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ग़ालिब के साथ सर सैयद अहमद: अनजान शख्स के लिये सर सैय्यद अहमद ख़ान पुश्तैनी घर तलाशना असंभव

मिर्जा मोहम्मद असादुल्लाह बेग खान यानी मिर्जा गालिब और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के  फाउंडर सर सैयद अहमद खान दिल्ली वाले थे। दोनों पड़ोसी भी थे। सर सैयद अहमद ‎‎ ( जन्म 17 अक्टूबर 1817 – 27 मार्च 1898) ने दिल्ली के महत्वपूर्ण स्मारकों पर ‘असरारुस्नादीद’ (इतिहास के अवशेष) नाम से महत्वपूर्ण किताब भी लिखी। इसकी प्रस्तावना गालिब ने नहीं लिखी थी। हालांकि उन्होंने ‘आईंने अकबरी’ की प्रस्तावना लिखी थी। उसका सर सैयद ने फारसी से उर्दू में अनुवाद किया था।

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‘असरारुस्नादीद’ दो खंडों में छपी थी। इसका प्रकाशन 1842 में हुआ था। इसमें दिल्ली की 232 ऐतिहासिक इमारतों पर विस्तार से लिखा गया है।असरारुस्नादीद में जिन स्मारकों का जिक्र किया है, उनमें से कइयों को गोरों ने सन 1857 की क्रांति के बाद नेस्तानाबूत कर दिया था। फिर सन 1911 में दिल्ली के राजधानी बनने के बाद भी कई स्मारक तोड़ दिए गए।  सर सैयद अहमद महरौली स्थित हौज ए शम्सी का जिक्र करते हैं। 800 साल पुराना राष्ट्रीय महत्व का यह ऐतिहासिक तालाब है। अफसोस कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इसकी कायदे से सुध नहीं ली। एएसआई की संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल यह तालाब बदहाल है।

वे असरारुस्नादीद में  बाग ए नजीर का भी जिक्र करते हैं। ये भी महरौली इलाके में है। ये अब भी बेहतर तरीके से मेनटेन हो रहा है। जो घर था सर सैयद अहमद का दरियागंज में अब बंद हो गए गोलचा सिनेमा के पीछे चलिए। आप कुछ देर में पहुंच जाते हैं सर सैयद अहमद रोड पर। हर वक्त रौनक रहती है यहां। इसी जगह पर है मुसलमानों को तालीम की रोशनी दिखाने वाले शख्स सर सैयद अहमद का जन्म स्थान।

ये बात दीगर है कि अब किसी अनजान शख्स के लिए सर सैयद अहमद के पुश्तैनी घर को खोजना लगभग असंभव है। बमुश्किल ही कोई मिल पाता है, जिसे मालूम होता है उनका घर। ये लगभग एक हजार गज में है। इसमें ही सर सैयद अहमद का जन्म हुआ था। उनके परिवार की दिल्ली में खासी प्रतिष्ठा थी। इसी में उनके बचपन के शुरूआती साल बीते।

पर अब उनके घर के अवशेष भी नहीं बचे हैं। लंबे समय तक लगभग उजाड़ रहा यह घर। इधर गायें-भैंसें बंधी रहती थीं। बीते कुछ समय के दौरान सर सैयद अहमद के घर को जमींदोज करके बन गए हैं सुंदर फ्लैट। हर फ्लैट की कीमत एक-डेढ़ करोड़ रुपये से कम नहीं होगी। अफसोस इसके बाहर किसी ने एक पत्थर ( Plaque) लगवाने की भी कोशिश नहीं हुई की ताकि पता चल जाए कि क्यों ये स्थान है खास है।

दरियागंज से दिल्ली विधानसभा के सदस्य  शोएब इकबाल दावा करते हैं कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के दिल्ली में रहने वाले पुराने छात्रों से सर सैयद अहमद के घर को स्मारक या लाइब्रेयरी में तब्दील करने के संबंध में बार-बार बात की।  आरिफ मोहम्मद खान, मुफ्ती मोहम्मद सईद समेत बहुत से असरदार नेताओं से मिले भी।

लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। सब वादे करके भूल गए। एक-दो सामाजिक संगठनों ने भी कोशिशें कि सर सैयद अहमद के जन्म स्थान को स्मारक बनाने के लिए। अफसोस वो कोशिशें भी नाकाफी ही सिद्ध हुईं।

सर सैयद अहमद खान को आमतौर पर अलीगढ़ के साथ जोड़कर देखा जाता है। इसकी वजह वाजिब है। आखिर उन्होंने वहां  एक यूनिवर्सिटी की स्थापना की। पर वे थे तो दिल्ली वाले। दिल्ली में उनका बचपन गुजरा।  वे इसी दिल्ली में यमुना में तैराकी करने बराबर जाया करते थे। वे बेहतरीन तैयार थे। उनके पिता  की तुगलाकाबाद में जमीनें हुआ करती थीं। इसलिए वे अपने परिवार की जमीनों को  देखने के लिए तुगलकाबाद जाया करते थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)