नई दिल्लीः पीस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शादाबा चौहान ने अल्पसंख्यक अधिकार के दिवस के अवसर पर देश के संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि जब नेहरू सरकार में डॉ. भीम राव अंबेडकर क़ानून मंत्री थे तब दलित समाज के उस वर्ग को आरक्षण से वंचित किया गया जो मुसलमान थे। शादाब ने कहा कि अल्पसंख्यक दिवस पर देखें कि नेहरू जी की सरकार में अंबेडकर जी के कानून मंत्री रहते हुए अल्पसंख्यकों से भेदभाव हुआ (आर्टिकल 341) जिसके जिम्मेदार अंबेडकर जी भी थे। क्या कोई अंबेडकरवादी बता सकता है कि क्यों अंबेडकर जी ने मुसलमानों और ईसाइयों के साथ ऐसा होने दिया।
पीस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि निजाम ए अंबेडकर की बात करने वालों से सवाल है कि मुसलमानों ने मिदनापुर सीट से जिता कर भेजा अंबेडकर जी को और उन्होंने मुसलमानों को ही 1950 में दलित मानने से इनकार करते हुए आरक्षण से दूर कर दिया आखिर क्यों जवाब दो। शादाब ने कहा कि अब हिंदुस्तान के मुसलमानों और ईसाइयों को बताना पड़ेगा कि आखिर अंबेडकर जी उस कानून बनने के समय कानून मंत्री थे और उस क़ानून बन जाने के छः साल बाद तक भी जीवित रहे लेकिन एक बार भी उन्होंने विरोध प्रदर्शन नहीं किया, और न इसके खिलाफ आंदोलन किया। शादाब ने सवाल किया कि आखिर मुसलमानों ने उन्हें पश्चिम बंगाल के मिदनापुर लोकसभा सीट से जिताकर ऐसा कौनसा गुनाह कर दिया था।
अल्पसंख्यक दिवस पर देखें कि नेहरू जी की सरकार में #अंबेडकर जी के #कानून_मंत्री रहते हुए अल्पसंख्यकों से भेदभाव हुआ (आर्टिकल 341) जिसके जिम्मेदार अंबेडकर जी भी थे.
क्या कोई अंबेडकरवादी बता सकता है कि क्यों अंबेडकर जी ने मुसलमानों और ईसाइयों के साथ ऐसा होने दिया#MinorityRightsDay pic.twitter.com/E3lYMdvCuJ— Er shadab chouhan شاداب چوھان (@shadab_chouhan1) December 18, 2020
पीस पार्टी ने प्रवक्ता शादाब चौहान ने ये बातें सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करके कहीं हैं। उनका यह वीडियो तेज़ी से वायरल हो रहा है। बता दें कि पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. अय्यूब भी आर्टिकिल 341 का मुद्दा बार बार उठाते रहे हैं।
क्या है आर्टिकिल 341
पीस पार्टी के अध्यक्ष के बयान से आर्टिकिल 341 पर एक फिर बहस का विषय का बन सकता है। दरअस्ल 10 अगस्त 1950 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सरकार ने एक अध्यादेश पास कराया था। जिसके मुताबिक़ अनुसूचित जाति के लोगो में केवल उन्हीं वर्गों आरक्षण तथा अन्य सुविधाओं का लाभ मिल सकता था जो हिन्दू हों। इसके मुताबिक अनुसूचित जाति के किसी ऐसे व्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता था जो गैर हिन्दू हैं। इसके खिलाफ सिख समुदाय के दलितों ने इसे असंवैधानिक अन्याय पूर्ण बताकर इसके खिलाफ अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी तब 1956 में इस अध्यादेश में संशोधन करके हिंदू और सिख को भी इसमें शामिल कर लिया गया.
इसके बाद 1958 में दोबारा इस अध्यादेश को संशोधन करते यह बढ़ोतरी भी कि जिन दलितों के पूर्वज कभी हिदू धर्म से निकल गए थे यदि वह पुनः हिन्दू धर्म स्वीकार करें तो उन्हें भी आरक्षण व अन्य सुविधायें मिलेंगी। 1990 में इस अध्यादेश में एक संशोधन करके इसमें बौद्ध दलितों को भी शामिल कर लिया गया। लेकिन मुस्लिम एवं ईसाई दलित आज भी अपने आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से वंचित हैं। और समय समय पर उनके द्वारा इसमें संशोधन की मांग होती रही है। इस आर्टिकल में शामिल होने के लिये संघर्ष करने वाले नेताओं का कहना है कि आर्टिकिल 341 में शामिल न करके मुस्लिम दलितों, एंव ईसाईयों से आरक्षण का अधिकार असंवैधानिक तरीके से छीना गया है जो कि संविधान की धारा 14 ,15 ,16 और 25 का खुला उल्लघन है।