ अंगों को जबर्दस्ती निकाल लिया जाता रहा है। इसके अलावा जिस तथ्य को लेकर सारे संसार में चीन की निंदा हो रही है, वह है, शिन-च्यांग के यंत्रणा-शिविर, जिनमें 10 से 15 लाख उइगर मुसलमानों को कैद करके रखा गया है और इन्हें इस्लाम-विरोधी शिक्षा दी जाती है। उनसे कठोर शारीरिक श्रम भी करवाया जाता है। चीनी सरकार का कहना है कि ये हिटलर के यंत्रणा-शिविरों की तरह नहीं हैं। ये शिक्षा-शिविर हैं, जहां उइगर मुसलमानों को चीनी सभ्यता-संस्कृति और देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाता है।