श्याम मीरा सिंह
आश्चर्य की बात है, एक लोकतांत्रिक देश के संविधान में स्पष्ट अक्षरों में अंकित है कि इस मुल्क के नागरिकों को अधिकार है कि वे जिस चीज से असहमत हों प्रदर्शन कर सकते हैं, विरोध जता सकते हैं, उसके खिलाफ नारे लगा सकते हैं, पोस्टर बना सकते हैं। बावजूद इसके इस सरकार को ये हिम्मत कहाँ से मिलती है कि वह प्रोटेस्ट करने वाले नागरिकों के हर समूह पर लाठियां बरसा देती है, बूढ़े किसानों पर भी, रोजगार मांगते छात्रों पर भी। क्या इस देश के नागरिकों को प्रोटेस्ट करने का अधिकार नहीं है?
सच तो ये है “नागरिकता संसोधन अधिनियम” इस देश में लोकतंत्र की खुली परीक्षा थी, जिसमें ये देश फेल हुआ, इसी देश के नागरिकों ने लाठियां बरसाने वाली सरकार को जमकर समर्थन दिया। मुसलमानों को सबक सिखाने की आपकी इच्छा अलोकतांत्रिक होने की कीमत तक जा चुकी थी। लाठी चलाने के एवज में इस देश की सरकार को एक मुर्दा कौम मिली, एक मुर्दा लोकतंत्र मिला। इस देश की लोकतांत्रिक चेतना को सिक्युलर और कम्युनिस्ट कहकर मसल दिया गया। नागरिकता कानून के समय ही लोकतंत्र नामकी कविता को लाश कर दिया गया था अब जो किसानों के साथ किया जा रहा है, जो छात्रों के साथ किया जा रहा है वह उस लाश पर लात मारकर चेक करते रहना जैसा है कि कहीं उस लाश की देह में कोई सांस तो नहीं बची।
नागरिकता कानून के खिलाफ इस देश के नागरिक सिर्फ पर्चा लेकर खड़े होते थे, इसपर भी सरकार उन्हें जबरन जेल में डाल देती थी, उसकी परिणीति अंत में एक समुदाय के घर जलाने के रूप में हुई। तब आप खुश थे, तब आपने एक लोकतांत्रिक देश में अलोकतांत्रिक और अनैतिक शक्तियों का समर्थन किया। जिस वक्त आप संप्रदायिक आधार पर अपने नेता का समर्थन कर रहे थे, उसी वक्त आपने अपने नागरिक होने का अधिकार खो दिया। जनता होने में, भीड़ होने में और नागरिक होने में अंतर है। आप भीड़ बनकर रह गए हैं आपका नेता और उसकी पुलिस जब चाहे आपकी कमर पर लाठियां तोड़ सकती है और ये अधिकार भी आपने खुद खोया है। नागरिक वे थे जो असहमति के बाद सड़कों पर थे, लेकिन उन्हें कुचलवाने में आपने एक भीड़ की तरह व्यवहार किया। अब आप धीरे धीरे इस देश को नरक होते देखिए। पर एक सवाल का जबाव जरूर सोचिएगा कि इस मुल्क ने आपका क्या बिगाड़ा था जो इतने निकम्मे शासकों को चुनकर जा रहे हैं, जो ऐसी मीडिया का समर्थन कर रहे हैं जो आपकी एक खबर नहीं दिखाती।
किसानों को पीटा जाता है, प्रधानमंत्री एक ट्वीट नहीं करते, कल बेरोजगार नौजवानों ने मिलियन्स में ट्वीट किए पर प्रधानमंत्री का एक ट्वीट नहीं आया। अगर आप प्रधानमंत्री का एक स्कैच बनाकर ट्वीट कर देते तो पक्का प्रधानमंत्री का रिप्लाई मिलता। लेकिन अफसोस आपने उनसे रोजगार की बात की, अब रिप्लाई क्यों ही मिलना था। आपने वोट मंदिर के नाम पर दिया था, मंदिर बन रहा है, अब आप उस नेता से रोजगार की मांग किस नैतिक आधार पर कर रहे हैं। सच तो ये है कि जिस दिन आपने नागरिकता कानून को कुचलने के लिए प्रधानमंत्री का समर्थन किया, प्रदर्शन और असहमति के अधिकार आप भी उसी दिन खो चुके थे। पर अब भी वक्त है, पाकिस्तान के मशहूर शायर अब्बास ताबिश ने भी क्या ख़ूब कहा है-
पानी आंख में भर कर लाया जा सकता है,
अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है।