अगर तेलंगाना पुलिस जाँच करना चाहती है तो मेरठ के सर्राफ़ा व्यापारियों को क्यों एतराज है? चोर ने कहा है कि चोरी का सोना मेरठ के बाज़ार में बेचा है। चोर की बात पर भरोसा करने का तुक नहीं लेकिन पुलिस तो जाँच करेगी तभी तो उसके बाद तय करेगी कि भरोसा करने लायक़ है या नहीं।
मेरठ के सर्राफ़ा व्यापारियों ने दुकानें ही बंद कर दी। कोई बात नहीं। उनका राज है। उन्हें अपने मन का करना ही चाहिए। जब बाबा बन कर कोई पुलिस को अपने हिसाब से काम करने को कह सकता है तो सर्राफ़ा व्यापारियों के लिए काम करने वाली पुलिस क्यों हो? वो भी व्यापारियों के हिसाब से काम करे। सिम्पल । वैसे पुलिस काम ही क्यों करे?
अख़बार और टीवी एक ही है
आलीशान जाफ़री से पत्रकार प्रिया रमानी की इस बातचीत को पढ़िएगा। केवल पढ़ने के लिए नहीं। शुरू में लिखा है कि इसे पढ़ने में आपके 11 मिनट लगेंगे। मगर इस इंटरव्यू में कही गई बातें 11 मिनट में जमा नहीं हुई हैं। जैसा कि आलीशान ने कहा है कि हत्या की हर घटना ने हम नौजवानों को वर्षों नहीं बल्कि दशकों के हिसाब से परिपक्व कर दिया। आलीशान हिंसा का दस्तावेज़ तैयार कर रहा है। बात बात में सामान्य होने के इस समय में पूरी बातचीत कितनी असामान्य लगती है। बाक़ी जब आप पढेंगे तो समझ सकेंगे। नहीं समझ सकेंगे तो भी कोई बात नहीं। सामान्य तो आप हो ही चुके हैं।
प्रिया रमानी ने इंटरव्यू के लिए न सिर्फ़ एक सही पात्र को चुना बल्कि उस पात्र की नज़र से दिख रही दुनिया को बाहर आने के लिए रास्ता भी दिया। यह सब आपने भी देखा है बस भोगा नहीं है। आपको केवल पढ़ना है। article-14 मीडिया की नई जगह है। मुख्यधारा के मीडिया से अलग होने का नित्य अभ्यास करते रहिए। पहले अख़बार घर आने के बाद कूड़े में बदलता था, अब कूड़ा बनकर ही आता है। तो आने से पहले इसे फेंकने का इंतज़ाम कीजिए। वक्त लगेगा मगर हो जाएगा। अख़बार और टीवी एक ही हैं। थोड़ा थोड़ा दूर कीजिए इन्हें अपने जीवन से। आपका आने वाला साल अच्छा होगा।
मज़ाक नहीं
चुनाव है, माँगिए सब मिलेगा, मानदेय से लेकर पेंशन सब मिलेगा। पाँच साल के इंतज़ार के बाद मिल रहा है। पाँच सौ मानदेय बढ़ा है। मज़ाक़ नहीं है। चुनाव नहीं होता तो क्या बढ़ता? इसलिए मनाइये कि चुनाव होते रहें। कुछ न कुछ आपको मिल ही जाता है। उसके बदले में जो आपसे ले लिया जाता है उसे समझने की जब क्षमता ही नहीं है तो क्यों परेशान होना है।