रवीश का लेख: भीड़ की हिंसा के ख़िलाफ़ बोलना जारी रहना चाहिए।

धार्मिक आस्था के अपमान के नाम पर किसी की हत्या भी उसी आस्था का अपमान है। पंजाब में बेअदबी के आरोप में दो हुई हत्याएं बता रही हैं कि धर्म के नाम पर भीड़ कहीं भी बन सकती है। भीड़ बनने के ख़तरे से हम बेफिक्र नहीं हो सकते। राजनीति को इसके बारे में खुल कर बोलना चाहिए। बेअदबी की निंदा भी हो सकती है और हत्या की भी। हम सभी यह भी सीखें कि अलग अलग मज़हबों का कैसे सम्मान करना है और यह भी सीखें कि मज़हब के नाम पर भीड़ की उन्माद को कैसे ग़लत ठहराना है। इसमें कोई अगर मगर नहीं हो सकता है।

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हमारे सहयोगी प्रियदर्शन ने अपने लेख में वही कहा है जो मैं कहना चाहता हूँ। बेदअबी हो या आस्था का अपमान, इन प्रश्नों को लोकतांत्रिक तरीक़े से डील किया जा सकता है। बहस हो सकती है लेकिन उस बहस की धार कभी भी इतनी तीव्र नहीं होनी चाहिए कि किसी की गर्दन कट जाए। यह घटना निंदनीय है। ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए क़ानून में पर्याप्त क्षमता है। हम भीड़ को यह अधिकार नहीं सौंप सकते हैं। भीड़ का इंसाफ़ इंसाफ़ नहीं होता है। वह केवल हत्या करती है। किसी का पक्ष नहीं सुनती है। जो लोग बेअदबी के नाम पर भीड़ की हिंसा को सही ठहरा रहे हैं वो ग़लत कर रहे हैं। सिख धर्म ग़लत को ग़लत कहना सिखाता है। धर्म के नाम पर होने वाले ग़लत को भी ग़लत कहना होगा। सिखी की सीख लेकर दुनिया के किसी भी हिस्से में संकट के वक़्त सबसे पहले आने वाला समाज हिंसा की ऐसी घटनाओं के ख़िलाफ़ भी बोलेगा। बोलना पड़ेगा। बिना किसी अगर मगर के। बहुत लोगों ने इसके ख़िलाफ़ बोला है। लिखा है। भीड़ की हिंसा के ख़िलाफ़ बोलना जारी रहना चाहिए।

आधार से गुप्त मतदान का आधार ही बदल जाने वाला है

मतदाता सूची को आधार कार्ड से जोड़ने की योजना गुप्त मतदान की अवधारणा को बदल देती। आधार से जोड़ने के नाम पर मतदाता का सारा रिकार्ड आधार को चलाने वाली संस्था UIADI के पास होगा। किसी को पता नहीं कि यह संस्था भीतर भीतर कैसे काम करती है। सरकार के नियंत्रण से चलने वाली यह संस्था मतदाता की पहचान को लेकर क्या खेल करेगी यह अभी आज के समाज को समझ नहीं आएगा। चुनाव अब चुनाव नहीं रहा। इलेक्टोरल फंड के कारण वैसे भी चंदे का हिसाब एक पार्टी के पक्ष में हो चुका है। एक ही बैंक से बॉन्ड ख़रीदने के कारण सरकार के पास उसका रिकार्ड नहीं होगा, यह वही मान सकता है जो चुनाव के समय विपक्ष नेताओं के घर आयकर विभाग की छापेमारी को क़ानून का अपना काम समझता है । गुप्त मतदान लोकतंत्र की जान है। आधार नंबर से सब जाना जा सकेगा। जो आश्वासन दे रहा है उसी के पास जानकारी होगी और वही इसका खेल खेलेगा।

हम सब तेज़ी से नियंत्रण किये जाने की तरफ़ बढ़ रहे हैं।  इस टेक्नॉलजी को समस्या के समाधान के रुप घुसाया जाता है और फिर दूसरी समस्या खड़ी की जाती है। मैं टेक्नॉलजी का विरोधी नहीं हूँ लेकिन बिना सोचे समझे पर बात में आधार आधार करने वाला समाज का दम एकदिन घुटने वाला है।

आधार कहाँ कहाँ आपकी निजी जानकारियों का नेटवर्क बना रहा है और उसके आधार पर आपके निजी जीवन में किस तरह का नियंत्रण आने वाला है यह अब दिखने लगा है। यह जो खेल खेला गया है उसे समझिए। हा हा ही ही का टाइम चला गया।