हिंसा सही पैमाना नहीं है कि युवाओं ने अग्निवीर योजना को नकार दिया है। जिस दिन अग्निवीर भर्ती का फार्म निकलेगा, उस दिन पता चलेगा। लाखों युवा फार्म भरेंगे और भर्ती के लिए होड़ मच जाएगी।उस दिन की हेडलाइन ही अलग होगी। जगह-जगह लाखों नौजवान अग्निवीर के लिए दौड़ने लगेंगे। सरकार को योजना की घोषणा के साथ भर्ती फार्म भी निकाल देना चाहिए था। तब एक दृश्य बनता कि योजना लोकप्रिय हो गई है या पता चलता कि युवाओं ने फार्म भरने से मना कर दिया है। मेरी बात याद रखिएगा। इस देश में बेरोज़गारी इतनी भयंकर है कि किसी भी भर्ती के लिए लाखों फार्म भर दिए जाते हैं। अग्निवीर के साथ भी यही होगा। ट्रेन जलाना ग़ुस्से का बेलगाम और आसान प्रदर्शन है, छात्रों के भीतर इस योजना का विरोध तब पता चलेगा जब इसका फार्म निकलेगा।
राहुल गांधी ने योजना वापस लेने की माँग की है। राहुल को नि:स्वार्थ राजनीति के तौर पर यह सब करना चाहिए। उन्हें सरकार से नाराज़ युवाओं का वोट नहीं मिलेगा। यूपी चुनाव से पहले प्रियंका गांधी हर भर्ती परीक्षा पर ट्विट करती थीं, उनकी माँग को उठाती थीं लेकिन उनमें से पाँच युवाओं का वोट नहीं मिला होगा। विपक्ष को बिल्कुल आवाज़ उठाना चाहिए लेकिन यह भी साफ़ होना चाहिए कि ये युवा उनके वोटर न थे, न हैं और न होंगे।
देश की राजनीति धर्म से तय होगी, आर्थिक मुद्दों से नहीं। इसे लेकर युवाओं ने कई चुनावों में स्पष्ट संकेत दिए हैं कि धर्म की पहचान और उसकी राजनीति से जो मानसिक सुख मिलता है वह आर्थिक मुद्दों की राजनीति से नहीं मिलता। बेहतर है विपक्ष केवल ट्विट करें क्योंकि इन्हीं युवाओं ने विपक्ष को ख़त्म किया है। इनके बीच विपक्ष की कोई साख नहीं है। ये ख़ुद को सत्ता पक्ष समझते हैं। युवा इस बात से भी बचेंगे कि कोई इनके आंदोलन को विपक्ष का आंदोलन कह दे। सरकार के समर्थक यह बात जानते हैं। इसलिए इस आंदोलन को विपक्षी साज़िश बता रहे हैं।उन्हें पता है कि युवा कुछ भी हो जाए, अपने ऊपर विपक्षी दलों के सपोर्ट का लेबल नहीं चिपकने देंगे।
यही युवा कहेंगे कि विपक्षी दल दूर रहें। राजनीति न हो। किसानों ने भी यही कहा। सरकार से पहले विपक्ष को भगा दिया। बाद में सरकार को भी गले लगा लिया। अब जनता बदल गई है। यह जो भी हो रहा है, उसके और उसके ईष्ट के बीच हो रहा है। एक बार मन्नत पूरी नहीं होने पर लोग भगवान से नाराज़ नहीं हो जाते। बल्कि सरकार के समर्थक खुलकर इन युवाओं को गरियाने में लगे हैं। उन्हें भरोसा है कि ये कहीं जा नहीं सकते। अगर सरकार यही एलान कर दे कि एक को भी नौकरी नहीं देंगे, तब हो सकता है कि युवा कुछ हिंसा कर दें मगर वोट उसी को देंगे। इसलिए यह राजनीतिक आंदोलन नहीं है और न इसमें कोई राजनीतिक संदेश है।