कृष्णकांत
पिता पूजा करता है. बेटा नमाज पढ़ता है. पिता का नाम शंकर है. बेटे का नाम अब्दुल है. पिता का नाम जवाहर है तो बेटे का नाम सलाउद्दीन है. पति का नाम मोहन तो पत्नी का नाम रूबीना. पिता हिंदू है, लेकिन बेटा मुसलमान है. मां मुसलमान है लेकिन बेटा या बेटी हिंदू है. एक ही आंगन में दिया भी जलता है और नमाज भी अदा होती है. वे नवरात्र भी रखते हैं और रोजा भी रखते हैं. वे भगवान की पूजा भी करते हैं, वे अल्लाह की इबादत भी करते हैं.
आप सोच रहे हैं कि ये क्या घनचक्कर है! लेकिन ये हिंदुस्तान का सच है. हिंदुस्तान ऐसा ही है. हमने-आपने इसे ठीक से देखा-समझा नहीं है.
कुछ दिन पहले जिस राजधानी में लोगों को काटने का नारा लगाया गया है, वहां से कुछ ही घंटे की दूरी तय करके अजमेर पहुंचिए. आपको ऐसे परिवार मिल जाएंगे जो हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी हैं. राजस्थान के करीब चार जिलों में एक समुदाय रहता है चीता मेहरात समुदाय. ये ऐसा समुदाय है, जहां एक ही परिवार में हिंदू और मुस्लिम दोनों होते हैं. कभी कभी तो एक ही व्यक्ति दोनों धर्म को एक साथ मानता है. ज्यादातर परिवार होली, दिवाली, ईद सब मनाते हैं. राजस्थान में इस समुदाय की संख्या करीब 10 लाख तक बताई जाती है.
माना जाता है कि इस समुदाय का ताल्लुक चौहान राजाओं से रहा है. इन्होंने करीब सात सौ साल पहले इस्लाम की कुछ प्रथाओं को अपनाया था. तबसे यह समुदाय एक ही साथ हिंदू मुसलमान दोनों है.
अजमेर के अजयसर गांव के जवाहर सिंह बताते हैं, ‘मैं हिंदू हूं लेकिन मेरे बेटे का नाम सलाउद्दीन है. हमारे यहां भेद नहीं है. हम शादियां भी इसी तरह से करते हैं, सैंकड़ों वर्षों से यही होता आ रहा है.
इस गांव में एक ही जगह मंदिर और मस्जिद दोनों हैं. शादियों में जब लड़के की बारात निकलती है तो मंदिर और मस्जिद दोनों जगहों पर आशीर्वाद लिया जाता है. लड़कियों की शादी में कलश पूजन होता है, उसके बाद आपका मन हो तो फेरे लीजिए, मन हो निकाह कीजिए, मन हो तो दोनों कर लीजिए.
सिर्फ यही नहीं, असम के मतिबर रहमान भगवान शंकर के मंदिर की देखभाल करते हैं. यह काम उन्हें उनके पुरखों ने सौंपा है. 500 साल पुराने इस मंदिर की देखभाल मतिबर रहमान के पुरखे ही करते आए हैं. नीचे फोटो उन्हीं की है.
मैंने इधर बीच गौर किया कि कई लोग गंगा जमुनी तहजीब का मजाक उड़ाते हैं. सावरकर और जिन्ना की जोड़ी से प्रभावित कुछ लोगों का कहना है कि भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता की बात राजनीतिक है. वास्तव में दोनों अलग-अलग हैं. लेकिन अगर आप देखना चाहेंगे तो पाएंगे कि दोनों एक-दूसरे में इतने घुले-मिले हैं, कि फर्क करना मुश्किल है.
जो लोग हिंदू-मुस्लिम विभाजन का सपना देखते हैं, वे चीता मेहरात समुदाय को किस तरफ रखेंगे? समाज और संस्कृति की सुंदरता तो इसी में है कि जो जैसा है, उसे वैसा ही रहने दिया जाए. जब कोई नेता या पार्टी धार्मिक विभाजन का प्रयत्न करे तो आपको लाखों करोड़ों के बारे में सोचना चाहिए कि वे किधर जाएंगे? जो जैसे हैं, उनको वैसे रहने दीजिए. फिर हम आप सदियों तक गर्व से कह पाएंगे कि मैं उस हिंदुस्तान का बाशिंदा हूं जहां पर हर धर्म और हर भाषा के लोग घुलमिल कर रहते हैं और यही हमारी ताकत है: ‘विविधता में एकता’.
कोई है जो हमारी अपनी सुंदरता को मिटाने पर तुला है लेकिन दुनिया भर की विद्रूपता को हम पर थोपना चाहता है. आपको अपनी यही सुंदरता बचानी है. जय हिंद!
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं)