राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कहा उसकी आशंका इस मुल्क के हर संवेदनशील इंसान को थी / है। राहुल ने कहा, “वो मुझे छू नहीं सकते…(हां), गोली मार सकते हैं।” सामान्य दिनों में शायद नहीं कहते। प्रवाह में बात निकल गई। याद कीजिए यही आशंका सोनिया गांधी ने राजीव गांधी के लिए जाहिर की थी। यही इंदिरा गांधी के साथ भी घटित हुआ था। उनसे कहा गया था कि सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दीजिए। नहीं हटाया। क्या इंदिरा को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि इसका अंत क्या हो सकता है ? बिल्कुल था। अगर मैं ठीक याद कर पा रहा हूं तो इंदिरा ने भुवनेश्वर की रैली में अपनी मौत का अंदेशा ज़ाहिर किया था। पर वो पीठ दिखाकर भागने वालों में से नहीं थीं।
वह अंत इंदिरा का चुनाव था। यह राहुल का है… सचाई की राह पर अकेले चलते जाने का चुनाव। इस चुनाव के खतरों से वो भलीभांति परिचित भी हैं। और यही वो बिंदु है जहां राहुल अपनी पार्टी के अंदर यानि कांग्रेस के सिस्टम में और पार्टी से बाहर यानि भारत की राजनीतिक व्यस्था में अलग थलग पड़ जाते हैं। यही उनकी हार का भी कारण है।
इस देश को कारपोरेट का गुलाम बना देने और धर्म जाति के आधार पर तिनका – तिनका बांट देने की राह में सबसे बडा रोड़ा आज राहुल गांधी ही है। कोई अनहोनी हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। देश के जनमानस से “गांधी” शब्द की आभा हज़ारों करोड़ के खर्चे के बाद भी पूरी तरह से मिटाई नहीं जा सकी है। यही वो प्रकाश है जिससे अंधेरे के पक्षकार “साहिब” और संघी कारकून बुरी तरह डरते हैं।
राहुल ने एकदम सही कहा कि वो इस देश से उन्माद की हद तक प्यार करते हैं। उनके शब्द थे “मैं उनसे ज्यादा फैनेटिक हूं।” वास्तव में हर प्यार, एक तरह का उन्माद ही होता है ! राहुल प्रधानमंत्री बने या नहीं, चुनाव जीते या नहीं लेकिन उनका मात्र बने रहना भी कम आश्वस्तिदायक नहीं।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)