कॉरपोरेट, कट्टरता और निरंकुश सत्ता से लड़ने की हिम्मत सिर्फ राहुल गांधी के ही पास है।

पिछले सात साल से सभी विपक्षी पार्टियां मुसलमानों का नाम लेने से डरने लगी थीं. लेकिन अब यह डर दूर हो रहा है. तुष्टिकरण एक बात है, लेकिन बहुसंख्यकवाद को हथियार बनाकर अल्पसंख्यकों पर जुल्म करना दूसरी बात है. इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता. यह अच्छी बात है कि त्रिपुरा में हो रहे तांडव के खिलाफ आज राहुल गांधी ने खुलकर आवाज उठाई.

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

कांग्रेस पार्टी अब एक नया रूप अख्तियार करती दिख रही है. निडर, जुझारू, लोकतांत्रिक, उदार, सेकुलर, सामाजिक न्याय और संविधान के साथ खड़ी होने वाली छवि के साथ कांग्रेस फिर से खड़ी होती दिखाई दे रही है.

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मैंने कई दफा लिखा कि आज कोई नेता गांधी-नेहरू-पटेल की तरह हिम्मत करके क्यों नहीं कहता कि हिंदू मुसलमान सब हमारे हैं? आज कोई नेता सीना ठोंककर यह क्यों नहीं कहता कि भारत का हर नागरिक बराबर है चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या विचार का हो.

कांग्रेस ने इधर बीच वह उम्मीद जगाई है. त्रिपुरा में कई दिनों से सांप्रदायिक उपद्रव चल रहा है. आज राहुल गांधी ने ट्वीट किया, “त्रिपुरा में हमारे मुसलमान भाइयों पर क्रूरता हो रही है। हिंदू के नाम पर नफ़रत व हिंसा करने वाले हिंदू नहीं, ढोंगी हैं। सरकार कब तक अंधी-बहरी होने का नाटक करती रहेगी?”

उनके ट्वीट के कुछ घंटे बाद आरजेडी नेता मनोज झा ने भी ट्वीट किया, “त्रिपुरा में जो हो रहा है वो ‘नए भारत’ का ऐसा डरावना सच है जो हम में से किसी को भी स्वीकार्य नहीं होना चाहिए…उन्हें भी जो आज संवेदनशून्यता के दीवाने होकर ताली पीट रहे हैं. बापू को सुनिए ‘अल्पसंख्यक आबादी के साथ व्यवहार के आधार पर ही देश/सभ्यता का मूल्यांकन होता है.’ जय हिन्द.”

कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. अगर वह भारत के संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक विचार के साथ डटकर खड़ी होगी तो यकीनन अन्य पार्टियां उसका साथ देंगी. अगर साथ न दें, तो भी कांग्रेस को जनता पर भरोसा करना चाहिए.

याद कीजिए महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को, जो भी कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन वह सिद्धांतों से नहीं हटी, न समझौता किया. महात्मा गांधी ने अपने ईमान और अपने आदर्शों के लिए अपने प्राण तक दे दिए. तब की निरक्षर जनता गांधी के नेतृत्व में हिंदुस्तान के विचार के साथ खड़ी हुई थी. आज के भारत का युवा पढ़ा लिखा है. वह कहीं से भी नहीं चाहेगा कि भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी बुरा देश हो.

कुछ समय पहले राहुल गांधी ने कहा था कि जिन्हें डर लगता हो, वे कांग्रेस छोड़कर चले जाएं, जो निडर हैं वे गैरकांग्रेसी भी कांग्रेस में आ जाएं. इसके बाद कन्हैया, जिग्नेश मेवानी समेत कई युवा कांग्रेस में शामिल हुए हैं.

राहुल गांधी बार-बार कॉरपोरेट और कट्टरता के गठजोड़ पर हमले करते हैं. वे बार-बार आरएसएस का नाम लेकर उसकी ओर से पैदा किए जा रहे खतरे के प्रति लड़ाई की मुनादी करते हैं.

हाल ही में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि सबसे पहले कांग्रेस की विचारधारा पर स्पष्टता होनी चाहिए. कुछ दिनों पहले प्रियंका गांधी ने बनारस में रैली की तो मंच से मंत्र, आयत और गुरबानी पढ़ी गई. बीजेपी के संबित पात्रा ने आयत वाला हिस्सा काटकर प्रोपेगैंडा चलाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे.

लखीमपुर में एक मंत्रीपुत्र ने किसानों को गाड़ी से कुचल दिया तो प्रियंका गांधी ने लिखा, “तय करो किस ओर हो तुम, आदम हो या आदमखोर हो तुम.” यह स्पष्टता और बेबाकपन अब बहुत जरूरी हो चला है.

यही कांग्रेस की पहचान रही है कि वह हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सबके लिए है और यही बात उसे फिर से भारतीय जनमानस में उचित जगह दिलाएगी.

अभी कुछ कहना जल्दबाजी है, लेकिन हम यह तो कह ही सकते हैं कि हम उस विचार के साथ हैं जिस विचार में हर भारतीय की जगह हो. जहां सब बराबर हों. भारतीय परंपरा डरपोक लोगों की नहीं है. भारतीय परंपरा कृष्ण, कर्ण, हरिश्चंद्र, बुद्ध और गांधी के विचारों से बनी है जहां सबसे कमजोर के साथ खड़े होने की रवायत है.

निजी तौर पर मुझे अब भी यकीन है कि आम भारतवासी निर्दोष पर जुल्म करना पसंद नहीं करता. आम भारतीय कमजोर का साथ पसंद करता है और इसीलिए हमारा देश खूबसूरत है. हमें उस विचार के साथ रहना चाहिए जो जुल्म का विरोध करे और सबको बराबरी का एहसास कराए.

(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)