कानपुर की उद्यमी महिला वंदना मिश्रा अस्पताल नहीं पहुँच सकीं और उनकी मौत हो गई। क्योंकि राष्ट्रपति का क़ाफ़िला गुजरने वाला था। अमर उजाला अख़बार की इस ख़बर को देखिए। राष्ट्रपति का दुख कितना बड़ा है। जिसकी मौत हुई है उसके परिजनों के दुख से भी बड़ा। पुलिस कमिश्नर वंदना मिश्रा के घर गए। परिजनों से माफ़ी माँगी। ज़िलाधिकारी अंतिम संस्कार में शामिल हुए। इसी तरह का डिटेल परिवार के सदस्यों का भी हो सकता था। वंदना मिश्रा का भी हो सकता था लेकिन राष्ट्रपति का दुख बड़ा हो गया। वंदना मिश्रा का 45 मिनट तड़पना बाक्स आइटम हो गया। हिन्दी प्रदेश अभिशप्त प्रदेश है। अहंकार का बहुतायत दिखेगा या फिर चापलूसी का। स्वायत्तता नज़र नहीं आती है।
अंबानी और सऊदी अरब
बड़े लोग हिन्दू मुस्लिम नहीं करते। वे धंधा करते हैं। इस धंधे में कौन काबिल है, किसके पास धन होता है, उससे कारोबार करते हैं। आम लोग हिन्दू मुस्लिम के जाल में फँस कर तर्क खोजते हैं कि अपनी नफ़रत को कैसे सही साबित करें। आई टी सेल को भी यह बात समझ नहीं आएगी कि सऊदी अरब के पब्लिक इंवेस्टमेंट फंड के चेयरमैन भारत के रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के बोर्ड में सदस्य कैसे बन गए। युवाओं को जिस तरह मुसलमानों से नफ़रत की सामग्री बाँटी गई है, अगर उसके चक्कर में मुकेश अंबानी फँस गए होते तो इस तरह का धंधा नहीं कर पाते। और आप हैं कि अपनी जवानी बर्बाद कर रहे हैं।
कश्मीरी नेताओं की मुलाक़ात पर रवीश की टिप्पणी
कश्मीर के नाम पर हिन्दी प्रदेशों की ठगी हो रही है। जिस धारा 370 को हटाने की वाहवाही होती रही, उस धारा 370 को बहाल करने की बात होने लगी है। प्रधानमंत्री के सामने कश्मीर के नेता इसकी बहाली की बात कर आए हैं। किसी ने ऐसा कहने पर ललकारा नहीं है। प्रतिकार नहीं किया है। बैठक के बाद भी नेता धारा 370 की बहाली की बात करते रहे। बीजेपी अध्यक्ष, गृहमंत्री से लेकर इस मामले में तमाम महत्वपूर्ण नेता इस बात का नोटिस तक नहीं लेते हैं। आख़िर हुआ क्या, अमरीका के कारण हो रहा है या यह अहसास हो गया है कि प्रोपेगैंडा की उम्र ख़त्म हो चुकी है। दो साल तक एक प्रदेश की जनता तो संपर्क विहीन, सूचना विहीन रखने से आख़िर मिला क्या? यह मानना मुश्किल होता है कि तमाम तरह की क्रूरताओं के बाद कोई दयालु हुआ जा रहा है।
दो साल तक लोकतंत्र की हर धारणा को कुचलने के बाद अब कश्मीर में बहाली की बात हो रही है। आतंरिक मामला कहते कहते अचानक कोई NGO यूरोपीय सांसदों का दौरा कराने लग जाता है। सरकार उस दौरे के बारे में चुप लगा जाती है। फिर वो NGO उन सांसदों के साथ लापता हो जाता है। भारत के विपक्षी दल जब कश्मीर जाना चाहते थे तब उन्हें एयरपोर्ट से लौटा दिया जाता है। एक नई शब्दावली गढ़ी जाती है गुपकार गैंग की। दो साल से वहाँ के नेताओं को गैंग गैंग कहते कहते उसी गैंग का स्वागत प्रधानमंत्री लोकतंत्र के नाम पर स्वागत करते हैं।
जब तक कश्मीर को लेकर हिन्दी प्रदेश के युवाओं की राय व्यापक नहीं होगी, तब तक वे एक कुएँ में फँसे रहेंगे। कभी कश्मीर में फँसेंगे कभी मंदिर में फँसेंगे। उनकी नियति तय हो चुकी है। आई टी सेल लगाकर कमेंट बाक्स में अनाप-शनाप लिख देने से मानसिक रुप से भय पैदा करना, आक्रांत करना ये सब कुछ समय के लिए चल सकता है लेकिन ध्यान रखिएगा कि अंत में आप जनता ही खंडहर बनाए जाएँगे।
(लेखक रवीश कुमार जाने माने पत्रकार हैं, ये टिप्पणी उनके फेसबुक पेज से ली गईं हैं)