द हिन्दू में छपी आर प्रसाद की इस रिपोर्ट को आप ध्यान से पढ़ सकते हैं बशर्ते धर्म की राजनीति से थोड़ा अलग हट कर सोचने का वक्त हो और दिमाग़ में जगह बची हो।
22 नवंबर 2021 को ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव का बयान है कि कोविड-19 को रोकने के लिए बूस्टर डोज़ कारगर होगा, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। 25 दिसंबर को भारत के प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्र के नाम संदेश में एलान करते हैं कि बूस्टर डोज़ दिया जाएगा। इस बार वे इसका नाम बदल कर प्रिकॉशन डोज़ दे देते हैं। नाम ही बदला है, टीके का आधार नहीं बदला है। तो आप इस डोज़ का नाम बब्लू डोज़ रख दें या पिंटू डोज़ रख दें कोई फर्क नहीं पड़ता। सवाल है कि एलान करने से पहले किस तरह का वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है।
आर प्रसाद महामारी और टीके के कई जानकारों से बात करते हैं ।सब इसी बात की पुष्टि करते हैं कि कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। तब फिर बूस्टर डोज़ क्यों दिया जा रहा है? यही नहीं इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन का बूस्टर डोज़ काम करता है या नहीं इसे लेकर भी कोई परीक्षण नहीं हुआ है। 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री बूस्टर डोज़ का एलान करते हैं और 29 दिसंबर को भारत में पहली बार बूस्टर डोज़ को लेकर परीक्षण की अनुमति दी जाती है। आप समझ गए कि क्या हो रहा है?
इज़राइल में 90 प्रतिशत को टीका दिया जा चुका है। वहां पर बूस्टर डोज़ दिया जा चुका है। तब भी लोगों को ओमिक्रान का संक्रमण हो रहा है। अब सरकार ने सीमित मात्रा में चौथा बूस्टर डोज़ देने का फैसला किया है लेकिन परीक्षण के तौर पर। सभी को चौथा बूस्टर डोज़ देने का फ़ैसला अभी नहीं लिया गया है। रायटर की खबर बताती है कि वहां भी चौथे बूस्टर डोज़ का फैसला लेने से पहले किसी तरह का अध्ययन नहीं था। सिर्फ उन्हें दिया जा रहा है जिनकी उम्र साठ से अधिक है। जिन्हें कैंसर जैसी बीमारियां हैं जिनमें शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कमज़ोर हो जाती है और कुछ हेल्थ वर्कर को दिया जाएगा। इज़राइल के स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेश का कहना है कि दुनिया में ही चौथे बूस्टर डोज़ को लेकर अध्ययन नहीं है इसलिए हम काफी सतर्कता और ज़िम्मेदारी से आगे बढ़ रहे हैं।
इज़राइल में आप कम से कम आप आधिकारिक रुप से जानते हैं कि कोई अध्ययन या प्रमाण नहीं है लेकिन भारत में आप केवल फैसला जानते हैं। किस आधार पर फैसला लिया गया है यह नहीं जानते हैं। आप नहीं जानते कि प्रधानमंत्री ने किसकी रिपोर्ट के बाद एलान किया कि बूस्टर या प्रिकॉशन डोज़ दिया जाएगा? जिन देशों में टीके के दोनों डोज़ लगे हैं और बूस्टर डोज़ भी लगा है वहां भी ऐसे लोगों को ओमीक्रान का संक्रमण हुआ है। जब तीन तीन डोज़ से सुरक्षा नहीं है तो फिर चौथे का या तीसरे का आधार क्या है?ICMR के प्रमुख का तो बयान है कि बूस्टर डोज़ को लेकर कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यहां तक कि इसके असर को लेकर अध्ययन की अनुमति भी प्रधानमंत्री के एलान के बाद दी जाती है।
बच्चों को टीका देने का एलान हो गया है। अमरीका में अभी भी इसे लेकर ज़ोरदार बहस चल रही है। जिन बच्चों को टीका लग रहा है उनमें दिल से संबंधित कई शिकायतें देखी गई हैं। बच्चे बेहोश हो गए हैं। अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है। वहां डाक्टर एक डोज़ देने के बाद दूसरा डोज़ देने से इंकार कर रहे हैं। फिर भी दिया जा रहा है। भारत में भी कई डॉक्टर इस तरह की आशंका ज़ाहिर कर रहे हैं कि बच्चों या किशोरों को टीका देने से पहले किस तरह के अध्ययन किए गए हैं? इस फैसले का वैज्ञानिक आधार क्या है? यही आपको नहीं समझना है क्योंकि अभी आपको केवल धर्म के गौरव के बारे में सोचना है। अगर समझना है तो यह समझिए कि आपकी जान से खिलवाड़ कर तुक्के का तीर चलाया जा रहा है। तीर यह है कि पहले ट्रायल होता था तब आम जनता को टीका दिया जाता था। अब आम जनता पर ही ट्रायल हो रहा है। इसके क्या नुकसान हैं, इस पर आम जनता के बीच कोई बहस नहीं है।
भारत सरकार ने घोषणा की थी कि दिसंबर के अंत तक सौ करोड़ लोगों का टीकाकरण कर दिया जाएगा। इसका यही अर्थ था कि सौ करोड़ लोगों को दोनों डोज़ लगा दिए जाएंगे मगर पहला डोज़ देने को ही सफलता के तौर पर पेश किया गया और जगह जगह सरकारी पैसा फूंकते हुए होर्डिंग लगा दिए गए जिसमें लिखा था धन्यवाद मोदी जी। 31 दिंसबर तक जिस तबके को टीका लगता था उसमें केवल 90 फीसदी को ही पहला टीका लगा। केवल 64 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्हें टीके का दोनों डोज़ लगा है। यानी आप लक्ष्य से बहुत पीछे हैं। 60 साल से अधिक की उम्र के समूह में भी 21.5 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्हें दूसरा डोज़ नहीं लगा है। मई महीने में सबने सवाल उठाया था कि टीके की उपलब्धता सुनिश्चित किए बगैर सरकार ने कैसे एलान कर दिया कि दिसंबर 2021 तक 1.08 अरब भारतीयों को टीका लगा दिया जाएगा। तभी सवाल उठा था कि इसके लिए भारत को हर दिन 98 लाख डोज़ लगाने होंगे। रिकार्ड बनाने के नाम पर चंद दिनों में टीके का रिकार्ड बनाकर हेडलाइन बनवा ली गई और उसके बाद टीकाकरण वैसे ही सुस्त रफ्तार से चलता रहा। अब तो ऐसे मामले भी कम नहीं है जिन्हें सर्टिफिकेट मिल गया है मगर टीका नहीं लगा है। इस तरह का फर्ज़ीवाड़ा हो रहा है। सरकार की तरफ से कोई अध्ययन नहीं है कि कितने मामलों में ऐसा हुआ है कि टीका नहीं लगा और सर्टिफिकेट मिला। उस संख्या को घटाना तो चाहिए लेकिन इसकी परवाह कौन करता है। अभी जनता को धर्म के नशे में डूबे रहना है। जब तक वह गर्त में नहीं जाएगी वह धर्म के अलावा कुछ नहीं देखने वाली है। चाहे आर प्रसाद जितनी मेहनत कर वैज्ञानिक रिपोर्ट लिख लें।