विक्रम सिंह चौहान
अब घोषणा सिर्फ बयानी हो या धरातल पर. पर मोदी इस बड़े पैकेज के लिए पहले तैयार नहीं थे. बिल्कुल भी तैयार नहीं थे. वित्त मंत्री से कई दफा बात हुईं पर अंत में यही यही हल आया कि उद्योग जगत को एक पैकेज देंगे पर अभी नहीं. मजदूरों को पैकेज की बात उनके राज्यों पर छोड़ने वाली थी सरकार. फिर अचानक क्या हुआ कि सरकार को इतने बड़े पैकेज का ऐलान करना पड़ा तो इसके पीछे सिर्फ एक बड़ी वजह है राहुल गांधी का इस पर सतत दबाव व पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन व नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी से उनकी खुली बातचीत.
राहुल गांधी द्वारा अभिजीत बनर्जी से भारत को कोरोना काल में राहत पैकेज के तौर पर केंद्र सरकार की ओर से खर्च की जा रही धनराशि और जीडीपी के अनुपात के बारे में पूछने पर बनर्जी ने कहा था कि अमेरिका, ब्रिटेन और जापान जैसे देश अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा खर्च कर रहे हैं. वहीं, भारत ने अपने जीडीपी का एक प्रतिशत से भी कम 1.70 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है. उन्होंने जीडीपी के अनुपात में अधिक खर्च करने की सलाह दी थी. कम से कम 10 प्रतिशत. मोदी ने अक्षरसः इस बात को मान लिया.
रघुराम राजन ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए 65 हज़ार करोड़ पैकेज की बात की थीं, वास्तव में गरीबों तक यही राशि पहुंचेगा. इस देश में वाकई संख्याबल में विपक्ष नहीं है. पर कोरोना काल में सोनिया और राहुल गांधी ने देश पर बहुत बड़ा एहसान किया है. सोनिया के एक अपील पर देश के लाखों मजदूर अपने घर तक सरकार के खर्चे पर पहुंचे. कांग्रेस द्वारा मजदूरों के सफर का खर्च वहन करने की बात पर दो घँटे में सरकार जमीन पर थीं. राहुल गांधी ने दो दिग्गज अर्थशास्त्री से देश के सामने बात कर संकट से निकलने का रास्ता पूछा. उन्होंने जो राह दिखाया,उसे सरकार को मानना पड़ा.