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तो प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार होंगी ममता?

लक्ष्मीप्रताप सिंह

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अब एक राजनैतिक कयास सुनिए। ममता बनर्जी अगली प्रधानमंत्री उम्मीदवार हैं, और उनके चांस भी बनेंगे। प्रशांत किशोर उर्फ पी.के. को इसके सूत्राधार बनेंगे। मेरी राजनीतिक समझ का बेस यह है की कल पीके मुंबई में थे और शरद पंवार से मिले हैं। अगर मैं ममता बनर्जी के लिए काम कर रहा होता तो और मुझे उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का काम मिलता तो शरद पंवार पहले आदमी थे जिनसे मिला जाता। क्योंकि एक तो शरद और उद्धव ठाकरे रिश्तेदार हैं तो वो उनकी पर्स्नल लेवल पे सुनेंगे। दूसरी तरफ शरद पहले नेता थे जिन्होंने मोदी का विजय रथ बहुत उलट फेर करके न सिर्फ रोका बल्कि अमित शाह को एकदम बेवकूफ बना के अपने परिवार के केस भी ख़त्म करवा लिए और मुख्यमंत्री भी अपना बनवा लिया था। इसलिए राजनीती का असली चाणक्य हैं शरद पंवार उनके बिना गैर कांग्रेस-भाजपा प्रधानमंत्री संभव नहीं है।

आज़ादी के बाद से ही जब भी तीसरे मोर्चे की बात आती है तो प्रधानमंत्री पद के लिए एक नेता पर सहमति नहीं बन पाती है, एक तो ममता बनर्जी की उम्र और ओहदा ऐसा है की लोग उनकी इज्जत करते हैं, दूसरी तरफ देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य यूपी की बड़ी पार्टी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के ममता बनर्जी से अच्छे सम्बन्ध हैं । शरद पंवार की बात अखिलेश यादव के आलावा, चंद्रबाबू नायडू, जगनमोहन , उद्धव ठाकरे से लेके दक्षिण के ज्यादातर नेता सुनते हैं।

आखिरी बात, पीके ने कई चुनावों में अच्छा काम किया है। कई चुनाव जिताये या सही एनालाइज किये हैं। बंगाल चुनाव में अमित शाह ने जब 200 सीटों की बात की तो पीके ने एक तरह से सीधे अमित शाह को चेलेंज किया था की भाजपा 100 सीट का आंकड़ा नहीं छुएगी और जो खुद को चाणक्य समझते हों वो चाहें तो शर्त लगा लें की वो राजनीती छोड़ दें या मैं अपना काम छोड़ दूंगा। पीके जैसा व्यक्ति जो चुनावों की इतनी समझ रखता है, वो कभी भी राष्ट्रिय पार्टी छोड़ के तृणमूल जैसी एक क्षेत्रीय पार्टी ज्वाइन नहीं करेगा। जब तक उस पार्टी के मुखिया का अगला प्रधान मंत्री और बनने के पूरे चांस न हों।

इसका एक उदाहरण इस बात से समझ लीजिये जैसे मनमोहन के भाषण के बाद तुरंत मोदी भाषण देने आ जाते थे उसी तरह हाल में मोदी के भाषण के बाद ममता बनर्जी उनकी मिट्टी पलीत करने आ जाती हैं। ध्यान रहे 2014 चुनाव से पहले मनमोहन के लाल क़िला भाषण के ठीक बाद मोदी गुजरात से लाल किला जैसा ही सेट बनवा के टीवी पे छाये थे ताकि पब्लिक के दिमाग में अभी से उनकी प्रधानमंत्री वाली इमेज जाने लगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)