कृष्णकांत
मैं डॉक्टर्स और सरकार की तारीफ में महाभारत जैसा ग्रंथ लिख सकता हूं. लेकिन उसकी उपयोगिता क्या है? जिसकी जान संकट में है, उससे पूछिए तो इसकी उपयोगिता धूल बराबर भी नहीं है कि कोई उसकी तारीफ करे. इसलिए मैं उस डॉक्टर की तरफ से सवाल पूछना चाहता हूं जिसे मास्क और दस्ताने नहीं मिले. मैं उस बहादुर योद्धा के प्रति किए गए विश्वासघात पर सवाल करना चाहता हूं कि जिसे बिना हथियार के रणभूमि में भेजा गया है. मेरी नजर में यही सवाल लाख रुपये का है.
दिल्ली में आज छह डॉक्टर संक्रमित पाए गए हैं. तीन हिंदू राव अस्पताल में और तीन कस्तूरबा गांधी अस्पताल में. दिल्ली के बाबू जगजीवन राम अस्पताल में कोरोना संक्रमित स्टाफ का आंकड़ा 60 से ज्यादा है. एम्स जैसे शीर्ष अस्पताल में करीब 20 स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर्स संक्रमित पाए गए हैं. इसी अस्पताल की फोटो आ चुकी है जिसमें डॉक्टर सिर में पन्नी लपेट कर इलाज कर रहे हैं. उनके पास फेस शील्ड नहीं थे.
दक्षिण दिल्ली में अब तक जितने पॉजिटिव केस सामने आमने आए हैं उनमें से 31 फीसदी स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं. रोहिणी स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में अब तक 60 स्वास्थ्य कर्मचारी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं. अमर उजाला लिख रहा है कि दिल्ली में अभी तक 28 अस्पतालों में 325 से स्वास्थ्य कर्मचारी संक्रमित मिल चुके हैं, जबकि 400 से ज्यादा क्वारंटीन किए गए हैं. इंडिया टुडे ने यह संख्या 290 लिखी है.
संकट बड़ा है, लेकिन उससे निपटने के लिए आपमें गंभीरता नहीं दिख रही है. आप इसे इवेंट बनाने में लगे हैं ताकि आपका महात्म्य स्थापित हो सके. मेडिकल काउंसिल भी कह चुका है कि हमें घंटी घरियारी नहीं, पहले उपकरण मुहैया करा दीजिए. लेकिन उनकी नहीं सुनी गई. पूरे देश में डॉक्टर्स का यही हाल है.
मेरी मंशा सेना या सरकार का अपमान करने की नहीं है, न मैं डॉक्टर्स के योगदान को कमतर आंक रहा हूं. लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि जिस व्यक्ति के जीवन पर संकट है, उसे आप जान बचाने के उपकरण न देकर पुष्पवर्षा क्यों कर रहे हैं? सेना अगर सीमा पर तैनात है तो पहले उसे हथियार देंगे, सुरक्षित जंग के सामान देंगे या हौसला बढ़ाएंगे? कोरोना काल में यह हौसलाआफजाई का पाखंड एक चालाक किस्म की धूर्तता सिवा कुछ नहीं है.