आप उन्हें उतना नहीं समझ सकते जितना उनसे मिलने वाले लोग समझते हैं. लड़कियों की बात अलग है. उनके दौर में लड़कियां जब उनकी फिल्में देखने जाती थीं. तो वो असल में उनके साथ डेट पर जाया करती थीं. सज-धज कर. उन्हें लगता था कि ये गुरु कॉलर वाली शर्ट, ये हेयरस्टाइल, परदे की तरफ़ से ये उनका सिर झटकना, पलकें झुकाना, मुस्कराना सब उनके लिए है.
दीवानगी का आलम यूं था कि उनकी सफ़ेद गाड़ी का रंग लड़कियों की लिपस्टिक से लाल हो जाया करता. गाड़ी गुजर जाती, तो पीछे उड़ने वाली धूल से लड़कियां अपनी मांग भर लेतीं. कहा ये भी जाता है कि उस दौर में लड़कियां उन्हें खून से खत लिखतीं थीं, उनकी फोटो से शादी करती थीं.
घमंड कहें या अपना तौर, राजेश खन्ना अपनी पहली मूवी के शूट से लेकर आख़िरी तक हमेशा सेट पर लेट पहुंचे. पहले दिन एक सीनियर टेक्नीशियन ने पूछा, लेट क्यों आए, राजेश खन्ना ने जवाब दिया, करियर एक तरफ़ और मेरा लाइफस्टाइल एक तरफ़. मैं किसी भी चीज के लिए इसे नहीं बदल सकता.
पैदाइश:-
राजेश खन्ना की पैदाइश जन्म 29 दिसंबर, 1942 को पंजाब के अमृतसर की है. राजेश का असली नाम जतिन खन्ना था. एक नजदीकी रिश्तेदार ने गोद लिया था. उन्हीं ने राजेश का पालन-पोषण भी किया. कम उम्र में अपनी काबिलियत पहचानना बड़ी बात कही जाती है. बचपन का दौर गुजरा तब तक राजेश भी एक्टिंग का शौक और हुनर पहचान चुके थे. राजेश खन्ना के जीवन पर पत्रकार यासिर उस्मान ने एक किताब लिखी थी- ‘राजेश खन्ना: कुछ तो लोग कहेंगे’.
यासिर के मुताबिक़, साल 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स एंड फिल्मफेयर एसोसिएशन की तरफ़ से एक टैलेंट हंट प्रोग्राम हुआ. इस ग्रुप में बी. आर. चोपड़ा, जी. पी. सिप्पी और शक्ति सामंत जैसे दिग्गज लोग थे. ये सब लोग मिलकर अभिनय की नई प्रतिभाएं खोज रहे थे. इस कॉन्टेस्ट में राजेश ने अपने थिएटर के वक़्त का एक डायलाग सुनाया. और राजेश को सेलेक्ट कर लिया गया. कहा जाता है कि 10 हजार में से सिर्फ 8 लोगों को चुना गया था. इस तरह राजेश की बड़े परदे पर एंट्री का रास्ता खुल गया.
पहली फिल्म थी ‘आखिरी खत:-
यासिर के मुताबिक़, राजेश को जी.पी. सिप्पी ने पहली फिल्म राज दी. इसमें राजेश का डबल रोल था. इसके बाद चेतन आनंद ने अपनी फिल्म ‘आख़िरी खत’ के लिए साइन किया. हालांकि ये मूवी साल 1966 में ‘राज’ से पहले ही रिलीज हो गई, लेकिन फ्लॉप रही.
फिल्म ‘आराधना’ से राजेश लॉन्च हुए थे:-
साल 1969 में ‘आराधना’ रिलीज हुई. ये फिल्म शर्मिला टैगोर के लिए बनाई गई थी. वो लीड रोल में थीं. राजेश को उनके पति का किरदार मिला था. बाद में तय हुआ कि बेटे का किरदार भी राजेश को ही दे दें. क्या फर्क पड़ता है. लेकिन फर्क पड़ा. मूवी का ट्रेलर रिलीज हुआ तो लोग शर्मिला को छोड़ राजेश खन्ना को ढूंढ रहे थे. आराधना मूवी को ही राजेश खन्ना की असल लॉन्चिंग माना जाता है. लॉन्चिंग मतलब यूं समझिए कि इस फिल्म की सफलता के बाद राजेश खन्ना को राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाने लगा था.
इसके बाद साल 1969 से 1975 के बीच राजेश खन्ना ने लगातार 13-14 सुपरहिट फिल्में दीं. हर फिल्म एक से बढ़कर एक ब्लॉकबस्टर. लोग एक थिएटर में ‘आराधना’ देखकर निकलते और दूसरे थिएटर में ‘दो रास्ते’ देखने चले जाते. हर थिएटर पूरे साल में 6-7 फिल्में राजेश की दिखा रहा था. देशभर में बच्चों का नाम राजेश रखा जा रहा था. ये वो दौर था जब जितेंद्र के बचपन के दोस्त, स्ट्रगल के साथी, मेंटर और मुंहबोले काका को अब पूरा देश काका बुला रहा था. एक कहावत मशहूर हो चली थी, ‘ऊपर आका और नीचे काका.’
सलमान खान के पिता और राजेश के दोस्त रहे, सलीम खान इन कुछ सालों में राजेश के स्टारडम को अतुल्य बताते हैं. कहते हैं कि जैसे नदी में बहाव का एक निशान होता है. वैसे ही राजेश की लोकप्रियता का बार इतना ऊंचा सेट हो गया था, जहां तक कोई एक्टर नहीं पहुंच सका. न तब न अब.
कहा जाता है कि उस दौर की बॉलीवुड की पार्टी और दूसरे आयोजनों में राजेश सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन हुआ करते थे. भले ही उस पार्टी में कोई भी दूसरा बड़ा स्टार मौजूद हो पार्टी में मौजूद लोग और मीडिया के कैमरे राजेश के पहुंचते ही उनकी तरफ़ मुखातिब हो जाया करते. सलीम के मुताबिक़ ये उनकी मुस्कान और आवाज का जादू था. और उनके गानों को म्यूजिक भी बेहद शानदार मिला था.
डिंपल से पहली मुलाकात:-
अंजू महेन्द्रू स्ट्रगल के वक़्त से ही राजेश की साथी रही थीं. हालांकि कामयाब दौर में बेहतर साथी मिलते हैं. अब राजेश सुपरस्टार हो चुके थे. एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए राजेश खन्ना प्लेन से अहमदाबाद जा रहे थे. इस प्लेन में डिम्पल भी थी. उनकी फिल्म बॉबी रिलीज होने को थी. राजेश उनके बगल वाली सीट पर बैठ गए. कहा जाता है कि इस पहली मुलाकात के बाद ही लगभग दो गुनी उम्र के राजेश खन्ना ने डिंपल से शादी का फैसला कर लिया था. साल 1973 में ये शादी हुई थी. राजेश के स्वभाव में था, चलो तुम्हें दिखाता हूं कि मैं क्या हूं. राजेश की बारात बांद्रा से जूहू डिम्पल के घर जानी थी. लेकिन राजेश ने रास्ता बदलकर अंजू महेंद्रू के घर के सामने से बारात निकाली. राजेश खन्ना और डिंपल की शादी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और साल 1984 में दोनों अलग हो गए.
आनंद’ की कामयाबी में ढलता हुए राजेश का अक्स दिखता है:-
कहावत है नाकामयाबी से कहीं ज्यादा कामयाबी ने लोगों को बर्बाद किया है. ऊंचाई का भी अपना नशा होता है. पैर टिकने मुश्किल होते हैं.
जिस दौर में अमिताभ बच्चन बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे, उस वक्त राजेश खन्ना सुपरस्टार थे. ‘आनंद’ फिल्म के सेट पर दोनों की पहली मुलाक़ात हुई.
अमिताभ, राजेश के डेथ सीन को लेकर घबरा रहे थे. किसी ने सलाह दी कि तुम मान लो कि राजेश वाकई नहीं रहे. सीन खुद अच्छा हो जाएगा. आनंद की मौत पर भास्कर बनर्जी के किरदार में अमिताभ का रोना लाखों लोगों को रुला गया. स्टार्स के नाम लिए जाते तो अब अमिताभ का भी आता.
इसके बाद साल 1973 में अमिताभ और राजेश खन्ना दोबारा फिल्म ‘नमक हराम’ में साथ आए. किरदार बराबरी का था. लेकिन अमिताभ सीढ़ी पर चढ़ रहे थे और राजेश पर हावी हो रहे स्टारडम ने उन्हें नीचे खींचना शुरू कर दिया था. इस फिल्म के क्लाइमेक्स से पहले अमिताभ का किरदार जब चीखता है तो हॉल में बैठी जनता भी चीख पड़ती है. उसे ये ‘एंग्री यंगमैन’ भा जाता है. राजेश नैचुरली एक रोमांटिक स्टार थे. लेकिन जनता अब एक्शन देखना चाहती थी. अमिताभ बच्चन ने शोले, दीवार और जंजीर जैसी फिल्मों में उनकी ये मांग दिल खोलकर पूरी कर दी थी.
बताते हैं कि राजेश खन्ना, अमिताभ को लेकर असुरक्षा महसूस करने लगे थे. फिल्म बावर्ची में जया और राजेश खन्ना एक साथ काम कर रहे थे. अमिताभ जब जया को लेने उनके सेट पर जाते, तो राजेश खन्ना अमिताभ से बात तक नहीं करते थे. फिल्म ‘जंजीर’ बेहद सफल रही, अमिताभ सफलता के शिखर पर पहुंच गए और इधर राजेश खन्ना का सितारा गर्दिश में डूब रहा था. कहा जाता है कि राजेश बेहद निष्क्रिय हो गए थे. कई फिल्मों के ऑफर भी उन्होंने ठुकरा दिए थे. उनके पास ज्यादा काम नहीं बचा था.
राजेश फिल्मों से निराश हुए तो राजनीति में भी हाथ आजमाया. साल 1991 के लोकसभा चुनाव में राजेश खन्ना कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े. नई दिल्ली से लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ. लेकिन राजेश 1589 वोटों से आडवाणी से चुनाव हार गए. आडवाणी को कुल 93,662 जबकि राजेश खन्ना को 92,073 वोट मिले थे. पहले चुनाव के लिहाज से राजेश का ये प्रदर्शन बुरा नहीं था, लेकिन राजेश खन्ना इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. उन्हें लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है. काउंटिंग सेंटर के बाहर हंगामा खड़ा कर दिया. अधिकारियों पर मिलीभगत के आरोप भी लगाए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं था.
आडवाणी इस चुनाव में गांधीनगर सीट से भी लड़े और जीते थे. एक सीट छोड़नी थी. उन्होंने गांधीनगर सीट चुनी. नई दिल्ली की सीट खाली हुई तो राजेश खन्ना फिर लड़े, इस बार बीजेपी के प्रत्याशी मशहूर अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा थे. लेकिन राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न को हराया और सांसद बने. हालांकि अगले चुनाव में राजेश खन्ना फिर हार गए, और फिल्मों की तरफ़ लौट आए. लेकिन अब यहां भी राजेश के लिए कुछ बचा नहीं था.
आख़िरी दिन:-
काका के बारे में सलीम खान कहते हैं,
‘मैंने उनके सुपर स्टारडम को बेहद करीब से देखा था. लेकिन मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं कि उनकी ऊंचाई तक उनके बाद हिंदी सिनेमा का कोई सितारा नहीं पहुंचा. हर उम्र के लोग राजेश खन्ना के फैन थे. लड़कियों के बीच एक अलग सा क्रेज था. हालांकि जिस तेजी से वो ऊपर उठे, उतनी ही तेजी से वो नीचे भी आने लगे थे. अपने जीवन के आख़िरी दिनों में उनकी हालत बेहद अजीब हो गई थी.’
अब राजेश खन्ना के पास कोई काम नहीं था. फैन भूलने लगे थे. इस अकेलेपन और तनाव के दौर ममे राजेश आनंद बख्शी से अक्सर बात किया करते थे. आनंद बख्शी ने राजेश के लिए मिलन, आराधना, नमक हराम जैसी फिल्मों में कई शानदार गाने लिखे थे.
आनंद बख्शी के बेटे राकेश बख्शी अपनी किताब ‘नगमे किस्से बातें यादें’ में बताते हैं कि राजेश खन्ना जब भी अकेला महसूस करते थे तब आनंद बख्शी को बुला लेते थे.
राजेश की मौत:-
राजेश पर शराब भारी पड़ने लगी थी. यूं उन्होंने आख़िरी वक़्त में शराब छोड़ दी थी. लेकिन अब तक उनका लिवर लगभग खत्म हो चुका था. यासिर उस्मान अपनी किताब में फिल्म पत्रकार अली पीटर जॉन के हवाले से लिखते हैं कि
‘काका उनसे कहा करते थे ‘अगर ग़ालिब दारू पीकर मर गया तो मैं क्यों नहीं?’
भूपेश रसीन, राजेश के मित्र रहे हैं. उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में बताया कि निधन के सवा साल पहले राजेश को एहसास हो गया था कि अब वो बच नहीं पाएंगे. भूपेश कहते हैं,
‘उनकी बीमारी के दौरान मैंने उनकी सिगरेट, शराब और बाकी चीजें छुड़वाने की भी कोशिश की, लेकिन मैं नाकाम रहा. एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि एक दिन तुम मुझसे मिलना चाहोगे लेकिन मैं तुमसे नहीं मिल पाऊंगा.’
ट्विंकल का प्लान था कि साल 2011 में राजेश खन्ना का 69वां जन्मदिन गोवा में मनाया जाएगा. मैं भी उनके पूरे परिवार के साथ वहां जन्मदिन में शामिल हुआ था. वापस आते वक़्त पता नहीं क्यों राजेश खन्ना को ऐसा महसूस होने लगा था कि यह उनका आखिरी जन्मदिन है. अपनी मौत को भांपते हुए राजेश बोले,
‘अब फाइनल हो गया है, लेकिन जल्दी हो रहा है.’
लीलावती अस्पताल में राजेश खन्ना का चेकअप हुआ तो डॉक्टरों ने सीधे उन्हीं को कैंसर के बारे में बताया. कैंसर एडवांस स्टेज में है ये सुनकर काका कुछ देर के लिए खामोश हो गए और थोड़ी देर बाद खुद को संभालते हुए बोले,
‘मेरी किस्मत में आनंद की तरह ही जीना लिखा है.’
भूपेश रसीन कहते हैं,
‘उन्होंने आनंद की तरह ही जीवन जिया. और मैं उनके लिए आनंद मूवी वाला बाबू मोशाय था.’
काका नहीं चाहते थे किसी को बीमारी के बारे में पता चले:-
साल 2011 में राजेश खन्ना ने पूरी तरह बिस्तर पकड़ लिया था. उस्मान लिखते हैं कि राजेश खन्ना नहीं चाहते थे कि उनकी बीमारी के बारे में करीबी दोस्तों के किसी को पता लगे. उनका शरीर सिर्फ हड्डियों का ढांचा भर रह गया था. इस दौरान राजेश किसी से भी ज्यादा मिलना पसंद नहीं करते थे. यासिर किस्सा बताते हैं कि एक पार्टी में सलीम खान ने राजेश खन्ना को देखा तो हैरान रह गए. सलीम खान अपने पनवेल के फार्म हाउस पर रहा करते थे और मुंबई कम ही आते थे. पार्टी में देखने के बाद सलीम को लगा कि राजेश खन्ना से मिलकर उनका हाल-चाल लेना चाहिए. वे पनवेल नहीं गए और मुंबई ही रुक गए. राजेश खन्ना से मिलने पहुंचे तो उनके सहयोगी से कहा,
‘काका से कह दें कि सलीम साहब मिलना चाहते हैं.’
राजेश खन्ना ने पूछा क्यों मिलना चाहते हैं? उनका मन में तमाम शंकाएं आ गईं थीं और उन्होंने सलीम खान से मिलने से साफ इंकार कर दिया. हालांकि मुमताज राजेश की पसंदीदा एक्ट्रेस थीं. बीमारी के दौरान जब मुमताज उनका हाल लेने आतीं तो वो मुमताज से कहते थे,
‘शोले’ में बसंती का किरदार तुम्हें निभाना चाहिए था.’
काका अपने डॉक्टरों से पूछा करते थे- ‘मेरा वीजा कब खत्म हो रहा है? इस दौरान उनके चेहरे पर एक दुखभरी मुस्कान हुआ करती थी. उन्होंने कभी कीमोथेरेपी नहीं करवाई. दवाइयों पर ही रहे. और साल 2012 में 18 जुलाई यानी आज ही के दिन राजेश खन्ना ने इस दुनिया से विदा ली. जब राजेश खन्ना ने आखिरी सांस ली, उस वक़्त अक्षय कुमार, डिम्पल, ट्विंकल और रिंकी सब उनके आस-पास थे. अंजू महेन्द्रू भी उस वक़्त आशीर्वाद में थीं.
लेकिन आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं.
राजेश खन्ना की जिन्दादिली और उनके बेतरतीब स्टारडम के किस्से आज भी उनके चाहने वालों को आनंदित कर देते हैं.