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वैश्विक शांति के लिए ज़रूरी है इराक़, अफग़ानिस्तान, सीरिया, लीबिया और यमन से सबसे पहले विदेशी फौजें बाहर निकलें।

ज़ैग़म मुर्तज़ा

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वैश्विक घटनाओं पर तटस्थ कौन है? न आप और न हम। आपका ऐजेंडा क्या है नहीं मालूम, पर मेरा ऐजेंडा साफ है। वैश्विक शांति के लिए ज़रूरी है कि इराक़, अफग़ानिस्तान, सीरिया, लीबिया और यमन से सबसे पहले विदेशी फौजें बाहर निकलें। विदेशी मतलब विदेशी। इसके बाद हथियारों की ख़रीद फरोख़्त की अंतर्राष्ट्रीय मानीटरिंग हो। पूरी दुनिया को ख़बर होनी चाहिए, किसने, किसको, कब, कितने और कैसे हथियार दिए। सऊदी अरब, ईरान, तुर्की और मिस्र मिलकर क्षेत्रीय सुरक्षा की ज़िम्मेदारीं लें और एक साझा सैन्य निगरानी गठबंधन बनाएं, नाटो जैसा। जिस दिन हथियार उत्पादक और ऊर्जा कंज़्यूमिंज देशों का मध्य और पश्चिम एशिया में सीधा सैन्य दख़ल ख़त्म हो जाएगा उसी दिन दुनिया भर में शांति भी आ जाएगी और इस इलाक़े की तरक़्क़ी कोई नहीं रोक सकता।

इसके बाद तालिबान, हमास, हिज़बुल्लाह, हूसी जैसे संगठन अपने आप अप्रासंगिक हो जाएंगे। इराक़ और अफग़ानिस्तान से विदेशी फौजों की वापसी इस दिशा में एक क़दम है। व्यवस्था बदलती हैं तो अराजकता आती है। थोड़ा सब्र रखें, दुनिया बदल रही है। अगले दस साल इस तरह की बातों के लिए मन मज़बूत रखें। रही बुरे की बात तो जितना बुरा होना था उतना हो चुका है। अफग़ानिस्तान, सीरिया, यमन या लीबिया में अब कुछ भी उससे बुरा नहीं हो सकता जो दुनिया के मज़बूत देशों ने संयुक्त राष्ट्र की नाक तले इन देशों के लोगों के साथ किया है। एंड प्लीज़ शरणार्थी वाला लाॅजिक न दें। किसी के घर पर मिज़ाइल फेंक कर बेघर कीजिए, उसके कमाते हुए सदस्य को मार दीजिए और फिर शरण देने का नाटक कीजिए। इन देशों से जो संपदा लूटी है और शरणार्थियों से जो तक़रीबन मुफ्त जैसा श्रम लिया जा रहा है उसका हिसाब कौन देगा?


अगर मानवीय त्रासदी दुख पहुंचाती हैं तो मदद की कोशिश कीजिए। सिर्फ राक्षस आनंद या मन में इफ-बट की चादर में छिपे फोबिया हैं तो अपने काम से काम रखिए। आपके रूदन से दुनिया नहीं बदल रही। दुनिया बदलनी है तो अपने आस-पास से शुरूआत कीजिए। ज़्यादा क्रांतिकारी हैं तो वैश्विक स्तर पर हथियारों और नशीले पदार्थों के कारोबार के ख़िलाफ मज़बूत आंदोलन कीजिए। संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए आवाज़ उठाइए और ऐसा माहौल बनाइए कि कोई सबल किसी मजबूर को कूट कर ऐसे ही न निकल जाए। सबकी जवाबदेही होनी चाहिए। बाक़ी अपने पड़ोसी पर खीज निकाल कर आप तालिबान जैसों को नहीं हरा सकते। ये जो तालिबान-तालिबान उछल रहे हैं ये आप ही की तरह फ्रस्ट्रेटिड लोग हैं। हमारे लिए आप दोनों की ही कलाकारी समझना मुश्किल नहीं। हम जैसों के लिए ये बिलों से निकले, सांप, नाग, दोमुंहो और सपोलों को पहचानने का अवसर है।


ख़ैर, आपकी मूर्खताएं आपके घर के बग़ल में नफरत का बदबूदार पहाड़ खड़ा कर रही हैं जिसको आपको रोज़ ख़ुद ही पार करना पड़ेगा। नफरत के जिस चक्र का आप ज़िक्र कर रहे हैं उसे तोड़िए, ख़ुद उसका हिस्सा मत बनिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)