एक मामले में यह अच्छा है कि जो भी हो रहा है तीव्र गति से हो रहा है। इसका फायदा यह होता है कि सब कुछ जल्दी एक्सपोज हो जाता है। कुछ भी छुपा नहीं रह पाता। हमारा मध्यम वर्ग बड़ा पाखंडी है। सात साल पहले तक या दो साल पहले तक भी कई मामलों में यह अपने विचार कुछ और बताता था लेकिन आज ज्यादा मुखर होकर कुछ और। इसमें पत्रकार, लेखक, ब्यूरोक्रेट, टेक्नोक्रेट, वकील, जज सब शामिल हैं। इसे सुविधा और सुरक्षा का पैंतरा भी कह सकते हैं। मगर ये इससे ज्यादा कुछ और है। बात बुरी लग सकती है, मगर सच्चाई यही है कि हम लोग कुछ ज्यादा ही अवसरवादी होते हैं। यथा राजा तथा तथा प्रजा को हम बहुत तेजी के साथ आत्मसात करते हैं। धारा के विरुद्ध चलने वाले लोग बहुत कम होते हैं। और उनमें भी हर पैमाने पर खरा उतरने वाले तो और भी कम।
यह समय भारी संक्रमण का है। इससे पहले शायद ही कभी ऐसा रहा हो कि हर सिद्धांत दांव पर लगा हो। जातिगत भेदभाव, धर्मनिरपेक्षता, महिला समानता, अमीर गरीब, उत्तम खेती और किसान, सब कटघरे में हैं। इन पर कोई नई व्यख्य़ा नहीं दी जा रही। मगर इन सिद्दांतों पर सवाल खड़े करके इन्हें संदेहास्पद बनाया जा रहा है। नया भारत कैसा होगा यह नहीं बताया जा रहा। मगर पुराना खराब था यह बताकर आम लोगों के मन में शक डाले जा रहे हैं। शक्की समाज कैसा होगा यह हमें जल्दी ही मालूम पड़ जाएगा क्योंकि पुरानी बुनियादों को गिराने की गति तेज से और तेज की जा रही है।
बहुत सारे उदाहरण हैं मगर इस समय सबसे तेज चलाया जा रहा है किसान विरोधी माहौल। दस महीने होने जा रहे हैं किसान आंदोलन को। कोई सुनवाई नहीं। सरकार, मीडिया, न्यायपालिका कहीं नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनाई थी। कहां है इसकी रिपोर्ट? किसी को कोई चिन्ता नहीं है। खुले आम हरियाणा का एसडीएम कहता है किसानों के सिर फोड़ दो। कितनों के सिर फूटे कोई गिनती नहीं। एक किसान मर भी जाता है। मगर कोई सज़ा नहीं। अब कोई अदालत स्वत: संज्ञान नहीं लेती। सुप्रीम कोर्ट के माननीय चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना कहते हैं कि जगमोहन सिन्हा ने इन्दिरा गांधी के खिलाफ बहुत साहसिक फैसला सुनाया था। हां सुनाया था। मगर क्या किसी ने यह सुना कि सिन्हा के खिलाफ कुछ हुआ हो? सारे जजों का पूरा सम्मान, न्याय पालिका का पूरा आदर। और यह सबसे जरूरी भी है। क्योंकि वही आशा कि एक किरण है। दूर हो मगर घोर अंधकार, बियाबन में एक क्षण को भी चमकती रोशनी आशा के बहुत सारे दीप जला देती है। हमारी न्याय पालिका उस दूर से आती रोशनी की तरह गरीब की, फरियादी की आंखों में जीवन का स्वप्न कभी मिटने नहीं देती। वह जो कभी कहा गया था पिया मिलन की आस! वे नैना अब इंसाफ की आस में बचे रहना चाहते हैं। अन्याय के शिकार को न्याय का विश्वास बना रहना बहुत जरूरी है। न्याय शास्त्र का पहला सिद्दांत ही यही है कि लोग खुद न्याय न करने लगें इसलिए राजा, न्यायधीश में उनका विश्वास बना रहना चाहिए।
27 सितंबर को किसानों का भारत बंद है। बंद का मतलब हमारे यहां बाजार बंद होता है। क्या ताकत है किसान में कि वह बाजार बंद करवा ले? बाजार की रौनक उसी से है बाजार चलते उसी से हैं मगर बाजार में उसका हस्तक्षेप नहीं। जनता चाहेगी तो बाजार बंद होंगे नहीं तो सरकार और प्रशासन की तो पूरी कोशिश होगी कि बाजार खुले रहें और किसान जोर जबर्दस्ती कर रहे थे कि खबरें मीडिया में चलें।
किसान के विरोध में रात दिन माहौल बनाया जा रहा है। आई टी सेल एक से एक झूठ सोशल मीडिया खासतौर पर व्हट्स एप ग्रुपों पर चला रहा है। यही मुख्यधारा के मीडिया में भी चल रहे हैं। पहले इन्हें खालिस्तानी, गुंडे, मवाली जाने क्या क्या बताया गया। अब एक नया ट्रेंड चला रहे हैं। मध्यम वर्ग को इनके खिलाफ यह कहकर खड़ा कर रहे हैं कि तुम्हें नौकरी, व्यापार में क्या मिलता है? किसान तुमसे ज्यादा सम्पन्न है। इस झूठ को चलाने के लिए कई कहानियां बनाई जा रही हैं। लड़कियों को भी शामिल किया गया है कि वे बातें कर रही हैं कि किसी नौकरी वाले या व्यापारी से शादी होने से अच्छा है किसान से शादी। घर, जमीन सारी मौजे हैं। अब बिचारी लड़कियों को क्या मालूम की किसान की औरतों का जीवन कितना कठोर होता है। मगर किसान के खिलाफ माहौल बनाना है तो उन्हें देशविरोधी से लेकर आरामदेह जिन्दगी जीने वाले कुछ भी बता दो! लेकिन बताना उनकी राजनीति है अफसोस जनता का है कि एक के बाद एक झूठ उसे पेश किए जाते हैं और वह सबपर विश्वास करके अपने विवेक को और क्षीण कर लेती है। कभी कभी तो लगता है कि जनता भेड़ में बदलने के लिए पूरी तैयार है बस कुछ लोग इंसान हो, सोचो, जागो, एक रहो की आवाजें लगाकर अंतिम प्रक्रिया को डिले कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव बड़े महत्वपूर्ण हैं। यहां जीतने पर ढाई साल बाद के लोकसभा चुनाव की राह आसान रहेगी। हारने पर सफर मुश्किल हो जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री योगी के संघ परिवार में बढ़ते कद को पसंद करें या न करें उन्हें जिताना मजबूरी है। इसके लिए उनके पास एक ही मंत्र है। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कब्रिस्तान श्माशान की बात कही थी। इस बार इस्लाम, कट्टरता और अफगानिस्तान से बात की शुरूआत की है। उद्देश्य एक ही है कि चर्चा हो, प्रतिक्रिया हो। भारत में बढ़ते कट्टरवाद की बात हो और ध्रुविकरण की रफ्तार तेज हो। नहीं तो जिस तालिबान से केन्द्र सरकार कतर में बात कर रहे थी उस पर सार्वजनिक टिप्पणी करने का क्या मतलब? मतलब एक ही है कि जैसे पिछले विधानसभा चुनाव में कब्रिस्तान- श्मशान, रमजान दीवाली की बात करके चुनाव जीत लिया गया था वैसे ही इस बार भी सारी समस्याओं को परे धकेलकर हिन्दु मुसलमान पर ही चुनाव केन्द्रित किया जाए।
600 से ज्यादा किसान आंदोलन के दौरान मर चुके हैं। मगर चुनावों में किसान मुद्दा नहीं होंगे। पूरी कोशिश है कि पंजाब में भी खेती किसानी मुद्दा नहीं बने। कैप्टन अमरिन्द्र सिंह को काम पर लगा दिया है। वे इस समय का सबसे बड़ा मुद्दा ढूंढ लाए हैं। सिद्धु को मुख्यमंत्री बनने से रोकना। कौन बना रहा है, सिद्धु को मुख्यमंत्री? अगर बनाना होता तो अभी कोई रोक लेता? किसी ने भाजपा को रोक लिया था गुजरात में भुपेन्द्र पटेल या उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को बनाने से? या इससे पहले महबूबा मुफ्ती को, खट्टर को, योगी को, देवेन्द्र फडणवीस को बनाने से! और पीछे जाएं तो राम प्रकाश गुप्ता को बनाने से। या दूसरी पार्टियों की बात करें तो कांशीराम के मायावती को बनाने, मुलायम के अखिलेश को बनाने या नितिश के जीतन राम मांझी के बनाने से!
मगर चुनाव तक अमरिन्द्र सिंह, सिद्धु के बहाने पंजाब में कांग्रेस को हराने और राहुल, प्रियंका की छवि खराब करने की कोशिश करते रहेंगे। गोदी मीडिया पूरे जोश खरोश से कैप्टन का समर्थन करता रहेगा। पूरा खेल इसका है कि किसान के सवाल किसी तरह भी चर्चा में न आ पाएं। कांग्रेस में बागियों का गुट, जी 23 राहुल के खिलाफ हर मुद्दे को हवा देता है। कहता है कि वह कांग्रेस को मजबूत करना चाहता है। शायद इसी लिए कैप्टन के खिलाफ नहीं बोल रहा कि उसे लगता है कि वे भी कांग्रेस को मजबूत ही कर रहे हैं। और शायद राहुल किसानों का समर्थन कर रहे हैं तो कैप्टन प्लस जी 23 को लगता है कि यह गलत काम हो रहा है इसलिए वे किसानों का भी समर्थन नहीं कर रहे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव राजनीतिक विश्लेषक)