रवीश का लेखः यूपी में हर साल लाखों नौकरियों की हेडलाइन ख़ूब छपी, मिली किसे है, पता नहीं

फ़्लैशबैक में जाकर ख़बरों को पढ़ा कीजिए। हर साल हेडलाइन छपती रही कि सीएम योगी ने एक लाख भर्ती करने का प्लान बनाया तो इस साल दो लाख तो इस साल चार लाख। हेडलाइन में छपी इन भर्तियों को ही जोड़ लें तो आठ से दस लाख भर्तियाँ हो जाती हैं। उन ख़बरों को पढ़ते हुए आप सन्न रह जाएँगे कि किस तरह केवल हेडलाइन के ज़रिए माहौल बनाने का काम हुआ। केवल यही छपा कि चार लाख नौकरियाँ दी जाएँगी, ब्लू प्रिंट बन गया है मगर यह कभी नहीं छपा कि चार लाख नौकरियाँ दे दी गईं।

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अख़बारों में इन दिनों एक विज्ञापन आ रहा है। जिसमें दावा किया जा रहा है कि यूपी में साढ़े चार लाख सरकारी नौकरी दी गई है। विज्ञापन में केवल एक संख्या है। कब और किस विभाग में ये नौकरियाँ दी गई हैं, किसी को पता नहीं।वैसे इस तरह का विज्ञापन मोदी सरकार कभी नहीं देती है कि रेलवे में कितनी भर्ती की गई और कितने पद ख़ाली हैं।

यह भी सही है कि चुनावी साल में तरह तरह की भर्तियों का एलान हुआ है। कुछ भर्तियों के नियुक्ति पत्र बाँटे जा रहे हैं। इस हिसाब से हर विज्ञापन में साढ़े चार लाख की संख्या में नई संख्या जोड़ी जा सकती है। दूसरी तस्वीर यह है कि पाँच सौ रुपये का भत्ता लेने के लिए यूपी का युवा बीच और एमए पास कर श्रमिक कार्ड बनवा रहा है। अगर श्रमिक है तो यह उसका पैसा है लेकिन यह कितना भयावह है कि श्रमिक नहीं होने पर भी श्रमिक कार्ड बनवा रहा है।

प्रधानमंत्री की रैलियों में घर घर से सरकारी योजना के लाभार्थी बुलवाए जाते हैं ताकि कुर्सी भरी मिले।अगर ऐसा है तो एक बार इन साढ़े चार लाख युवाओं को भी किसी रैली में बुला लेना चाहिए ताकि पता चले कि यूपी ने इतनी नौकरियाँ दी हैं।

फ़्लैशबैक में जाकर इन ख़बरों को देख कर पता चलता है कि यूपी के युवाओं को बहकाना कितना आसान है। धर्म के नाम पर नफरती राजनीति ने उनकी राजनीतिक चेतना पहले ही ख़त्म कर दी है। वे सिर्फ़ हाड़ मांस के आक्रामक युवा हैं। उनके भीतर नफ़रत से लैस होकर तैस में आ जाने का जुनून पैदा किया जा रहा है। वे अख़बारों में छपने वाली झूठ ख़बरों और नहीं छपने वाली ख़बरों के अंधेरे से घिरे हैं। उनकी जवानी की कहानी कोई और लिख रहा है।

यूपी का युवा हर दिन किसी न किसी धरना प्रदर्शन में जाता है। ख़ुद से लड़ता है। सरकार से लड़ता है। मीडिया को रोता गिड़गिड़ता व्हाट्स एप मैसेज करता है कि जिस प्रदर्शन में लाठी खाई है, कम से कम उसका तो कवरेज कर दो। वह अपने सपनों को लेकर सुबक रहा है।

पर यही उसका रुप नहीं है। उसकी नसों में धर्म के नाम पर नफ़रत, जाति के नाम पर गौरव का ख़ून दौड़ रहै। मेरी इस बात को इस बार भी वह साबित करेगा क्योंकि उसे नफ़रत से दिन रात लैस किया जाता है ताकि वह तैस में रहे। होश में न रहे। इतना आसान नहीं है उसके लिए इसे निकलना। यह उसका आनंद क्षेत्र है। आप उसे नफ़रत और गौरव के आनंद क्षेत्र से अलग नहीं कर सकते तब भी नहीं जब वह पाँच सौ रुपये के लिए झूठ बोलकर श्रमिक कार्ड बनवा रहा हो। यूपी का युवा अब इस भँवर से नहीं निकल पाएगा।

लेकिन क्या यही कहानी कांग्रेस की सरकारों की नहीं है? पंजाब,छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में क्या सरकारी भर्तियों का कोई नया पैमाना बन गया है? बिल्कुल नहीं। रोज़गार एक बोरिंग विषय है। युवा भी रोज़गार से जुड़े मुद्दों को छोड़ कर उन मुद्दों में फँसा हुआ है जिससे उसके भीतर सनसनी आती है। थ्रिल पैदा होता है। गुड लक। वेल डन।