हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा
उर्दू के मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र का यह शेर आगरा की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले शेर अली खान पर बिल्कुल सटीक बैठता है। शेर अली खान जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के पास की झोपड़ियों में रहता है। आठ साल पहले तक वह भीख मांगा करता था। एक रोज़ उस पर चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस की नजर पड़ी तो उन्होंने उसके जीवन को संवारने की मुहिम शुरू कर दी। नरेश पारस की मेहनत की शेर अली ख़ान ने भी ज़ाया नहीं होने दिया। हाल ही में आए यूपी बोर्ड के परिणाम में शेर अली खान ने हाई स्कूल की परीक्षा में 63 फीसद अंक प्राप्त किए हैं। शेर अली खान के पास होने पर पूरे डेरे में मिठाई बांटी गई। उसकी इस सफलता से प्रेरणा लेकर बच्चे भी अब शिक्षा प्राप्त करने की कोशिशों में लग गए हैं।
सुविधाएं हैं कोसों दूर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ शेर अली खान जिन झुग्गियों में रहता है वहां सुविधाएं कोसों दूर हैं। वहां न बिजली है और न ही स्वच्छ पानी मिल पाता है। बस्ती के रहवासियों को दूर से पानी लाना पड़ता है। ऐसे अभाव में रहक शेर अली ख़ान प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसने रात में मोमबत्ती के उजाले में पढ़ाई की है। बिना किसी संसाधन के शेर अली खान ने यह कर दिखाया। उसके हाथ से भीख मांगने का कटोरा छुड़वाकर उसके हाथों में कलम और किताब थमाने वाले नरेश पारस अपने मार्गदर्शन में उसे पढ़ाते रहे। कभी नरेश पारस उसे झुग्गियों में पढ़ाते जाते तो कभी अपने घर बुलाकर पढ़ाते जिसका नतीजा आज सबके सामने है। शेर अली खान के पिता रंगी घर, दुकान और प्रतिष्ठानों पर नींबू मिर्च बांधकर परिवार का खर्च चलाते हैं।
स्कूल में दाखिला देने से किया था इंकार
आठ साल पहले नरेश पारस ने पुलिस के साथ चलाए गए रेस्क्यू ऑपरेशन में बच्चे को पकड़ा था। बार-बार भिक्षावृत्ति में जा रहा था। नरेश ने इसे शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया तो स्कूल वालों ने यह कहकर दाखिला देने से मना कर दिया कि यह गंदा है। इनमें से बदबू आती है और यह स्कूल का माहौल खराब करेगा क्योंकि इसका सफाई से कोई लेना-देना नहीं था।
नरेश पारस ने इनकी गंदगी साफ की साफ सुथरा रहना सिखाया फिर विद्यालय में ले गए तो इस बार जाति आड़े आ गई। जाति प्रमाण पत्र न होने पर स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया। एक आंदोलन के बाद इस समुदाय के 36 बच्चों को स्कूल में दाखिला मिला। तब से लगातार नरेश पारस इन बच्चों की देखभाल कर रहे हैं। शिक्षा की निगरानी कर रहे हैं। आठवीं के बाद शेर अली खान का दाखिला रतन मुनी जैन इंटर कॉलेज में कराया। आज तमाम बच्चे समुदाय से पढ़ने जाते हैं।
अन्य गतिविधियों में भी अव्वल
शेर अली खान पढ़ाई के साथ साथ डांस’ थिएटर’ वेटलिफ्टिंग और एथलेटिक्स भी खेलता है। इसमें उसने तमाम गोल्ड, सिल्वर मेडल, सर्टिफिकेट और ट्रॉफी जीती हैं। शेर अली द्वारा जीती गईं ट्रॉफी और सर्टिफिकेट से उसकी झोपड़ी जगमगा रही है।
अनाथ बेटियों को भी दिए शिक्षा के पंख
नरेश ने सिर्फ शेर अली की ज़िंदगी ही नहीं संवारी है बल्कि देवरी रोड रहने वाली अनु और खुशी की जिंदगी को भी नर्क बनने से बचाया है। इन दोनों बच्चों के माता पिता की मौत बीमारी से हो गई थी। रिश्तेदार इनकी कम उम्र में शादी करना चाहते थे। ऐसे में नरेश पारस ने शादी रुकवाई और अन्य जरूरतें पूरी कीं। अब अनु और खुशी ने भी हाई स्कूल की फर्स्ट डिवीजन परीक्षा पास की है। नरेश पारस ने लोगों से अपील की है कि ऐसे बच्चों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। जिससे अभावों में जी रहे बच्चों को एक नई रोशनी मिल सके और वह समाज में अपनी चमक बिखेर सकें।