किसान जब गौ रक्षा की राजनीति की चपेट में आ रहे थे तब उन्हें नहीं पता होगा कि इसकी क़ीमत केवल वही चुकाने जा रहे हैं। अपनी जेब से पचास हज़ार से कई लाख तक की तारें ख़रीदेंगे ताकि फसलों को छुट्टा मवेशियों के प्रकोप से बचा सके। हर तरह के किसानों ने इसकी क़ीमत चुकाई है। यह मार सब पर पड़ी है। किसानों की सीमित कमाई का पैसा तारों में लगा है। अनुत्पादक चीजों में। ये पैसा ख़रीदारी या खेती में लगता तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तरलता आती।
यह एक संकेतक हो सकता है कि इस तरह के मसले के लिए लोग अपनी जेब से हज़ारों और लाखों रुपये चुका रहे हैं। इस देश के युवाओं ने रोज़गार जैसे मुद्दे को दस साल पीछे धकेल कर क़ीमत चुकाई। अब इस संकट को किसी की सरकार में ठीक नहीं किया जा सकेगा। जीएसटी के बाद के दौर में ख़ज़ाना ख़ाली है। मुझे तो लगता है कि सांप्रदायिक धार्मिक मुद्दों के बदले लोग अपनी बचत और संपत्ति भी सरकार को दे देंगे। बस राजनीति से उन्हें धार्मिक मुद्दों की सप्लाई होती रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह भी करके देख लें। युवा लिख कर दे देंगे कि जॉब नहीं हिजाब का मुद्दा दो। फ़िक्स डिपॉजिट ज़ब्त कर लो लेकिन साइकिल से लेकर कपड़े को आतंक से जोड़ते रहो। लोगों को इसमें जो सुख मिल रहा है उसे आप सांड को आतंक से जोड़ कर नहीं मिटा सकते हैं।
संघ का बीजेपी की ज़िला इकाई में विलय हो जाना चाहिए
ऐसी खबरों को पढ़ कर लगता है कि आर एस एस बीजेपी की ज़िला इकाई है। उसका काम गाँवों में रहकर वोट गिरवाना है। क्या संघ का यही काम है? तो फिर एक दिन चुनाव प्रबंधन करने वाली कंपनी का सी ई ओ संघ प्रमुख बन जाएगा जिसका काम होगा अमित शाह के कहने पर सर्वे कराना और व्हाट्स एप ग्रुप बनवाना। मिस्ड कॉल का सिस्टम लागू करना। संघ को लेकर ऐसी खबरें छपती रहती है। खंडन भी नहीं किया जाता है। फिर ये भी खबर छपती है कि संघ ग़ैर राजनीतिक संगठन है।
( लेखक जाने-माने पत्रकार हैं यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)