पूरे फ्लो में भाषण चल रहा था प्रियंका का भाषण, फिर अचानक मंच से उतरकर सामने बैठीं ‘दादी’ से मिलने चली गईं प्रियंका

प्रियंका गांधी अभी मंच पर भाषण दे रही थीं। सामने बैठी जनता के बीच एक दादी कुछ कहने का प्रयास कर रही थीं। प्रियंका गांधी ने भाषण रोककर उन्हें नमस्ते किया और पूछा, कुछ कहना है? फिर उन्होंने सामने बैठी जनता से माफी मांगी और भाषण छोड़कर मंच से नीचे आ गईं। दादी की बातें सुनीं। उन्हें धुंधला दिखता है तो उनका आपरेशन करवाने का वादा किया। साथियों से उनका नाम पता नोट करने को कहा और फिर वापस मंच पर जाकर भाषण देने लगीं।

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मुझे याद आया जब कुछ नेताओं की रैलियों में जनता मंच से 20 फीट दूर बैठती है और कोई कुछ कहना चाहे तो पुलिस उठा ले जाती है। ये बात बेहद खूबसूरत लगी।

पूरे फ्लो में भाषण चल रहा है। अचानक प्रियंका गांधी की निगाह सामने किसी पर पड़ती है, उनके चेहरे के भाव एकदम से बदलते हैं। वे भाषण रोककर हाथ जोड़कर नमस्कार करती हैं। फिर पूछती हैं, ‘कुछ कहना है?’ और सामने बैठी जनता से कहती हैं, ‘माफ करिए’ फिर मंच से उतरने की कोशिश करती हैं। सिक्योरिटी वाले हड़बड़ाकर साथ हो लेते है। वे मंच के सामने से उतरने की कोशिश करती हैं लेकिन शायद गहराई ज्यादा है। वे पीछे से उतरकर नीचे आती हैं। दादी के पास जाकर उनसे बातें करती हैं। दादी सिर पर हाथ फेरकर उन्हें दुलारती हैं। दादी की आंख से धुंधला दिखने की बातें होती हैं। वे उन्हें आपरेशन का आश्वासन देती हैं। दादी ने उन्हें कुछ दिया भी जिसके लिए वे पूछती हैं कि ‘ये क्या है? मेरे लिए है?’ फिर मंच पर वापस जाती हैं और जनता से कहती हैं, ‘माफ करिए। ये दादी जी कुछ बात करना चाह रही थीं।’ यह सामान्य सी घटना सामान्य नहीं है।

किसी नट, बंजारा जैसे घुमंतू समुदाय या अति पिछड़े समाजों के बीच जाइए तो बूढ़ी औरतें बताती हैं कि ‘इंदिरा गांधी आती थीं। अब कोई नहीं आता।’ यह गांधी परिवार की खासियत है। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हृदयविदारक शहादत के बाद भी यह परिवार निडर है और जनता के बीच घुस जाने से कभी नहीं डरता।

नेता के जनता के बीच जाए तो उसे सुल्तान बनकर नहीं, पांव जमीन पर लेकर जाना चाहिए। नेता को तानाशाही सवारी लेकर नहीं, जनता का अपना होकर जाना चाहिए। जनता के प्रति यही मोहब्बत गांधी परिवार की ताकत है।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)