तो अब राजनीतिक रूप से अगला कश्मीर बनने जा रहा है लक्षद्वीप?

ज़ैग़म मुर्तज़ा

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किसी से पूछिए देश में सबसे ख़ूबसूरत, शांत और अराजनीतिक इलाक़े कौन से हैं जहां व्यक्ति शांति से रह सकता है? ऐसी जगहों में कुछ दिन पहले तक अंडामन निकोबार द्वीप समूह, दादर, नागर हवेली और लक्षद्वीप जैसे नाम आते लेकिन लक्षद्वीप अब अशांत है। मैं कहूं कि लक्षद्वीप राजनीतिक रूप से अगला कश्मीर है तो शायद अभी यक़ीन न हो लेकिन मुझे सरकार और संघ की सलाहियत पर यक़ीन है।

लक्षद्वीप की क़रीब 96% आबादी गोश्त खाने वाले अल्पसंख्यक हैं। वहां शराब की बिक्री पर पाबंदी है। लेकिन क़रीब 33 वर्ग किलोमीटर का या भूक्षेत्र समुद्र में है, यहां बीच हैं, नीला पानी है लेकिन न शराबघर हैं और न थाईलैंड जैसी सुविधाएं। लेकिन इसके बिना होटल, रिज़ोर्ट और कसीनो कैसे चलेंगे? बहरहाल, लक्षद्वीप में जुआघर, तबायफख़ाने और शराबख़ाने खुलने की अपार संभावना है। माइनिंग और समुद्री दोहन का अपार स्कोप है।

गुजरात और महाराष्ट्र के लालाओं के लिए कारोबारी संभावना अलावा यहां सियासत करके देश के दूसरे इलाक़ो में धार्मिक ध्रुवीकरण की भी एक उम्मीद संघ को नज़र आती है। यहां पर भले दाल न गले लेकिन कश्मीर सिर्फ कश्मीर थोड़े है? बंगाल सिर्फ बंगाल थोड़े है। या फिर केरल सिर्फ केरल है क्या? ये सब गोबरपट्टी के फ्रस्ट्रेटिड, जलनख़ोर, विफल और दुनिया से 50 साल पीछे चल रहे कुंजी छाप कचरा समाज के लिए बेहतरीन चारा है। कश्मीर तो औक़ात से बाहर है, तो लक्षद्वीप में ही प्लाॅट बेच लिए जाएं। मुख्य भूभाग से दूर ही सही, मियां भाई भला चैन से क्योंकर रहें?

ख़ैर, लक्षद्वीप में पहली बार सरकारी बाबू की जगह शाखा से प्रशासक भेजा गया है तो मिशन के तहत ही गया होगा। हाफ पैंट प्रशासक प्रफुल्ल पटेल ने जाते ही अपना काम शुरू कर दिया। जिस क्षेत्र में पिछले दस साल में चोरी से बड़ा अपराध नहीं हुआ वहां ग़ुंडा एक्ट लागू किया। गोश्त की बिक्री पर रोक लगाई क्योंकि 90% लोग भैंस, बकरा खाने वाले हैं। शाराब की बिक्री से रोक हटा दी क्योंकि वहां कोई शराब नहीं पीता। लेकिन ये सिर्फ सियासी एजेंडा है। कारोबारी ऐजेंडा ये है कि गोवा में विधायक ख़रीद में सहयोग कर चुके एक लाला को माइनिंग का काम चाहिए, उसे पैसे वसूल करने हैं। लोग विरोध करेंगे तो ग़ुंडा एक्ट भी लगानी होगी। ऐसे ही मुंबई के एक बड़े लाला को वहां कसीनो खोलना है लेकिन शराब की बिक्री से रोक हटे बिना न कसीनो चलेगा और न नाचघर। रिज़ाॅर्ट बनाना है तो शराब भी चाहिए और लड़कियां भी। इस सबका ज़ाहिर है विरोध होगा तो 350 कर्मियों वाले पुलिस बल से संभलेगा नहीं। फिल्हाल कुछ केंद्रीय बल मंगाने पर बात हो रही है। कुल मिलाकर लक्षद्वीप अगला रणक्षेत्र है। कश्मीर और बंगाल के बाद अमित मालवीय का आईटी ख़ोमचा बस वहां पहुंचने ही वाला है।

(लेखक युवा पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)